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पश्चिम सिंहभूम के इस अस्पताल में मरीजों का नहीं होता इलाज, बेबस ग्रामीण कर रहे निजी क्लीनिक का रुख

पश्चिम सिंहभूम जिले के नोवामुंडी प्रखंड की 18 पंचायतों के 74 गांव में रह रहे लोगों को चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने के मद्देनजर साल 1990 में 30 बेड वाला एक रेफरल अस्पताल बड़ाजामदा में सरकार की ओर से बनाया गया. हालांकि ये अस्पताल विभाग की हीलाहवाली के चलते खंडहर में तब्दील हो गया है.

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Published : Aug 4, 2019, 12:00 AM IST

पश्चिम सिंहभूम स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र

चाईबासा: डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया, स्मार्ट इंडिया, हेल्थ फॉर ऑल के बीच लोगों को बुनियादी स्वास्थ्य सेवा तक उपलब्ध नहीं होना, मौजूदा हाईटेक व्यवस्था को आईना दिखाने के लिए काफी हैं. राज्य और केंद्र सरकार स्वास्थ्य सेवा को आम लोगों तक पहुंचाने का दावा तो कर रही है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है.

वीडियो में देखें पूरी खबर

दरअसल, पश्चिम सिंहभूम जिले के नोवामुंडी प्रखंड की 18 पंचायतों के 74 गांव में रह रहे लोगों को चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने के मद्देनजर साल 1990 में 30 बेड वाला एक रेफरल अस्पताल बड़ाजामदा में सरकार की ओर से बनाया गया. हालांकि ये अस्पताल विभाग की हीलाहवाली के चलते खंडहर में तब्दील हो गया है.

लापरवाह और हांफती सरकारी व्यवस्था की वजह से इस जर्जर अस्पताल के कर्मी और डॉक्टर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में लोगों का इलाज करने लगे. हालांकि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भी ग्रामीणों का बिना इलाज किए उन्हें जान के लिए कह दिया जाता है. इससे बेबस होकर लोग निजी क्लीनिक में जाने के लिए मजबूर हैं. हालांकि रेफरल अस्पताल के डॉ बेग का कहना है कि अस्पताल आने वाले सभी मरीजों का इलाज होता है और उनको दवाएं भी दी जाती हैं.

चाईबासा: डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया, स्मार्ट इंडिया, हेल्थ फॉर ऑल के बीच लोगों को बुनियादी स्वास्थ्य सेवा तक उपलब्ध नहीं होना, मौजूदा हाईटेक व्यवस्था को आईना दिखाने के लिए काफी हैं. राज्य और केंद्र सरकार स्वास्थ्य सेवा को आम लोगों तक पहुंचाने का दावा तो कर रही है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है.

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दरअसल, पश्चिम सिंहभूम जिले के नोवामुंडी प्रखंड की 18 पंचायतों के 74 गांव में रह रहे लोगों को चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने के मद्देनजर साल 1990 में 30 बेड वाला एक रेफरल अस्पताल बड़ाजामदा में सरकार की ओर से बनाया गया. हालांकि ये अस्पताल विभाग की हीलाहवाली के चलते खंडहर में तब्दील हो गया है.

लापरवाह और हांफती सरकारी व्यवस्था की वजह से इस जर्जर अस्पताल के कर्मी और डॉक्टर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में लोगों का इलाज करने लगे. हालांकि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भी ग्रामीणों का बिना इलाज किए उन्हें जान के लिए कह दिया जाता है. इससे बेबस होकर लोग निजी क्लीनिक में जाने के लिए मजबूर हैं. हालांकि रेफरल अस्पताल के डॉ बेग का कहना है कि अस्पताल आने वाले सभी मरीजों का इलाज होता है और उनको दवाएं भी दी जाती हैं.

Intro:चाईबासा। डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया, स्मार्ट इंडिया, हेल्थ फॉर ऑल के बीच लोगों को बुनियादी स्वास्थ सेवा तक उपलब्ध नहीं होना मौजूदा हाईटेक व्यवस्था को आईना दिखाने के लिए काफी है। राज्य एवं केंद्र सरकार स्वास्थ्य सेवा को आम लोगों तक पहुंचाने का दावा तो कर रही है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है।






Body:पश्चिम सिंहभूम जिले के नोवामुंडी प्रखंड की 18 पंचायतों के 74 गांव में रह रहे लगभग 1 लाख 75 हजार लोगों को चिकित्सा सुविधा बहाल करने की जिम्मेदारी लिए 1990 के दशक में बना 30 बेड वाला बड़ाजामदा रेफरल अस्पताल स्वयं बीमार हो गया है। अस्पताल उचित रखरखाव के अभाव में खंडहर में तब्दील हो चुका है।

