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'कभी शरद पवार ने भी इसी अंदाज में तोड़ी थी पार्टी'

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Published : Nov 23, 2019, 12:25 PM IST

महाराष्ट्र को लेकर सियासी उबाल चरम पर है. बीजेपी ने अजित पवार की मदद से सरकार बना ली है. शरद पवार का कहना है कि उनका इससे कोई लेना-देना नहीं है.

फाइल फोटो.

मुंबई: महाराष्ट्र में जो कुछ हुआ, उसने सबको चौंका दिया है. देवेन्द्र फडणवीस सीएम बन गए हैं. एनसीपी नेता अजित पवार उप मुख्यमंत्री बने हैं. उन्होंने एक तरीके से बगावत कर दी है. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक यह 'विद्रोह' कुछ-कुछ वैसा ही है, जैसा 1977 में खुद शरद पवार ने किया था.

आपको बता दें कि 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस (आई) को हार का सामना करना पड़ा था. केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार बनी थी. महाराष्ट्र में कांग्रेस नेता शंकर राव चव्हाण ने हार की नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था. उसके बाद वसंतदादा पाटिल उनकी जगह सीएम बनाए गए. कांग्रेस के कई नेताओं को यह फैसला मंजूर नहीं था. इसका नतीजा ये हुआ कि पार्टी टूट गई. कांग्रेस आई और कांग्रेस यू, दो अलग-अलग दल बन गए. शरद पवार के

राजनीतिक गुरु यशवंत राव पाटिल थे. वे कांग्रेस यू में शामिल हो गए.

अगले साल 1978 में विधानसभा चुनाव हुआ. जनता पार्टी को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस का दोनों धड़ा फिर से एक हो गया. वसंतदादा पाटिल सीएम बनाए गए. शरद पवार उनके मंत्रिमंडल में शामिल थे.
लेकिन जल्द ही कांग्रेस के अंदर मतभेद सामने आ गए. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि शरद पवार ने इस समय विरोध की कमान संभाली. उन्होंने अपने गुरू के कहने पर पार्टी को तोड़ दिया. और जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार बना ली. यशवंत राव पाटिल भी पवार के साथ आ गए थे. इसे प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट का नाम दिया गया था.

आज एक बार फिर से कुछ-कुछ वैसा ही हुआ है. शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने एनसीपी को तोड़ दिया है. अब देखना ये है कि शरद पवार इस पर क्या फैसला लेते हैं.

मुंबई: महाराष्ट्र में जो कुछ हुआ, उसने सबको चौंका दिया है. देवेन्द्र फडणवीस सीएम बन गए हैं. एनसीपी नेता अजित पवार उप मुख्यमंत्री बने हैं. उन्होंने एक तरीके से बगावत कर दी है. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक यह 'विद्रोह' कुछ-कुछ वैसा ही है, जैसा 1977 में खुद शरद पवार ने किया था.

आपको बता दें कि 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस (आई) को हार का सामना करना पड़ा था. केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार बनी थी. महाराष्ट्र में कांग्रेस नेता शंकर राव चव्हाण ने हार की नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था. उसके बाद वसंतदादा पाटिल उनकी जगह सीएम बनाए गए. कांग्रेस के कई नेताओं को यह फैसला मंजूर नहीं था. इसका नतीजा ये हुआ कि पार्टी टूट गई. कांग्रेस आई और कांग्रेस यू, दो अलग-अलग दल बन गए. शरद पवार के

राजनीतिक गुरु यशवंत राव पाटिल थे. वे कांग्रेस यू में शामिल हो गए.

अगले साल 1978 में विधानसभा चुनाव हुआ. जनता पार्टी को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस का दोनों धड़ा फिर से एक हो गया. वसंतदादा पाटिल सीएम बनाए गए. शरद पवार उनके मंत्रिमंडल में शामिल थे.
लेकिन जल्द ही कांग्रेस के अंदर मतभेद सामने आ गए. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि शरद पवार ने इस समय विरोध की कमान संभाली. उन्होंने अपने गुरू के कहने पर पार्टी को तोड़ दिया. और जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार बना ली. यशवंत राव पाटिल भी पवार के साथ आ गए थे. इसे प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट का नाम दिया गया था.

आज एक बार फिर से कुछ-कुछ वैसा ही हुआ है. शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने एनसीपी को तोड़ दिया है. अब देखना ये है कि शरद पवार इस पर क्या फैसला लेते हैं.

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