रतलाम/मंदसौर। बाकी घरों में जिस समय लड़कियां देहरी के भीतर भेजी जा रही होती हैं. शाम ढले ये लड़कियां संज संवर कर बाहर बैठा दी जाती हैं. किसी के ग्राहक तय होते हैं. तो कोई ग्राहकों के इंतजार में होती हैं. हैरत की बात ये कि कोई दूसरा नहीं इनके अपने घरवाले इन्हें जिस्म की मंडी में भेजते हैं. रतलाम मंदसौर और नीमच के बांछड़ा जाति के डेरे अब नई मुश्किल से जूझ रहे हैं. ये पूरा इलाका बदनाम हो जाने की वजह से यहां लड़कों का ब्याह नहीं हो रहा. समाज की बेटियों से जिस्मफरोशी के चलते कोई ब्याह नहीं करता. बाहर से लड़कियां इसलिए इन गांवों में नहीं ब्याही जाती, क्योंकि ये बदनाम है. बेटों की शादी के लिए दहेज दिया जाता है. कई बार लाखों तक पहुंचा ये पैसा इन लड़कों की अपनी बहनें अपना जिस्म बेचकर लाती हैं. रतलाम के माननखेड़ा गांव से लेकर मंदसौर के गुर्जर वर्डिया गांव तक गांव के साथ लड़कियों के नाम बदलते हैं उनकी तकदीर नहीं.
रतलाम के हाईवे पर बसे ये घर नहीं...बाज़ार हैं: रतलाम के माननखेड़ा में हाईवे किनारे बने आलीशान मकान कभी घर नहीं बन पाते, वजह ये कि यहां रहने वाली लड़कियों के घर बसते ही नहीं कभी. ये लड़कियां बाछड़ा समाज की अर्थव्यवसथा की रीढ़ हैं. इनकी बदौलत ही घर में सारे ऐशो आराम हैं....लेकिन उन लड़कियों की मर्जी कहीं नही है. हालांकि इसे नियति मान चुकी लड़कियां भी अब इसे पेशे की तरह लेती हैं. "रजनी ( परिवर्तित नाम ) सोलह बरस की थी जब पहली बार उसका सौदा हुआ था. पचास हजार में भेजी गई, आप इसे बेची गई कह लीजिए. लौटेंगी या नहीं ये भी खरीदने वाले की मर्जी पर निर्भर करता है. रजनी ग्राहक के हाथ से छूट गई. लेकिन जिंदगी तो उस राह पर चल ही दी...कहती है...मन तो मेरा भी था कि शादी करके घर बसाऊंगी...लेकिन जब इस काम में आ गए तो क्या करती. हमारे समाज में कोई मैं अकेली तो हूं नहीं. हर दूसरे घर में आपको कोई मिल जाएगी. जिसको जैसा भाव मिल जाता है चली जाती है. मेरा पहला सौदा मेरी बुआ ने कराया था, तब मैं छोटी थी."
भाई की खातिर बहनों का सौदा: रतलाम-मंदसौर के बांछड़ा समाज अब एक नई मुश्किल से जूझ रहा है. यहां बेटों का ब्याह नहीं हो पाता. बांछड़ा समाज में वैसे समाज के भीतर ही शादियां होती है. लेकिन बेटियों के जिस्मफरोशी के धंधे में आ जाने के बाद से इनसे कोई ब्याह नहीं करता. जो समाज में इस काम से नहीं जुडे वो भी अपनी बेटियां इन घरों में यूं नहीं देते कि अब ये घर गांव बदनाम हो चुके हैं. आलम ये है कि लड़के दहेज देते हैं. लाखों रुपए देकर बहुएं लाई जाती हैं. "लक्ष्मी ( परिवर्तित नाम) बताती है, भाईयों की शादी हमारी वजह से नहीं हुई तो हम ही बंदोबस्त करते हैं. पैसों का और भाईयों की शादी करवाते हैं. लक्ष्मी ने धंधे में जुटाए दो लाख रुपए से अपने भाई की शादी की थी."
कुछ लड़कियां लापता ही हैं: मंदसौर जिले के गुर्जर वडिया गांव से जब शाम को हम गुजरे तो हर दूसरे घर में लड़की तैयार होकर बाहर बैठी थी. यही वक्त होता है, यहां जब ग्राहक निकलते हैं और अपनी पसंद से लड़कियों को अपने साथ ले जाते हैं. "दामिनी ( परिवर्तित नाम ) बताती है..जिस दिन कोई नहीं आता उस दिन दिल घबरा जाता है, इसलिए कि अगर कमाऊंगी नहीं तो घर की जरुरत कैसे पूरी होगी. अंधेरे में मूंह दिए इनके घरों के आगे गुजरती लक्जरी गाडियां और चंद मिनिटों की बातचीत के बाद लक्जरी गाड़ियों में ये लड़कियां चढ़ा दी जाती हैं. कुछ घर लौट पाती हैं. कुछ हमेशा के लिए लापता हो जाती हैं."
एमपी से लापता हुई हैं सबसे जयादा लड़कियां: देश में गुम हो जाने वाली महिला और लड़कियों का आंकड़ा चौकाने वाला है. गृह मत्रालय का आंकड़ा बताता है कि भारत में 2019 से 2021 जिसमें लंबा समय कोरोना का भी था. 13 लाख से ज्यादा लड़कियां और महिलाएं गुमशुदा हुई हैं. नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो का हैरान करने वाला आंकड़ा ये कि इसमें मध्यप्रदेश अव्वल नंबर पर है. इसमें महिलाओं की तादात एक लाख साठ हजार 180 है, जबकि 38 हजार 234 लड़कियां एमपी की गायब हैं.