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शरद पूर्णिमा आज, 'कोजागरी लक्ष्मी पूजा' से होगी मां लक्ष्मी की कृपा

आज शरद पूर्णिमा है. कई जगहों पर इसे 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा. इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने से घर में धन व वैभव की कमी नहीं होती है. इसके साथ ही रात के समय खुले में खीर रखने की परंपरा है. इस खीर का सेवन करने से शरीर रोगमुक्त होता है.

शरद पूर्णिमा आज
शरद पूर्णिमा आज
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Published : Oct 19, 2021, 1:28 PM IST

नई दिल्ली : हिंदी पंचांग के अनुसार शरद पूर्णिमा हर वर्ष आश्विन मास में आती है. आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा या आश्विन पूर्णिमा कहते हैं. शरद पूर्णिमा का एक विशेष धार्मिक महत्व होता है. इस दिन धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. शरद पूर्णिमा को 'कोजागरी पूर्णिमा' या 'कोजागरी लक्ष्मी पूजा' के नाम से भी जाना जाता है.

पौराणिक मान्यता है कि इस दिन रात के समय बाहर रखे जाने वाले खीर में अमृत का अंश होता है, जो आरोग्य सुख प्रदान करता है. आर्थिक संपदा के लिए शरद पूर्णिमा को रात्रि जागरण का विधान शास्त्रों में बताया गया है. यही कारण है कि इस रात को, को-जागृति यानी कोजागरा की रात भी कहा गया है. को-जागृति और कोजागरा का अर्थ होता है कि कौन जाग रहा है. शरद पूर्णिमा की रात्रि में जागने की परंपरा के कारण यह जागृति पूर्णिमा के नाम से भी जानी जाती है.

शरद पूर्णिमा

कहते हैं कि इस रात देवी लक्ष्मी सागर मंथन से प्रगट हुईं थी, इसलिए इसे देवी लक्ष्मी का जन्मदिवस भी कहते हैं. अपने जन्मदिन के अवसर पर देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण के लिए आती हैं. जो इस रात देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, उन पर देवी की असीम कृपा होती है. इस रात देवी लक्ष्मी की पूजा कौड़ी से करना बहुत ही शुभ फलदायी माना गया है, जो लोग धन एवं सुख-शांति की कामना रखते हैं, वह इस अवसर पर सत्यनारायण भगवान की पूजा का आयोजन कर सकते हैं.

यह भी माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के निशा में माता लक्ष्मी घर-घर विचरण करती हैं. इस निशा में माता लक्ष्मी के आठ में से किसी भी स्वरूप का ध्यान करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है. देवी के आठ स्वरूप धनलक्ष्मी, धन्य लक्ष्मी, राजलक्ष्मी, वैभवलक्ष्मी, ऐश्वर्य लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, कमला लक्ष्मी और विजय लक्ष्मी है. इस दिन रखे जाने वाले व्रत को कौमुदी व्रत भी कहते हैं. इस दिन खीर का महत्व इसलिए भी है कि यह दूध से बनी होती है और दूध को चंद्रमा का प्रतीक माना गया है. चंद्रमा मन का प्रतिनिधित्व करता है.

पढ़ें : Sharad purnima 2021 : जानें शरद पूर्णिमा की रात का महत्व और 'अमृत वर्षा' का रहस्य

शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में जो भगवान विष्णु सहित देवी लक्ष्मी और उनके वाहन की पूजा करते हैं, उनकी मनोकामना पूरी होती है. भारत के कुछ हिस्सों में शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है. इस दिन कुंवारी लड़कियां सुयोग्य वर के लिए भगवान कार्तिकेय की पूजा करती हैं. इस दिन लड़कियां सुबह उठकर स्नान करने के बाद सूर्य को भोग लगाती हैं और दिन भर व्रत रखती हैं. शाम के समय चंद्रमा की पूजा करने के बाद व्रत खोलती हैं.

शरद पूर्णिमा की शुरुआत ही वर्षा ऋतु के अंत में होती है. इस दिन चांद धरती के सबसे करीब होता है. रोशनी सबसे ज्यादा होने के कारण इनका असर भी अधिक होता है. इस दौरान चांद की किरणें जब खीर पर पड़ती हैं, तो उस पर भी इसका असर होता है. रातभर चांदनी में रखी हुई खीर शरीर और मन को ठंडा रखती है. ग्रीष्म ऋतु की गर्मी को शांत करती और शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाती है. यह पेट को ठंडक पहुंचाती है. श्वांस के रोगियों को इससे फायदा होता है, साथ ही आंखों रोशनी भी बेहतर होती है.

