जबलपुर : दिल में हो जज्बा तो हौसलों में उड़ान होती है, कितनी भी आएं मुश्किलें जिंदगी आसान होती है. ये पंक्तियां उन लोगों के लिए हैं जो तमाम परेशानियों के बावजूद कभी हार नहीं मानते बल्कि इस अंदाज में जीते हैं कि दूसरों के लिए मिसाल बन जाते हैं.
नारी जिसे भारतीय संस्कृति में शक्ति का स्वरूप माना जाता है. जिसकी पूजा की जाती है. वह नारी कितनी सशक्त है इसके कई उदाहरण पहले भी देखे जा चुके हैं, लेकिन जिसे ईश्वर ने ही अशक्त बनाया हो वह सशक्त हो जाए तो इसे जिंदादिली ही कहा जाएगा. सशक्त नारी के रूप में जबलपुर की भवानी ने भी अपनी पहचान बनाई है.
भवानी का जब जन्म हुआ तो उसके दोनों हाथ नहीं थे. यानि वह बिना हाथों के इस दुनिया में आई, लेकिन ऐसा कोई काम नहीं जो वह नहीं कर सकती. चाहे फिर वह लैपटाॅप पर पढ़ाई करना हो या मोबाइल चलाना हो, चाहे खाना खाना हो या फिर बाल संवारने हों.
भवानी वे सारे काम करती है जो एक सामान्य महिला करती है. आइए आपको मिलवाते हैं एक ऐसी लड़की से जो बिना हाथों के भी सशक्त है.
जबलपुर के गोरखपुर क्षेत्र में रहने वाली भवानी यादव 19 साल की हैं. जिसके हाथ नहीं हैं लेकिन भगवान ने जज्बा दिया है वह सामान्य लड़कियों को भी हैरत में डाल सकता है.
भवानी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही हैं. माता-पिता की इकलौती बेटी भवानी की मां गृहणी हैं और उनके पिता ड्राइवर हैं जो निजी वाहन चलाकर परिवार की जरूरतें पूरी करते हैं. आमदनी बहुत ज्यादा नहीं है लेकिन फिर भी भवानी के लिए उन्होंने वो सब किया जो उनके बस में था.
दिव्यांगता को नहीं समझा कमजोरी
भवानी का सपना रेलवे में जॉब करने का है और अपने पैरों से ही वह मोबाइल और लैपटाॅप चलाती हैं. पैरों की उंगलियां की बोर्ड की बटन पर हाथों की तरह चलती हैं. जिससे वह अपने सभी प्रोजेक्ट्स तैयार करती हैं. इसी तरह मोबाइल को भी वह अपने पैरों की उंगलियों से ही ऑपरेट करती हैं.
दिव्यांगता की कमजोरी को भवानी ने बखूबी दूर करते हुए स्कूल की पढ़ाई पूरी की. अब एक सामान्य लड़की की तरह अपना जीवन जी रही हैं. लेकिन यह सफर इतना आसान नहीं था.
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भवानी जब छोटी थीं तो उनकी मां रानी ही उनके सारे काम करती थीं. स्कूल में एडमिशन लेने के लिए मां को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा. एक तरफ बेटी की परवरिश, तो दूसरी तरफ आर्थिक तंगी के कारण भवानी को वो सारी सुविधाएं नहीं मिल पाईं जो उनके जीवन को आसान बना पातीं. वहीं शासन-प्रशासन स्तर पर भी भवानी को कोई ज्यादा सहयोग नहीं मिला. दो कमरों के छोटे से घर में भवानी अपने माता-पिता के साथ रहती हैं उन्हें अपनी गरीबी और दिव्यांगता का कोई मलाल नहीं है.
समाज में मिसाल बन गईं भवानी
भवानी अपने माता पिता के बुढ़ापे का एक मात्र सहारा हैं. ऐसे में अपनी कमजोरी को हरा कर वह अपने परिवार का सहारा बन चुकी हैं. भवानी ने अपने आत्मविश्वास और लगन से दिव्यांगता जैसे अभिशाप की परिभाषा बदल कर रख दी है. यही वजह है कि अब वह समाज में मिसाल बन चुकी हैं. आज उनकी वजह से औरों को जीने की सीख मिल गई है.