सिमडेगा: जिले के घने जंगलों के बीच स्थित ठेठईटांगर प्रखंड अंतर्गत राजाबासा पंचायत के केसरा गांव की जनजातीय महिलाएं अपने लगन-जज्बे से बदलाव की नई इबारत लिख रहीं हैं. सामूहिक पहल से न केवल वे खुद सशक्त हो रही है बल्कि दूसरी महिलाओं के लिए भी नजीर बनी हुई हैं.
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क्या करती है ये महिलाएं: कहते हैं कि ये महिलाएं सिर्फ आम ही नहीं बल्कि गुठलियों के दाम भी निकालने में मााहिर हैं. यहीं वजह है कि ये जंगलों में निशुल्क मिलने वाले बहेरा, हर्रे, कुसुम, चिरौंजी, लेमन ग्रास, तुलसी, लाह, डोरी , इमली, इमली के बीज से हजारों रुपये कमा रही हैं. 30-35 महिलाओं को मिलाकर बनाया गया ये समूह न केवल इन प्राकृतिक चीजों का संग्रह कर रहा है बल्कि इन सबका बेहतर भंडारण, प्रोसेसिंग और बिक्री तक का काम बखूबी संभाल रही हैं.
झारखंड राज्य आजीविका मिशन से सुधरी हालत: बता दें कि पिछले कुछ वर्षों पहले सिमडेगा का राजाबासा इलाका काफी पिछड़ा माना जाता था. गांव में जाने के लिए न अच्छी सड़कें थी न ही कोई दूसरी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध थी. हालत ये था कि महिलाओं को रोजगार के लिए शराब बेचना पड़ता था. लेकिन झारखंड राज्य आजीविका मिशन प्रमोशन सोसायटी ने इन महिलाओं की तकदीर बदल दी. इस सोसाइटी से जुड़ी महिलाएं अब शराब का धंधा छोड़कर जंगलों में पाए जाने वाले औषधीय गुण वाले बीजों और फलों के संग्रह में जुटी है. उनके इस काम से महिलाओं को काफी फायदा भी मिल रहा है और सम्मान भी.
भंडारण की व्यवस्था की मांग: प्राकृतिक चीजों के संग्रहण में जुटी महिलाओं ने कहा कि अगर उन्हें भंडारण की उत्तम व्यवस्था और तकनीकी सहयोग मिले तो रिजल्ट और बेहतर हो सकता है. महिला की समूह की अध्यक्ष मोयलेन समद ने कहा कि महिलाएं अब घर के काम करने के बाद बीज संग्रह, भंडारण व प्रोसेसिंग कार्य से अर्थोपार्जन कर रही हैं. गांव में शराब नहीं बनता था बल्कि यहां की महिलाएं खुद का कार्य स्वाभिमान के साथ कर रही हैं.