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झारखंड के इस प्रखंड के ग्रामीणों को 7 दशक से पुल का इंतजार, कब बेड़ा पार लगाओगे सरकार

चाईबासा के गुदरी प्रखंड का पोड़ाहाट में 7 दशकों से ग्रामीण नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं. बरसात के दिनों में प्रखंड के कई गांवों का संपर्क पूरी तरह से कट जाता है. आज के युग में भी कई गांवों को लोग नाव पर सवार होकर घर आने जाने को मजबूर हैं.

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गुदरी प्रखंड में सुविधाओं का अभाव
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Published : Sep 10, 2020, 5:28 AM IST

चाईबासा: पश्चिम सिंहभूम जिला का गुदरी प्रखंड का पोड़ाहाट अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र है, जहां एक पुल के इंतजार में लोग 7 दशकों से ग्रामीण नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं. इस क्षेत्र में सरकारी योजनाएं भी धरातल पर नहीं उतर पाई है. क्षेत्र में आवागमन की सुविधाएं अब तक नहीं है, जिससे लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.

देखें स्पेशल स्टोरी

पुल के अभाव में ग्रामीणों को परेशानी
पश्चिमी सिंहभूम जिले के सबसे सुदूर और घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में स्थित गुदड़ी प्रखंड की आधी आबादी का संपर्क बाहरी दुनिया से कटा हुआ है. बरसात के दिनों में प्रखंड के कई गांवों का संपर्क पूरी तरह से कट जाता है. प्रखंड के 6 ग्राम पंचायतों में से तीन पंचायत टोमडेल, बांदु और कमरोड़ा कारो और कोयल नदी के पार स्थित है. पुल नहीं होने के कारण तीन पंचायत के दर्जनों गांव टापू में तब्दील हो चुका है. ऐसी स्थिति में नदी पार करने के लिए तीन पंचायतों के 17,000 ग्रामीणों का एकमात्र सहारा लकड़ी की छोटी नाव है. इस लकड़ी की छोटी नाव के सहारे ग्रामीण अपनी जान को जोखिम में डालकर उफनती नदी को पार करते हैं. इस दौरान नदी में नाव पलटने से अब तक कई लोगों की मौत भी हो चुकी है.


विकास से कोसों दूर
गुदरी प्रखंड विकास से कोसों दूर है. खासकर बांदु, टोमडेल और कमरोड़ा पंचायत नदी के पार होने के कारण प्रखंड मुख्यालय से पूरी तरह से कट जाती है. जिलिंगगुटु और बरकेला पंचायत नदी के दो छोर पर है. पुलिया नहीं होने के कारण उस क्षेत्र के लोगों को सरकार से मिलने वाली योजनाओं का लाभ सही ढंग से नहीं मिल पा रहा है. इसके साथ ही बीमार पड़ने पर लोगों को देसी इलाज का सहारा लेना पड़ता है. बरसात के दिनों में नदी को पार करने में गांव के मरीजों और गर्भवती महिलाओं को इलाज के लिए अस्पताल ले जाने में भी काफी समस्या होती है. इलाज के लिए अस्पताल समय पर नहीं पहुंच पाने से कई लोगों की मौत भी हो चुकी है. हाल के दिनों में बांदु पंचायत क्षेत्र की एक गर्भवती महिला ने स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिलने से उसका बच्चा पेट में ही मर गया. ऐसे कई लोगों की इलाज नहीं मिलने के कारण मौत भी हो चुकी है.


इसे भी पढे़ं:- खुले में फेंका जा रहा इस्तेमाल किया गया पीपीई किट, बढ़ सकता है संक्रमण का खतरा


अधिकारियों को भी लेना पड़ता है नाव का सहारा
गुदरी प्रखंड के बीडीओ और सभी कर्मचारियों को भी लकड़ी के नाव का सहारा लेना पड़ता है. प्रखंड कर्मचारी बताते हैं कि सरकार की योजनाओं को पंचायत के ग्रामीणों तक पहुंचाने और उसकी जानकारी देने के लिए भी हमलोग नाव के सहारे नदी पार कर पगडंडियों के रास्ते गांव तक पहुंचते हैं, ग्रामीणों को भी इसी तरह प्रखंड कार्यालय पहुंचना पड़ता है. लोग अपनी साइकिल, मोटरसाइकिल भी नाव के सहारे पार करते हैं.