बड़ाजामदा रेफरल अस्पताल की स्थापना का उद्देश्य था कि बड़ाजामदा पंचायत के अलावा आसपास के बसे गांवों के लोगों को सुलभ स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध हो। लेकिन व्यवस्था के डंक से आज तक इस अस्पताल को मुक्ति नही मिल सकी है। लोगों को अभी तक अस्पताल से समुचित स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध नहीं हो सकी है। अब तो लोगों को यह लगने लगा है कि इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है वीरान एवं जर्जर हालत में इस अस्पताल की स्थिति खुद बयां करने के लिए काफी है।

हालात यह है कि सरकारी स्वास्थ्य सेवा की लचर स्थिति से निजी स्वास्थ्य सेवा का कारोबार दिन-ब-दिन फल फूल रहा है। नोवामुंडी प्रखंड की अगर हम बात करें तो सरकार की व्यवस्था एवं उसके तमाम दावों के बीच स्वास्थ्य सेवा लोगों के पहुंचे काफी दूर है। लापरवाह एवं हांफती व्यवस्था के चलते मजबूरी में लोग निजी क्लीनिक एवं निजी चिकित्सकों के शरण में जाने को मजबूर है।

नोवामुंडी प्रखंड का रेफरल अस्पताल बड़ाजामदा में स्वास्थ सुविधाओं के लिए मरीज तरस रहे हैं। अस्पताल के स्वास्थ कर्मी अब खंडहर बन चुके रेफरल अस्पताल को छोड़ कर पास के ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में गर्भवती महिलाओं एवं एक दुक्का मरीजों को डॉक्टर दवा की पर्ची थमा देते हैं। साथ ही निजी क्लिनिकों से दवा खरीदने की सलाह दे देते हैं या फिर सीधा चाईबासा सदर अस्पताल रेफर कर दिया जाता है।

बड़ाजामदा के आसपास व सुदूरवर्ती गांव से मरीजों को अस्पताल तक लाने के लिए एक एम्बुलेंस तक नहीं है। बड़ाजामदा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीन दो अतिरिक्त एवं 22 उपकेंद्र संचालित हैं। जिसमे नोवामुंडी व जेटेया स्वास्थ्य उपकेंद्र के अलावा टोंटपोसी, जामपानी, किरीबुरू व बरायबुरू में उपकेंद्र भवन है। जबकि अन्य 18 उपकेंद्रों के पास अपना भवन नही है। कई एएनएम भाड़े के मकान, किसी रिश्तेदार या परिचित के मकान में अपने क्षेत्र के रोगियों का इलाज कर रही हैं।

हर मर्ज की एक दवा, रेफर-
ग्रामीणों की माने तो अस्पताल में इलाज करवाने आने वाले लगभग हर मर्ज की सिर्फ एक ही दवा है, मरीजो को रेफर करना। बड़ाजामदा रेफरल अस्पताल के डॉक्टर सुविधा व संसाधन के अभाव में मजबूरन रेफेर कर दिया करते हैं।





Conclusion:रेफर अस्पताल के डॉ बेग बताते हैं कि इतिहास बताता है कि जिस जगह हम लोग बैठे हैं वह बिल्डिंग अंग्रेजो के द्वारा बनाई गई थी और इस अस्पताल की स्तिथि काफी अच्छी है जबकि ऐसा अस्पताल के नाम पर एक बिल्डिंग 1986 में बनाई गई थी उसकी स्थिति ऐसी है कि जानवर भी नहीं रह सकते। उन्होंने बताया कि 1986 में बिहार सरकार के समय हेल्थ इंजीनियरिंग सेल द्वारा यह बिल्डिंग का निर्माण किया गया था जो अब खंडहर में तब्दील हो गई है। जिस कारण हम लोग पुराने बिल्डिंग में अपनी सेवा दे रहे हैं।
डॉ के मुताबिक इस अस्पताल में दवाएं है और आने वाले सभी मरीजों को लगभग दवा यदि जाती है लेकिन यहां केवल गर्भवती महिलाओं को भर्ती करवाकर प्रसव करवाया जाता है इस कारण इस अस्पताल को लोग प्रसव अस्पताल के नाम से भी जानते हैं। रेफरल अस्पताल के खंडहर हो जाने के बाद बीहड़ जंगल के बीच एक नए अस्पताल का निर्माण रूटूगुटू गांव में किया गया है।

बाईट1- कृष्णा चंद्र बोबोंगा , स्थानीय मजदूर
बाईट 2- परमिला गोंड, स्थानीय महिला
बाईट 3- निर्भय कुमार सिंह, स्थानीय व्यापारी
बाईट 4 - गुरूबारी पिंगुवा, स्थानीय महिला
बाईट 5 - डॉक्टर बेग , रेफरल अस्पताल के डॉक्टर

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