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Tokyo Olympic: गोल्ड मेडल लेकर आएगी बेटी, सलीमा टेटे के माता-पिता को उम्मीदें

सलीमा टेटे (Salima Tete) देश के लिए खेल रही हैं. टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympic) से गोल्ड मेडल की उम्मीद हर हिंदुस्तानी को है. सिमडेगा में बैठे उनकी माता और पिता की भी निगाहें सलीमा पर है. आस है कि उनकी बेटी देश के लिए उनके लिए स्वर्ण पदक (Gold Medal) लेकर आए यही उनकी शुभकामनाएं भी हैं.

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सलीमा टेटे के माता-पिता को उम्मीदें
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Published : Jul 26, 2021, 8:33 PM IST

Updated : Jul 27, 2021, 12:12 PM IST

सिमडेगा: वो नाम जो आज से कुछ वर्ष पूर्व तक गुमनाम था, आज हर भारतीय की जुबां पर है. सलीमा टेटे (Salima Tete) जिससे लाखों लोगों को उम्मीद हैं कि वो टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympic) में गोल्ड मेडल (Gold Medal) जीतकर वापस आएंगी. सिमडेगा प्रखंड अंतर्गत एक छोटे से गांव बड़कीछापर से निकली सलीमा आज विश्व पटल पर इतिहास लिखने के लिए दौड़ पड़ी हैं.

इसे भी पढ़ें- Tokyo Olympics 2020: महिला हॉकी में नीदरलैंड से भारत का मुकाबला, निक्की और सलीमा पर सबकी नजरें


हॉकी की नर्सरी कहे जाने वाले इस सिमडेगा जिला की बेटी से जिला ही नहीं बल्कि देश और राज्य के सभी लोगों को मेडल की उम्मीदें हैं. सलीमा टेटे के माता-पिता भी अपनी बेटी से काफी आस लगाए हुए हैं.

देखें पूरी खबर

सलीमा टेटे के पिता सुलकसन टेटे कहते हैं कि उन्हें इस बात की काफी खुशी और गर्व है कि उनकी बेटी ओलंपिक खेलने टोक्यो गई हैं. उन्हें पूरी आशा है कि उनकी बेटी सलीमा देश के लिए गोल्ड मेडल लेकर लौटेंगी. साथ ही कहते हैं कि उनकी शुभकामनाएं हैं कि उनकी बेटी और पूरी भारतीय टीम जीत हासिल करें और विदेश की धरती पर अपने देश का नाम रोशन करें.

सलीमा की छोटी बहन महिमा टेटे कहती हैं कि केवल उनका परिवार ही नहीं पूरा गांव, जिलावासी काफी खुश हैं. वो सभी आशान्वित हैं कि सलीमा गोल्ड मेडल जीतकर वापस सिमडेगा आएगी. जब वह जीतकर आएगी तो पूरे गांव वाले सलीमा का स्वागत करने सिमडेगा जाएंगे.

बड़कीछापर गांव सिमडेगा जिला के सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्र में गिना जाता है. जहां पहुंचने के लिए वर्तमान में सड़के कमोबेश ठीक है, पर नेटवर्क की बदहाल स्थिति और रोजगार का अभाव साफ तौर पर देखने को मिलता है. जहां आज भी अधिकांश लोग खेती और वनोत्पाद पर निर्भर हैं. ऐसे एक छोटे से गांव से निकलकर ओलंपिक तक का सफर सलीमा का कितना संघर्षपूर्ण रहा होगा, इसका अंदाजा लगा पाना काफी मुश्किल प्रतीत होता है.

इसे भी पढ़ें- हॉकी झारखंड के अध्यक्ष से जाने क्या है निक्की और सलीमा की रणनीति, टोक्यो ओलंपिक में कैसे मिलेगा स्वर्ण


पिता ने हॉकी स्टिक पकड़ाकर दिखायी थी राह
सलीमा जो हॉकी की नर्सरी कहे जाने वाले सिमडेगा से निकलकर आज विश्व पटल पर पहुंच चुकी हैं. उसके हॉकी के पहले गुरु कोई और नहीं उसके पिता सुलकसन टेटे हैं. जिन्होंने घर पर ही सलीमा को हॉकी खेलना सिखाया और सर्वप्रथम लट्ठाखम्हन हॉकी प्रतियोगिता में शामिल कराकर उसे आगे की राह दिखाई. जिसके बाद सलीमा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

सिमडेगा: वो नाम जो आज से कुछ वर्ष पूर्व तक गुमनाम था, आज हर भारतीय की जुबां पर है. सलीमा टेटे (Salima Tete) जिससे लाखों लोगों को उम्मीद हैं कि वो टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympic) में गोल्ड मेडल (Gold Medal) जीतकर वापस आएंगी. सिमडेगा प्रखंड अंतर्गत एक छोटे से गांव बड़कीछापर से निकली सलीमा आज विश्व पटल पर इतिहास लिखने के लिए दौड़ पड़ी हैं.

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हॉकी की नर्सरी कहे जाने वाले इस सिमडेगा जिला की बेटी से जिला ही नहीं बल्कि देश और राज्य के सभी लोगों को मेडल की उम्मीदें हैं. सलीमा टेटे के माता-पिता भी अपनी बेटी से काफी आस लगाए हुए हैं.

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सलीमा टेटे के पिता सुलकसन टेटे कहते हैं कि उन्हें इस बात की काफी खुशी और गर्व है कि उनकी बेटी ओलंपिक खेलने टोक्यो गई हैं. उन्हें पूरी आशा है कि उनकी बेटी सलीमा देश के लिए गोल्ड मेडल लेकर लौटेंगी. साथ ही कहते हैं कि उनकी शुभकामनाएं हैं कि उनकी बेटी और पूरी भारतीय टीम जीत हासिल करें और विदेश की धरती पर अपने देश का नाम रोशन करें.

सलीमा की छोटी बहन महिमा टेटे कहती हैं कि केवल उनका परिवार ही नहीं पूरा गांव, जिलावासी काफी खुश हैं. वो सभी आशान्वित हैं कि सलीमा गोल्ड मेडल जीतकर वापस सिमडेगा आएगी. जब वह जीतकर आएगी तो पूरे गांव वाले सलीमा का स्वागत करने सिमडेगा जाएंगे.

बड़कीछापर गांव सिमडेगा जिला के सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्र में गिना जाता है. जहां पहुंचने के लिए वर्तमान में सड़के कमोबेश ठीक है, पर नेटवर्क की बदहाल स्थिति और रोजगार का अभाव साफ तौर पर देखने को मिलता है. जहां आज भी अधिकांश लोग खेती और वनोत्पाद पर निर्भर हैं. ऐसे एक छोटे से गांव से निकलकर ओलंपिक तक का सफर सलीमा का कितना संघर्षपूर्ण रहा होगा, इसका अंदाजा लगा पाना काफी मुश्किल प्रतीत होता है.

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पिता ने हॉकी स्टिक पकड़ाकर दिखायी थी राह
सलीमा जो हॉकी की नर्सरी कहे जाने वाले सिमडेगा से निकलकर आज विश्व पटल पर पहुंच चुकी हैं. उसके हॉकी के पहले गुरु कोई और नहीं उसके पिता सुलकसन टेटे हैं. जिन्होंने घर पर ही सलीमा को हॉकी खेलना सिखाया और सर्वप्रथम लट्ठाखम्हन हॉकी प्रतियोगिता में शामिल कराकर उसे आगे की राह दिखाई. जिसके बाद सलीमा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

Last Updated : Jul 27, 2021, 12:12 PM IST
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