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चाईबासा में योग्य व्यक्तियों को दिया जाएगा वन अधिकार पट्टा, आश्रितों को विशेष शिविर के माध्यम से किया जाएगा चयनित

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Published : Nov 13, 2020, 5:34 PM IST

झारखंड में जो वनाधिकार पट्टा पाने की अहर्ता रखते हैं उन सभी को विशेष शिविर के माध्यम से चिन्हित कर वन अधिकार पट्टा दिया जाएगा. उपायुक्त ने बताया कि बैठक के बाद जिला स्तर पर भी आगामी 18 दिसंबर तक बैठक निर्धारित करने की योजना तय की है और सभी संबंधित दस्तावेज चाहे व्यक्ति विशेष का हो या सामुदायिक स्तर पर वन अधिकार पट्टा दिलाने का हो तैयार कर लिए जाएंगे.

Forest rights lease will be given to deserving persons in Chaibasa
उपायुक्त अरवा राजकमल

चाईबासा: झारखंड सरकार की प्राथमिकता है कि वैसे सभी लाभुक जो वनाधिकार पट्टा पाने की अहर्ता रखते हैं, चाहे वह आदिवासी समुदाय के लोग हो या किसी अन्य जाति के, उन सभी को विशेष शिविर के माध्यम से चिन्हित करते हुए वन अधिकार पट्टा दिया जाएगा. पश्चिमी सिंहभूम जिला उपायुक्त अरवा राजकमल ने बताया कि इसके लिए जिले के सभी जनप्रतिनिधि, मानकी-मुंडा से मेरा आग्रह रहेगा कि 13 दिसंबर 2005 के पहले से क्षेत्र में रहने वाले छूटे हुए व्यक्ति जिन्हें वन अधिकार पट्टा नहीं मिला है, उन सभी को चिन्हित करने में प्रशासन का सहयोग दें.

उपायुक्त ने बताया कि निर्धारित तिथि से पहले आदिवासी समाज के व्यक्ति यदि एक पीढ़ी से वन भूमि पर वासित हैं, खेती कर रहे हैं या दूसरे जाति के हैं तो तीन पीढ़ी यानि 75 वर्ष से वन भूमि पर वासित हैं या वन भूमि का उपयोग कर रहे हैं, ऐसे सभी व्यक्तियों को चिन्हित करते हुए वन अधिकार पट्टा से अच्छादित कर सकते हैं. उन्होंने ने बताया कि संख्या के हिसाब से समस्त झारखंड में इसी जिले में सबसे ज्यादा वन अधिकार पट्टा दिया गया था और मैं अभी भी यह मानता हूं की बहुत छुटे हुए आदिवासी भाई-बहन हैं, जो जानकारी के अभाव में वन अधिकार पट्टा के लिए आवेदन जमा नहीं कर पाए हैं, यह ध्यान रहे कि निर्धारित तिथि के पूर्व से रहने वाले ही व्यक्ति इसके लिए योग्य हैं. तिथि के बाद बसने वाले या वन भूमि का प्रयोग करने वाले व्यक्ति इसके लिए योग्य नहीं है.


इसे भी पढे़ं:-चाईबासा: उपायुक्त ने की कई विभागों की समीक्षा, दिए दिशा-निर्देश


उपायुक्त ने बताया कि सामुदायिक स्तर पर वन अधिकार पट्टा देने के लिए कुछ आहर्ताएं हैं, सामुदायिक स्तर पर जंगल की उपज का लाभ उठाया जा रहा हो या, वन भूमि का प्रयोग पशु चारागाह के रूप में किया जा रहा हो, या वन भूमि का प्रयोग करते हुए आवागमन कर रहे हो, या वन क्षेत्र को व्यवस्थित कर रहे हो, ऐसे सभी लोग इसके अंतर्गत आएंगे. उन्होंने बताया कि वन अधिकार पट्टा का मतलब यह नहीं है कि आप वन को काट सकते हैं, लेकिन आप सिर्फ वन भूमि का प्रयोग कर सकते हैं. उपायुक्त ने बताया कि जिला अंतर्गत सभी ग्रामीण क्षेत्रों में नियमानुसार ग्राम सभा आयोजित करते हुए 28 नवंबर तक संबंधित प्रतिवेदन अपने-अपने अनुमंडल कार्यालय में जमा कर सकते हैं, लेकिन इस प्रक्रिया में अनुमंडल पदाधिकारी को छोड़कर कोई भी पदाधिकारी सक्षम पदाधिकारी नहीं है. वंचित व्यक्ति इसका लाभ ले सकें इसलिए सभी अंचलाधिकारी को भी सहयोग देने के लिए निर्देशित किया गया है और 2 दिसंबर को एक साथ जिले के तीनों अनुमंडल में वनाधिकार समिति का बैठक निर्धारित किया गया है, प्राप्त सभी दावों का निष्पादन किया जाएगा.

