चाईबासा: शहीदों की याद में दो फरवरी को सेरेंगसिया शहीद स्मारक पर प्रत्येक साल मेला लगता है, जहां श्रद्धा से सिर झुक जाते हैं. कोल्हान के 'हो समुदाय' के लोगों ने कभी भी अग्रेंजों की गुलामी नहीं स्वीकारी थी. कोल्हान की ओर अग्रेंजों की बढ़ते साम्राज्य कोल्हान में आकर तब थम गई थी जब कोल्हान के आदिवासी 'हो समुदाय' के लोगों ने उनकी गुलामी करने से इंकार कर दिया था, तब आदिवासी 'हो समुदाय' के लोगों ने टोंटो प्रखंड के सेरेंगसिया घाटी में अग्रेंजों के साथ युद्ध करते हुए अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे.
इस उलगुलान में कई आदिवासी 'हो' वीरगति को प्राप्त हुए, तो कई लोगों को अंग्रेजों ने अपने छल से पकड़कर जेल भेज दिया था और कुछ दिनों बाद फांसी दे दी थी. वहीं, आदिवासी 'हो' समाज महासभा के पूर्व महासचिव मुकेश बिरूवा सेरेंगसिया की घटना के बारे में जानकारी देते हुए बताते हैं कि सेरेंगसिया घाटी की लड़ाई पहली ऐसी लड़ाई थी जो आदिवासी 'हो' लोगों ने अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध के मैदान में जीती थी. यह आदिवासी समुदाय की ओर से लड़ी गई पहली लड़ाई भी थी.
साउथ वेस्ट फ्रंटियर एजेंसी का पोलिटिकल एजेंट विलकिंग्सन को बनाया गया और कोल्हान को अपने अधीन बनाने की जिम्मेदारी दी गई, तो 'पोटो हो' और उनके सहयोगियों ने इसे स्वीकार करने से इंकार कर दिया था. उन्होंने कोल्हान को किसी भी सूरत में गुलामी की स्थिति में देखना ठीक नहीं समझा इसलिए युद्ध की रणनीति बनाने के लिए 21 से ज्यादा गांव के लोगों को जो बलंडिया, पोकम-राजा बसा, जगन्नाथपुर इत्यादि जगहों पर लोग लगातार बैठकें करके लोगों को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ इकट्ठे किए और जब अंग्रेजों को इनकी रणनीति की जानकारी हो गई. जानकारी मिलने के बाद कैप्टन आर्म स्ट्रांग को 400 पैदल सेना सात घुड़सवार और सरायकेला से 200 से ज्यादा सहायक के साथ सहायक टिकेल को कुछ 'हो' लोगों के साथ दक्षिण की ओर से 'पोटो हो' के अभियान को नियंत्रित करने के लिए भेजा.
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19 नवंबर 1837 की सुबह सेरेंगसिया गांव में अंग्रेजों की सेना ने मोर्चा संभाल लिया, फिर जैसे ही वे लोग सेरेंगसिया घाटी में प्रवेश किए, वैसे ही 'हो' लड़ाकों ने तीर धनुष और विशेष तरह के तीर चलाने वाले यंत्र, विशेष तरह का गुलेल आदि का इस्तेमाल करके अंग्रेजी सेना को पीछे भागने के लिए मजबूर कर दिय़ा, इस गोरिल्ला युद्ध में 'हो' योद्धाओं ने प्रकृति का सहारा बखूबी लिया.
जिसमें आंवला, हरड़ और बहेड़ा के फलों को घाटी के रास्ते में पहले से बिछा दिया गया था, ताकि घोड़ों के साथ अंग्रेजी सेना जब आएगी तो उसमें फिसल कर गिर जाएगी और गिरेगी तो यह लोग ऊपर से तीर की बारिश करके उन्हें परास्त कर देंगे. इतना ही नहीं 'हो' योद्धाओं ने मधुमक्खी के छत्ते को भी अंग्रेजी सेना के खिलाफ इस्तेमाल किया था. अंततः विलकिंग्सन की सेना जो कैप्टन आर्मस्ट्रांग और टिकेल के नेतृत्व में सेरेंगसिया घाटी को फतेह करने के लिए गई थी, बैरंग वापस भाग गई.
