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8 लाख 70 हजार खर्च करके भी स्टेडियम की जमीन तक समतल नहीं कर पाए संवेदक, डेढ़ साल अधूरा है निर्माण - Simdega News

हॉकी नर्सरी के नाम से प्रसिद्ध सिमडेगा में हॉकी स्टेडियम बनाने के नाम पर भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है. ताजा मामला बानो और बोलबा के हॉकी स्टेडियम की है, जहां लाखों रुपये खर्च करने के बावजूद डेढ़ सालों में यहां की जमीन तक समतल नहीं कराई जा सकी है (Bano and Bolba hockey stadiums are incomplete). बच्चों को पथरीली और कंकरीली मैदान में प्रैक्टिस कराई जाती है. स्टेडियम को लेकर ना तो विभाग गांभीर है और ना ही संवेदक.

Bano and Bolba hockey stadiums are incomplete
अधूरे पड़े हॉकी स्टेडियम के निर्माण कार्य
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Published : Jan 7, 2023, 5:29 PM IST

देखें संवाददाता मुकेश कुमार की रिपोर्ट

सिमडेगा: हॉकी की नर्सरी में हॉकी स्टेडियम निर्माण के नाम पर खानापूर्ति कर लाखों रुपए का बंदरबांट किए जाने के कई मामले अब तक सामने आये हैं, जिससे संबंधित खबर को ईटीवी भारत ने प्रमुखता के साथ प्रकाशित भी किया है, लेकिन आज हम आपको प्रोजेक्ट बालिका उच्च विद्यालय बानो और एसएस बालिका उच्च विद्यालय बोलबा के हॉकी स्टेडियम की स्थिति बतायेंगे. जिसमें लाखों रुपए की सरकारी राशि खर्च करने के बावजूद हॉकी स्टेडियम को अधूरा छोड़ दिया गया है. लगभग डेढ़ साल से यह स्टेडियम आधा अधूरा हा पड़ा हुआ है (Bano and Bolba hockey stadiums are incomplete).

ये भी पढ़ें: भारतीय महिला हॉकी टीम को झारखंड सरकार करें पुरस्कृत, सिमडेगा हॉकी संघ ने की मांग

प्रोजेक्ट बालिका उच्च विद्यालय बानो और एसएस बालिका उच्च विद्यालय बोलबा, दोनों स्कूलों को हॉकी का डे बोर्डिंग सेंटर बनाया गया है. जहां छात्राओं को हॉकी की शिक्षा देने के लिए कोच की नियुक्ति की गई है. पथरीले और कंकड़ के पहाड़ वाले खेल मैदान में बच्चों को कैसे प्रैक्टिस कराई जाती होगी, यह आश्चर्य की बात है. प्रत्येक स्टेडियम की लागत 14,51,100 रुपये है. सरकार की तरफ से 8,70,660 की राशि का भुगतान भी संवेदक को कर दिया गया है, इसके बावजूद यहां की जमीन तक समतल नहीं कराई जा सकी है. इन दोनों स्टेडियमों की हालत देखकर तो भ्रष्टाचार शब्द भी छोटा पड़ जाए.

दोनों स्टेडियम निर्माण में लगे संवेदकों को क्रमशः 4,35,330 राशि का भुगतान किया जा चुका है. स्टेडियम में चाहरदीवारी, पिलर को देखकर भ्रष्टाचार के लेवल का अंदाजा लगाया जा सकता है. लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व इन दोनों स्टेडियमों का काम प्रारंभ किया गया था, लेकिन अब तक अधूरा है. ना तो विभाग इसे पूरा कराने की जहमत उठा रहा, ना ही संवेदक कोई दिलचस्पी दिखा रहे हैं. परिणाम यह है कि स्कूल के बच्चों के लिए बना हॉकी स्टेडियम खंडहर में तब्दील हो गया है. पूरे परिसर में कंकड़ और बड़े-बड़े पत्थर बिखरे पड़े हैं. बारिश के दिनों में बड़े-बड़े पौधे निकल आते हैं, सांप-बिच्छू आदि का डर लगा रहता है. ऐसे में स्कूली बच्चे प्रैक्टिस करे तो उन लोगों की जान पर आफत आन पड़ती है.

हालांकि, ये स्टेडियम अधूरे क्यों पड़े हैं? इसका जवाब किसी के पास नहीं है. वर्तमान खेल पदाधिकारी प्रवीण कुमार कहते हैं कि यह पूर्व के खेल पदाधिकारी तुषार राय के कार्यकाल का है. किस कारणवश काम को अधूरा छोड़ा गया, इसकी जानकारी उन्हें नहीं है. इस स्कूल के शिक्षक संजय किंडो कहते हैं कि स्टेडियम वाले परिसर में कंकड़ पत्थर वाली मिट्टियों का पहाड़ है. बारिश के मौसम में बड़े-बड़े पौधे निकल आते हैं, पूरा परिसर जंगल सा हो जाता है, बच्चे प्रैक्टिस कैसे करेंगे. वहीं हॉकी प्रैक्टिस करने वाली छात्रा शिवानी बरला का कहना है कि यदि स्टेडियम को जल्द पूर्ण करा दिया जाता तो वे लोग भी अच्छे से प्रैक्टिस कर पाती. उनका सपना है कि सिमडेगा की हॉकी खिलाड़ी सलीमा और संगीता दीदी की तरह वे भी अच्छा खेले और अपने देश के लिए खेले.

