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यूपीए सरकार के आर्थिक सलाहकार रह चुके कौशिक बसु बोले- महंगाई-बेरोजगारी बढ़ी, मांग घटी, चिंतित करने वाली अर्थव्यवस्था

मोदी सरकार का अर्थप्रबंधन चिंतित करने वाला है. यह स्टैगफ्लेशन (facing stagflation) वाली स्थिति में जा चुकी है. यानी महंगाई बढ़ रही है, बेरोजगारी भी बढ़ रही है, लेकिन मांग घट रही है. यह दावा यूपीए सरकार के आर्थिक सलाहकार रह चुके कौशिक बसु (Kaushik Basu) ने किया है. बसु ने कहा कि भारत की मौजूदा स्थिति वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और पूरे राजकोषीय नीति तंत्र के लिए एक बड़ी चुनौती है. पढ़ें पूरी खबर.

kaushik basu advisor to upa govt
कौशिक बसु
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Published : Jan 16, 2022, 1:41 PM IST

नई दिल्ली : विश्व बैंक के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक बसु (Kaushik Basu) का मानना है कि भारत में कुल वृहद आर्थिक स्थिति पुनरुद्धार की राह पर है, लेकिन यह शीर्ष छोर पर केंद्रित है, जो चिंता की बात है. यानी इसका लाभ कुछ क्षेत्रों या बड़े व्यवसायों को ही मिल रहा है. बीते माह खुदरा मुद्रास्फीति में तेज उछाल आया है. बसु ने इसी परिप्रेक्ष्य में कहा कि देश 'गतिहीनस्फीति' (स्टैगफ्लेशन) (facing stagflation) की स्थिति का सामना कर रहा है, और इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए बेहद सावधानी से नीतिगत हस्तक्षेप की जरूरत है. गतिहीनस्फीति का अर्थ है, ऊंची मुद्रास्फीति के बीच बेरोजगारी दर ऊंची और अर्थव्यवस्था की मांग कम रहने से है.

बसु पिछली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार (मनमोहन सिंह की सरकार) में मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे थे. फिलहाल वह अमेरिका के कॉर्नेल विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं. उन्होंने कहा कि समग्र अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, लेकिन देश का निचला आधा हिस्सा मंदी में है. उन्होंने कहा कि पिछले कुछ साल के दौरान देश की नीति कुछ बड़े व्यवसायों पर केंद्रित रही है, जो दुख की बात है.

बसु ने कहा, 'भारत की समग्र वृहद आर्थिक स्थिति पुनरुद्धार की राह पर है. चिंता इस तथ्य से पैदा होती है कि यह वृद्धि शीर्ष छोर पर केंद्रित है.' उन्होंने कहा कि देश में युवा बेरोजगारी दर कोविड-19 महामारी से पहले ही 23 प्रतिशत पर पहुंच गई थी, जो दुनिया में सबसे अधिक है. उन्होंने कहा कि श्रमिकों, किसानों और छोटे व्यवसायों के लिए नकारात्मक वृद्धि देखी जा रही है. उन्होंने कहा कि 2021-22 में भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 9.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है. चूंकि महामारी के कारण 2019-20 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 7.3 प्रतिशत की गिरावट आई थी. ऐसे में पिछले दो साल की औसत वृद्धि दर मात्र 0.6 प्रतिशत बैठेगी.

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने अपने पहले अग्रिम अनुमान में अप्रैल, 2021 से मार्च, 2022 के वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 9.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है, जबकि भारतीय रिजर्व बैंक ने इसी अवधि के दौरान 9.5 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया है. विश्व बैंक ने 8.3 प्रतिशत की वृद्धि दर का अनुमान लगाया है जबकि आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) का अनुमान है कि भारतीय अर्थव्यवस्था 9.7 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी.

यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार को आगामी बजट में राजकोषीय मजबूती के लिए कदम उठाने चाहिए या प्रोत्साहन उपायों को जारी रखना चाहिए, बसु ने कहा कि भारत की मौजूदा स्थिति वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और पूरे राजकोषीय नीति तंत्र के लिए एक बड़ी चुनौती है. उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था गतिहीनस्फीति का सामना कर रही है, जो काफी परेशान करने वाला है. ऐसे में इस स्थिति से निपटने के लिए सावधानी से नीतिगत हस्तक्षेप की जरूरत है.

उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में सबसे बड़ी चुनौती रोजगार सृजन और छोटे व्यवसायों को मदद करने की है. हमें रोजगार पैदा करना होगा और साथ ही उत्पादन भी बढ़ाना होगा. दिसंबर, 2021 में खुदरा मुद्रास्फीति 5.59 प्रतिशत पर पहुंच गई है. मुख्य रूप से खाद्य वस्तुओं के दाम बढ़ने से मुद्रास्फीति बढ़ी है. वहीं पिछले महीने थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति कम होकर 13.56 प्रतिशत पर आ गई. इससे पिछले चार माह के दौरान थोक मुद्रास्फीति बढ़ी थी.

ये भी पढे़ं : दुनिया में सबसे ऊंची वृद्धि दर्ज करने वाली अर्थव्यवस्था रहेगा भारत : RBI अधिकारी

(एक्स्ट्रा इनपुट-पीटीआई)

नई दिल्ली : विश्व बैंक के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक बसु (Kaushik Basu) का मानना है कि भारत में कुल वृहद आर्थिक स्थिति पुनरुद्धार की राह पर है, लेकिन यह शीर्ष छोर पर केंद्रित है, जो चिंता की बात है. यानी इसका लाभ कुछ क्षेत्रों या बड़े व्यवसायों को ही मिल रहा है. बीते माह खुदरा मुद्रास्फीति में तेज उछाल आया है. बसु ने इसी परिप्रेक्ष्य में कहा कि देश 'गतिहीनस्फीति' (स्टैगफ्लेशन) (facing stagflation) की स्थिति का सामना कर रहा है, और इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए बेहद सावधानी से नीतिगत हस्तक्षेप की जरूरत है. गतिहीनस्फीति का अर्थ है, ऊंची मुद्रास्फीति के बीच बेरोजगारी दर ऊंची और अर्थव्यवस्था की मांग कम रहने से है.

बसु पिछली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार (मनमोहन सिंह की सरकार) में मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे थे. फिलहाल वह अमेरिका के कॉर्नेल विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं. उन्होंने कहा कि समग्र अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, लेकिन देश का निचला आधा हिस्सा मंदी में है. उन्होंने कहा कि पिछले कुछ साल के दौरान देश की नीति कुछ बड़े व्यवसायों पर केंद्रित रही है, जो दुख की बात है.

बसु ने कहा, 'भारत की समग्र वृहद आर्थिक स्थिति पुनरुद्धार की राह पर है. चिंता इस तथ्य से पैदा होती है कि यह वृद्धि शीर्ष छोर पर केंद्रित है.' उन्होंने कहा कि देश में युवा बेरोजगारी दर कोविड-19 महामारी से पहले ही 23 प्रतिशत पर पहुंच गई थी, जो दुनिया में सबसे अधिक है. उन्होंने कहा कि श्रमिकों, किसानों और छोटे व्यवसायों के लिए नकारात्मक वृद्धि देखी जा रही है. उन्होंने कहा कि 2021-22 में भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 9.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है. चूंकि महामारी के कारण 2019-20 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 7.3 प्रतिशत की गिरावट आई थी. ऐसे में पिछले दो साल की औसत वृद्धि दर मात्र 0.6 प्रतिशत बैठेगी.

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने अपने पहले अग्रिम अनुमान में अप्रैल, 2021 से मार्च, 2022 के वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 9.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है, जबकि भारतीय रिजर्व बैंक ने इसी अवधि के दौरान 9.5 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया है. विश्व बैंक ने 8.3 प्रतिशत की वृद्धि दर का अनुमान लगाया है जबकि आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) का अनुमान है कि भारतीय अर्थव्यवस्था 9.7 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी.

यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार को आगामी बजट में राजकोषीय मजबूती के लिए कदम उठाने चाहिए या प्रोत्साहन उपायों को जारी रखना चाहिए, बसु ने कहा कि भारत की मौजूदा स्थिति वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और पूरे राजकोषीय नीति तंत्र के लिए एक बड़ी चुनौती है. उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था गतिहीनस्फीति का सामना कर रही है, जो काफी परेशान करने वाला है. ऐसे में इस स्थिति से निपटने के लिए सावधानी से नीतिगत हस्तक्षेप की जरूरत है.

उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में सबसे बड़ी चुनौती रोजगार सृजन और छोटे व्यवसायों को मदद करने की है. हमें रोजगार पैदा करना होगा और साथ ही उत्पादन भी बढ़ाना होगा. दिसंबर, 2021 में खुदरा मुद्रास्फीति 5.59 प्रतिशत पर पहुंच गई है. मुख्य रूप से खाद्य वस्तुओं के दाम बढ़ने से मुद्रास्फीति बढ़ी है. वहीं पिछले महीने थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति कम होकर 13.56 प्रतिशत पर आ गई. इससे पिछले चार माह के दौरान थोक मुद्रास्फीति बढ़ी थी.

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(एक्स्ट्रा इनपुट-पीटीआई)

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