उपायुक्त ने बताया कि बैठक के बाद जिला स्तर पर भी आगामी 18 दिसंबर तक बैठक निर्धारित करने की योजना तय की गई है और सभी संबंधित दस्तावेज चाहे व्यक्ति विशेष का हो या सामुदायिक स्तर पर वन अधिकार पट्टा दिलाने का हो तैयार कर लिए जाएंगे, साथ ही जब झारखंड सरकार के कार्यकाल का 1 साल पूरा होता है तो एक आयोजन के माध्यम से छूटे हुए सभी योग्य लाभुक को तय सीमा के अंदर वन अधिकार पट्टा उपलब्ध करवाने के लिए जिला प्रशासन कार्य कर रही है.

चाईबासा: झारखंड सरकार की प्राथमिकता है कि वैसे सभी लाभुक जो वनाधिकार पट्टा पाने की अहर्ता रखते हैं, चाहे वह आदिवासी समुदाय के लोग हो या किसी अन्य जाति के, उन सभी को विशेष शिविर के माध्यम से चिन्हित करते हुए वन अधिकार पट्टा दिया जाएगा. पश्चिमी सिंहभूम जिला उपायुक्त अरवा राजकमल ने बताया कि इसके लिए जिले के सभी जनप्रतिनिधि, मानकी-मुंडा से मेरा आग्रह रहेगा कि 13 दिसंबर 2005 के पहले से क्षेत्र में रहने वाले छूटे हुए व्यक्ति जिन्हें वन अधिकार पट्टा नहीं मिला है, उन सभी को चिन्हित करने में प्रशासन का सहयोग दें.

उपायुक्त ने बताया कि निर्धारित तिथि से पहले आदिवासी समाज के व्यक्ति यदि एक पीढ़ी से वन भूमि पर वासित हैं, खेती कर रहे हैं या दूसरे जाति के हैं तो तीन पीढ़ी यानि 75 वर्ष से वन भूमि पर वासित हैं या वन भूमि का उपयोग कर रहे हैं, ऐसे सभी व्यक्तियों को चिन्हित करते हुए वन अधिकार पट्टा से अच्छादित कर सकते हैं. उन्होंने ने बताया कि संख्या के हिसाब से समस्त झारखंड में इसी जिले में सबसे ज्यादा वन अधिकार पट्टा दिया गया था और मैं अभी भी यह मानता हूं की बहुत छुटे हुए आदिवासी भाई-बहन हैं, जो जानकारी के अभाव में वन अधिकार पट्टा के लिए आवेदन जमा नहीं कर पाए हैं, यह ध्यान रहे कि निर्धारित तिथि के पूर्व से रहने वाले ही व्यक्ति इसके लिए योग्य हैं. तिथि के बाद बसने वाले या वन भूमि का प्रयोग करने वाले व्यक्ति इसके लिए योग्य नहीं है.


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उपायुक्त ने बताया कि सामुदायिक स्तर पर वन अधिकार पट्टा देने के लिए कुछ आहर्ताएं हैं, सामुदायिक स्तर पर जंगल की उपज का लाभ उठाया जा रहा हो या, वन भूमि का प्रयोग पशु चारागाह के रूप में किया जा रहा हो, या वन भूमि का प्रयोग करते हुए आवागमन कर रहे हो, या वन क्षेत्र को व्यवस्थित कर रहे हो, ऐसे सभी लोग इसके अंतर्गत आएंगे. उन्होंने बताया कि वन अधिकार पट्टा का मतलब यह नहीं है कि आप वन को काट सकते हैं, लेकिन आप सिर्फ वन भूमि का प्रयोग कर सकते हैं. उपायुक्त ने बताया कि जिला अंतर्गत सभी ग्रामीण क्षेत्रों में नियमानुसार ग्राम सभा आयोजित करते हुए 28 नवंबर तक संबंधित प्रतिवेदन अपने-अपने अनुमंडल कार्यालय में जमा कर सकते हैं, लेकिन इस प्रक्रिया में अनुमंडल पदाधिकारी को छोड़कर कोई भी पदाधिकारी सक्षम पदाधिकारी नहीं है. वंचित व्यक्ति इसका लाभ ले सकें इसलिए सभी अंचलाधिकारी को भी सहयोग देने के लिए निर्देशित किया गया है और 2 दिसंबर को एक साथ जिले के तीनों अनुमंडल में वनाधिकार समिति का बैठक निर्धारित किया गया है, प्राप्त सभी दावों का निष्पादन किया जाएगा.

उपायुक्त ने बताया कि बैठक के बाद जिला स्तर पर भी आगामी 18 दिसंबर तक बैठक निर्धारित करने की योजना तय की गई है और सभी संबंधित दस्तावेज चाहे व्यक्ति विशेष का हो या सामुदायिक स्तर पर वन अधिकार पट्टा दिलाने का हो तैयार कर लिए जाएंगे, साथ ही जब झारखंड सरकार के कार्यकाल का 1 साल पूरा होता है तो एक आयोजन के माध्यम से छूटे हुए सभी योग्य लाभुक को तय सीमा के अंदर वन अधिकार पट्टा उपलब्ध करवाने के लिए जिला प्रशासन कार्य कर रही है.

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