मान्यतों के अनुसार खीर को संभव हो तो चांदी के बर्तन में बनाना चाहिए. चांदी में रोग प्रतिरोधकता अधिक होती है. इससे विषाणु दूर रहते हैं. हल्दी का उपयोग निषिद्ध है. प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए. रात्रि 10 से 12 बजे तक का समय उपयुक्त रहता है. दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है. यह तत्व चंद्रमा की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है. चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है. इसी कारण शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया गया है. मान्यता है कि इस दिन आसमान से अमृत बरसता है, क्योंकि चांद की रोशनी में औषधीय गुण होते हैं, जिसमें कई असाध्य रोगों को दूर करने की क्षमता होती है.

पूर्णिमा के दिन सुबह इष्ट देव का पूजन करना चाहिए. इन्द्र और महालक्ष्मी का पूजन करके घी के दीपक जलाकर उसकी गन्ध पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए. विप्रजनों को खीर का भोजन कराना चाहिए और उन्हें दान दक्षिणा प्रदान करनी चाहिए. इस दिन जागरण करने वालों की धन-संपत्ति में वृद्धि होती है. रात को चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करना चाहिए. मंदिर में खीर आदि दान करने का विधि-विधान है.

शरद पूर्णिमा की रात जब चारों तरफ चांद की रोशनी बिखरती है, उस समय मां लक्ष्मी की पूरा करने धन का लाभ होगा. मां लक्ष्मी को सुपारी बहुत पसंद है. सुपारी का इस्तेमाल पूजा में करें. पूजा के बाद सुपारी पर लाल धागा लपेटकर उसको अक्षत, कुमकुम, पुष्प आदि से पूजन करके उसे तिजोरी में रखने से धन की कभी कमी नहीं होगी. शरद पूर्णिमा की रात भगवान शिव को खीर का भोग लगाएं. खीर को पूर्णिमा वाली रात छत पर रखें. भोग लगाने के बाद उस खीर का प्रसाद ग्रहण करें. उस उपाय से भी कभी पैसे की कमी नहीं होगी. शरद पूर्णिमा की रात को हनुमान जी के सामने चौमुखा दीपक जलाएं. इससे घर में सुख शांति बनी रहेगी.

नई दिल्ली : हिंदी पंचांग के अनुसार शरद पूर्णिमा हर वर्ष आश्विन मास में आती है. आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा या आश्विन पूर्णिमा कहते हैं. शरद पूर्णिमा का एक विशेष धार्मिक महत्व होता है. इस दिन धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. शरद पूर्णिमा को 'कोजागरी पूर्णिमा' या 'कोजागरी लक्ष्मी पूजा' के नाम से भी जाना जाता है.

पौराणिक मान्यता है कि इस दिन रात के समय बाहर रखे जाने वाले खीर में अमृत का अंश होता है, जो आरोग्य सुख प्रदान करता है. आर्थिक संपदा के लिए शरद पूर्णिमा को रात्रि जागरण का विधान शास्त्रों में बताया गया है. यही कारण है कि इस रात को, को-जागृति यानी कोजागरा की रात भी कहा गया है. को-जागृति और कोजागरा का अर्थ होता है कि कौन जाग रहा है. शरद पूर्णिमा की रात्रि में जागने की परंपरा के कारण यह जागृति पूर्णिमा के नाम से भी जानी जाती है.

शरद पूर्णिमा

कहते हैं कि इस रात देवी लक्ष्मी सागर मंथन से प्रगट हुईं थी, इसलिए इसे देवी लक्ष्मी का जन्मदिवस भी कहते हैं. अपने जन्मदिन के अवसर पर देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण के लिए आती हैं. जो इस रात देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, उन पर देवी की असीम कृपा होती है. इस रात देवी लक्ष्मी की पूजा कौड़ी से करना बहुत ही शुभ फलदायी माना गया है, जो लोग धन एवं सुख-शांति की कामना रखते हैं, वह इस अवसर पर सत्यनारायण भगवान की पूजा का आयोजन कर सकते हैं.