नाव के एवज में दिया जाता है धान
ग्रामीण बताते हैं कि इस प्रखंड के कई पंचायत क्षेत्र नदी से घिरे हुए हैं, जंहा पुल का निर्माण करवाना अति आवश्यक है. कई बार ग्रामीणों ने पुल निर्माण करवाने की मांग की, उसके बावजूद भी अब तक सिर्फ आश्वासन मिलता रहा है, लेकिन पुल का निर्माण नही हो सका है. उन्होंने बताया कि नदी में रखी गई लकड़ी की नाव भी गांव के एक व्यक्ति की है जिसे सभी गांव के लोग उपयोग करते हैं, इसके एवज में ग्रामीण साल में तीन बार अपनी स्वेच्छा से धान देते हैं.


जल्द किए जाएंगे विकास कार्य
पश्चिम सिंहभूम जिले के डीडीसी संदीप बक्शी भी मानते हैं कि गुदरी प्रखंड में ज्यादा विकास नहीं हो सका है, विकास के मामलों में पिछड़ा होने का मुख्य कारण कम्युनिकेशन साधन का न होना है, प्रखंड के अधिकतर क्षेत्र वन भूमि है, प्रखंड के विकास के लिए जिला प्रशासन निरंतर प्रयास कर रही है. उन्होंने कहा कि संजय नदी ही गुदड़ी प्रखंड के विभिन्न गांवों, पंचायतों के बीच से लगभग 9 बार गुजरी है, इसके अलावा बड़ी नदी कारो है और कारो नदी के उस पार गुदरी प्रखंड के 4 पंचायत हैं, जहां आवागमन के कोई साधन उपलब्ध नहीं है, लेकिन वह विभाग से एनओसी मिलते ही विकास के कार्य शुरू किए जाएंगे. उन्होंने बताया कि इत्तेफाक से 2001 में वे खुद उस प्रखंड में पदस्थापित थे, उस दौरान सोनुआ और गुदरी एक ही प्रखंड हुआ करते थे, जब तक उस क्षेत्र में पथ और पुल- पुलिया का निर्माण नहीं हो जाता है, तब तक बरसात के महीनों में उस क्षेत्र में आना जाना बहुत ही मुश्किल हो जाता है. जानकारी अनुसार सेरेंगदा में पुल निर्माण के लिए पिछले साल विधानसभा चुनाव से पहले टेंडर भी हो चुका है, लेकिन पुल का निर्माण कार्य अब तक शुरू नहीं हो सका है.

चाईबासा: पश्चिम सिंहभूम जिला का गुदरी प्रखंड का पोड़ाहाट अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र है, जहां एक पुल के इंतजार में लोग 7 दशकों से ग्रामीण नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं. इस क्षेत्र में सरकारी योजनाएं भी धरातल पर नहीं उतर पाई है. क्षेत्र में आवागमन की सुविधाएं अब तक नहीं है, जिससे लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.

देखें स्पेशल स्टोरी

पुल के अभाव में ग्रामीणों को परेशानी
पश्चिमी सिंहभूम जिले के सबसे सुदूर और घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में स्थित गुदड़ी प्रखंड की आधी आबादी का संपर्क बाहरी दुनिया से कटा हुआ है. बरसात के दिनों में प्रखंड के कई गांवों का संपर्क पूरी तरह से कट जाता है. प्रखंड के 6 ग्राम पंचायतों में से तीन पंचायत टोमडेल, बांदु और कमरोड़ा कारो और कोयल नदी के पार स्थित है. पुल नहीं होने के कारण तीन पंचायत के दर्जनों गांव टापू में तब्दील हो चुका है. ऐसी स्थिति में नदी पार करने के लिए तीन पंचायतों के 17,000 ग्रामीणों का एकमात्र सहारा लकड़ी की छोटी नाव है. इस लकड़ी की छोटी नाव के सहारे ग्रामीण अपनी जान को जोखिम में डालकर उफनती नदी को पार करते हैं. इस दौरान नदी में नाव पलटने से अब तक कई लोगों की मौत भी हो चुकी है.