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यह आदिवासियों के इतिहास में एक ऐसी लड़ाई है, जो अंग्रेजों ने भी अपने इतिहास में लिखना ठीक नहीं समझा. अपनी हार से बौखलाए अंग्रेजों ने 'पोटो हो' और सहयोगियों जो कि 2000 की संख्या में थे, उन्हें पकड़ने के लिए अपने विशेष स्काउट लगाए. 8 दिसंबर 1837 को उस स्काउट ने 'पोटो हो' का पता लगा लिया और उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया. विलकिंग्सन 18 दिसंबर की शाम को जगन्नाथपुर में टिकेल के शिविर में पहुंचे, विलकिंग्सन हाथी से गिर गए थे, फिर भी कोर्ट की सुनवाई के लिए उसी स्थिति में पहुंचे. उन्होंने 25 दिसंबर से शुरू की और 1 सप्ताह में 31 दिसंबर तक खुद ही जज बनकर पांच 'हो' लड़ाकों को मौत की सजा और 79 'हो' लोगों को कारावास की विभिन्न सजाएं दी.
1 जनवरी 1838 को 'पोटो हो', 'नारा हो' और बुड़ाय को जगन्नाथपुर में और 2 जनवरी को 'बोराह हो' और 'पांडुवा हो' को सेरेंगसिया में सार्वजनिक रूप से फांसी दे दी गई. ज्ञात हो विलकिंग्सन को इस घटनाक्रम के लिए लंदन में बोर्ड ने चेतावनी दी कि कमांडर के तौर पर अपने ही बनाए गए कैदियों का न्यायधीश विलकिंग्सन खुद कैसे बन गए.
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जहां तक कड़िया डिबर बानरा (पोटो हो) की बात है, तो इसमें कोई दोहराय नहीं कि वह सदर प्रखंड के राजाबासा गांव के ही थे. पोड़ाहाट राजा जयसिंह हमेशा राजाबासा पर आक्रमण कर टैक्स उगाही का प्रयास करते रहे थे, असफल होने पर अंग्रेजों का सहारा लेकर उसी राजाबासा से कोल्हान में घुसने का प्रयास किया जाता रहा था. इस कारण कड़िया डिबर बानरा(पोटो हो), पिता का नाम करंट सेलाए बानरा था, उनका छोटा भाई अंडिया सुरा बानरा था. जिन्होंने अंग्रेजों से लड़ने के लिए एक व्यापक योजना बनाई क्योंकि सदर प्रखंड वाला राजाबासा हमेशा पोड़ाहाट राजा तो कभी अंग्रेज आ दमकते थे.
दुर्गम जगह सेरेंगसिया घाटी, बलंडिया और पोकम राजाबासा, जो जैंतगढ़ के बगल में है उसे अपना केंद्र बना कर अंग्रेजों के खिलाफ उलगुलान का ऐलान किया था. ये लोग सदर प्रखंड के राजाबासा से थे इसलिए उनके बस्ती को पोकम के लोगों ने राजाबासा ही नाम दे दिया था. 19 नवंबर 1837 को जब अंग्रेजी सेना को सेरेंगसिया घाटी में हार का सामना करना पड़ा, तब अंग्रेजों ने कड़िया डिबर बानरा (पोटो हो) को खोजने का प्रयास शुरू कर दिया. कैमरा का आविष्कार 1815 के आसपास में हुआ था लेकिन1837-38 में वो कैमरा फील्ड में ले जाने लायक नहीं था यानी की फील्ड में कैमरा का उपयोग संभव नहीं था.
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स्वाभाविक रूप से उस हालात में कड़िया डिबर बानरा(पोटो हो) का फोटो खींचना भी संभव नहीं था और अगर कड़िया डिबर बानरा(पोटो हो) का फोटो आ गया तो 'नारा हो', 'बड़ाय हो' का भी फोटो आ सकता था लेकिन ऐसा नहीं हुआ, उसका कारण यह था कि अंग्रेजों ने कड़िया डिबर बानरा(पोटो हो) को खोजने के लिए स्केच का सहारा लिया.
जानकार लोगों से उसका स्केच बनाकर बालंडिया और आसपास के गांव में चिपका कर जिंदा या मुर्दा पकड़ने वाले को इनाम की घोषणा की गई. 'हो लोग' 'पोटोवा कन हो' कह कर संबोधित करते थे, तो अंग्रेजों ने उसे 'पोटो हो' के रूप में दस्तावेजों में अंकित किया और असली नाम कड़िया डिबर बानरा इस नकली नाम के सामने गुमनाम हो गया.