यह भी माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के निशा में माता लक्ष्मी घर-घर विचरण करती हैं. इस निशा में माता लक्ष्मी के आठ में से किसी भी स्वरूप का ध्यान करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है. देवी के आठ स्वरूप धनलक्ष्मी, धन्य लक्ष्मी, राजलक्ष्मी, वैभवलक्ष्मी, ऐश्वर्य लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, कमला लक्ष्मी और विजय लक्ष्मी है. इस दिन रखे जाने वाले व्रत को कौमुदी व्रत भी कहते हैं. इस दिन खीर का महत्व इसलिए भी है कि यह दूध से बनी होती है और दूध को चंद्रमा का प्रतीक माना गया है. चंद्रमा मन का प्रतिनिधित्व करता है.

पढ़ें : Sharad purnima 2021 : जानें शरद पूर्णिमा की रात का महत्व और 'अमृत वर्षा' का रहस्य

शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में जो भगवान विष्णु सहित देवी लक्ष्मी और उनके वाहन की पूजा करते हैं, उनकी मनोकामना पूरी होती है. भारत के कुछ हिस्सों में शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है. इस दिन कुंवारी लड़कियां सुयोग्य वर के लिए भगवान कार्तिकेय की पूजा करती हैं. इस दिन लड़कियां सुबह उठकर स्नान करने के बाद सूर्य को भोग लगाती हैं और दिन भर व्रत रखती हैं. शाम के समय चंद्रमा की पूजा करने के बाद व्रत खोलती हैं.

शरद पूर्णिमा की शुरुआत ही वर्षा ऋतु के अंत में होती है. इस दिन चांद धरती के सबसे करीब होता है. रोशनी सबसे ज्यादा होने के कारण इनका असर भी अधिक होता है. इस दौरान चांद की किरणें जब खीर पर पड़ती हैं, तो उस पर भी इसका असर होता है. रातभर चांदनी में रखी हुई खीर शरीर और मन को ठंडा रखती है. ग्रीष्म ऋतु की गर्मी को शांत करती और शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाती है. यह पेट को ठंडक पहुंचाती है. श्वांस के रोगियों को इससे फायदा होता है, साथ ही आंखों रोशनी भी बेहतर होती है.

मान्यतों के अनुसार खीर को संभव हो तो चांदी के बर्तन में बनाना चाहिए. चांदी में रोग प्रतिरोधकता अधिक होती है. इससे विषाणु दूर रहते हैं. हल्दी का उपयोग निषिद्ध है. प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए. रात्रि 10 से 12 बजे तक का समय उपयुक्त रहता है. दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है. यह तत्व चंद्रमा की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है. चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है. इसी कारण शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया गया है. मान्यता है कि इस दिन आसमान से अमृत बरसता है, क्योंकि चांद की रोशनी में औषधीय गुण होते हैं, जिसमें कई असाध्य रोगों को दूर करने की क्षमता होती है.

पूर्णिमा के दिन सुबह इष्ट देव का पूजन करना चाहिए. इन्द्र और महालक्ष्मी का पूजन करके घी के दीपक जलाकर उसकी गन्ध पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए. विप्रजनों को खीर का भोजन कराना चाहिए और उन्हें दान दक्षिणा प्रदान करनी चाहिए. इस दिन जागरण करने वालों की धन-संपत्ति में वृद्धि होती है. रात को चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करना चाहिए. मंदिर में खीर आदि दान करने का विधि-विधान है.

शरद पूर्णिमा की रात जब चारों तरफ चांद की रोशनी बिखरती है, उस समय मां लक्ष्मी की पूरा करने धन का लाभ होगा. मां लक्ष्मी को सुपारी बहुत पसंद है. सुपारी का इस्तेमाल पूजा में करें. पूजा के बाद सुपारी पर लाल धागा लपेटकर उसको अक्षत, कुमकुम, पुष्प आदि से पूजन करके उसे तिजोरी में रखने से धन की कभी कमी नहीं होगी. शरद पूर्णिमा की रात भगवान शिव को खीर का भोग लगाएं. खीर को पूर्णिमा वाली रात छत पर रखें. भोग लगाने के बाद उस खीर का प्रसाद ग्रहण करें. उस उपाय से भी कभी पैसे की कमी नहीं होगी. शरद पूर्णिमा की रात को हनुमान जी के सामने चौमुखा दीपक जलाएं. इससे घर में सुख शांति बनी रहेगी.

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