देखें संवाददाता मुकेश कुमार की रिपोर्ट

सिमडेगा: हॉकी की नर्सरी में हॉकी स्टेडियम निर्माण के नाम पर खानापूर्ति कर लाखों रुपए का बंदरबांट किए जाने के कई मामले अब तक सामने आये हैं, जिससे संबंधित खबर को ईटीवी भारत ने प्रमुखता के साथ प्रकाशित भी किया है, लेकिन आज हम आपको प्रोजेक्ट बालिका उच्च विद्यालय बानो और एसएस बालिका उच्च विद्यालय बोलबा के हॉकी स्टेडियम की स्थिति बतायेंगे. जिसमें लाखों रुपए की सरकारी राशि खर्च करने के बावजूद हॉकी स्टेडियम को अधूरा छोड़ दिया गया है. लगभग डेढ़ साल से यह स्टेडियम आधा अधूरा हा पड़ा हुआ है (Bano and Bolba hockey stadiums are incomplete).

ये भी पढ़ें: भारतीय महिला हॉकी टीम को झारखंड सरकार करें पुरस्कृत, सिमडेगा हॉकी संघ ने की मांग

प्रोजेक्ट बालिका उच्च विद्यालय बानो और एसएस बालिका उच्च विद्यालय बोलबा, दोनों स्कूलों को हॉकी का डे बोर्डिंग सेंटर बनाया गया है. जहां छात्राओं को हॉकी की शिक्षा देने के लिए कोच की नियुक्ति की गई है. पथरीले और कंकड़ के पहाड़ वाले खेल मैदान में बच्चों को कैसे प्रैक्टिस कराई जाती होगी, यह आश्चर्य की बात है. प्रत्येक स्टेडियम की लागत 14,51,100 रुपये है. सरकार की तरफ से 8,70,660 की राशि का भुगतान भी संवेदक को कर दिया गया है, इसके बावजूद यहां की जमीन तक समतल नहीं कराई जा सकी है. इन दोनों स्टेडियमों की हालत देखकर तो भ्रष्टाचार शब्द भी छोटा पड़ जाए.

दोनों स्टेडियम निर्माण में लगे संवेदकों को क्रमशः 4,35,330 राशि का भुगतान किया जा चुका है. स्टेडियम में चाहरदीवारी, पिलर को देखकर भ्रष्टाचार के लेवल का अंदाजा लगाया जा सकता है. लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व इन दोनों स्टेडियमों का काम प्रारंभ किया गया था, लेकिन अब तक अधूरा है. ना तो विभाग इसे पूरा कराने की जहमत उठा रहा, ना ही संवेदक कोई दिलचस्पी दिखा रहे हैं. परिणाम यह है कि स्कूल के बच्चों के लिए बना हॉकी स्टेडियम खंडहर में तब्दील हो गया है. पूरे परिसर में कंकड़ और बड़े-बड़े पत्थर बिखरे पड़े हैं. बारिश के दिनों में बड़े-बड़े पौधे निकल आते हैं, सांप-बिच्छू आदि का डर लगा रहता है. ऐसे में स्कूली बच्चे प्रैक्टिस करे तो उन लोगों की जान पर आफत आन पड़ती है.

हालांकि, ये स्टेडियम अधूरे क्यों पड़े हैं? इसका जवाब किसी के पास नहीं है. वर्तमान खेल पदाधिकारी प्रवीण कुमार कहते हैं कि यह पूर्व के खेल पदाधिकारी तुषार राय के कार्यकाल का है. किस कारणवश काम को अधूरा छोड़ा गया, इसकी जानकारी उन्हें नहीं है. इस स्कूल के शिक्षक संजय किंडो कहते हैं कि स्टेडियम वाले परिसर में कंकड़ पत्थर वाली मिट्टियों का पहाड़ है. बारिश के मौसम में बड़े-बड़े पौधे निकल आते हैं, पूरा परिसर जंगल सा हो जाता है, बच्चे प्रैक्टिस कैसे करेंगे. वहीं हॉकी प्रैक्टिस करने वाली छात्रा शिवानी बरला का कहना है कि यदि स्टेडियम को जल्द पूर्ण करा दिया जाता तो वे लोग भी अच्छे से प्रैक्टिस कर पाती. उनका सपना है कि सिमडेगा की हॉकी खिलाड़ी सलीमा और संगीता दीदी की तरह वे भी अच्छा खेले और अपने देश के लिए खेले.

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