विकास से कोसों दूर
गुदरी प्रखंड विकास से कोसों दूर है. खासकर बांदु, टोमडेल और कमरोड़ा पंचायत नदी के पार होने के कारण प्रखंड मुख्यालय से पूरी तरह से कट जाती है. जिलिंगगुटु और बरकेला पंचायत नदी के दो छोर पर है. पुलिया नहीं होने के कारण उस क्षेत्र के लोगों को सरकार से मिलने वाली योजनाओं का लाभ सही ढंग से नहीं मिल पा रहा है. इसके साथ ही बीमार पड़ने पर लोगों को देसी इलाज का सहारा लेना पड़ता है. बरसात के दिनों में नदी को पार करने में गांव के मरीजों और गर्भवती महिलाओं को इलाज के लिए अस्पताल ले जाने में भी काफी समस्या होती है. इलाज के लिए अस्पताल समय पर नहीं पहुंच पाने से कई लोगों की मौत भी हो चुकी है. हाल के दिनों में बांदु पंचायत क्षेत्र की एक गर्भवती महिला ने स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिलने से उसका बच्चा पेट में ही मर गया. ऐसे कई लोगों की इलाज नहीं मिलने के कारण मौत भी हो चुकी है.


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अधिकारियों को भी लेना पड़ता है नाव का सहारा
गुदरी प्रखंड के बीडीओ और सभी कर्मचारियों को भी लकड़ी के नाव का सहारा लेना पड़ता है. प्रखंड कर्मचारी बताते हैं कि सरकार की योजनाओं को पंचायत के ग्रामीणों तक पहुंचाने और उसकी जानकारी देने के लिए भी हमलोग नाव के सहारे नदी पार कर पगडंडियों के रास्ते गांव तक पहुंचते हैं, ग्रामीणों को भी इसी तरह प्रखंड कार्यालय पहुंचना पड़ता है. लोग अपनी साइकिल, मोटरसाइकिल भी नाव के सहारे पार करते हैं.


नाव के एवज में दिया जाता है धान
ग्रामीण बताते हैं कि इस प्रखंड के कई पंचायत क्षेत्र नदी से घिरे हुए हैं, जंहा पुल का निर्माण करवाना अति आवश्यक है. कई बार ग्रामीणों ने पुल निर्माण करवाने की मांग की, उसके बावजूद भी अब तक सिर्फ आश्वासन मिलता रहा है, लेकिन पुल का निर्माण नही हो सका है. उन्होंने बताया कि नदी में रखी गई लकड़ी की नाव भी गांव के एक व्यक्ति की है जिसे सभी गांव के लोग उपयोग करते हैं, इसके एवज में ग्रामीण साल में तीन बार अपनी स्वेच्छा से धान देते हैं.


जल्द किए जाएंगे विकास कार्य
पश्चिम सिंहभूम जिले के डीडीसी संदीप बक्शी भी मानते हैं कि गुदरी प्रखंड में ज्यादा विकास नहीं हो सका है, विकास के मामलों में पिछड़ा होने का मुख्य कारण कम्युनिकेशन साधन का न होना है, प्रखंड के अधिकतर क्षेत्र वन भूमि है, प्रखंड के विकास के लिए जिला प्रशासन निरंतर प्रयास कर रही है. उन्होंने कहा कि संजय नदी ही गुदड़ी प्रखंड के विभिन्न गांवों, पंचायतों के बीच से लगभग 9 बार गुजरी है, इसके अलावा बड़ी नदी कारो है और कारो नदी के उस पार गुदरी प्रखंड के 4 पंचायत हैं, जहां आवागमन के कोई साधन उपलब्ध नहीं है, लेकिन वह विभाग से एनओसी मिलते ही विकास के कार्य शुरू किए जाएंगे. उन्होंने बताया कि इत्तेफाक से 2001 में वे खुद उस प्रखंड में पदस्थापित थे, उस दौरान सोनुआ और गुदरी एक ही प्रखंड हुआ करते थे, जब तक उस क्षेत्र में पथ और पुल- पुलिया का निर्माण नहीं हो जाता है, तब तक बरसात के महीनों में उस क्षेत्र में आना जाना बहुत ही मुश्किल हो जाता है. जानकारी अनुसार सेरेंगदा में पुल निर्माण के लिए पिछले साल विधानसभा चुनाव से पहले टेंडर भी हो चुका है, लेकिन पुल का निर्माण कार्य अब तक शुरू नहीं हो सका है.

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