सिमडेगा: मानव तस्करी सिमडेगा के माथे पर लगा ऐसा कलंक है, जिसे धोने के लिए वर्षों से कोशिश तो की जा रही है, लेकिन इसमें अभी भी संतोषजनक उपलब्धि हासिल नहीं हो सकी है. जिसका प्रमाण है कि समय-समय पर ऐसे कई मामले सामने आते हैं, जो मानवता को झकझोर कर रख देते हैं. युवा वर्ग के अलावा नाबालिग लड़कियां बड़े स्तर पर इसकी शिकार होती हैं. ऐसा ही एक मामला सिमडेगा के ठेठईटांगर थाना क्षेत्र में आया है.
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गुमला की प्रभा नाम की एक महिला ने साल 2021 में ठेठईटांगर थाना क्षेत्र की रहने वाली एक नाबालिग बच्ची को हसीन सपने दिखाकर महानगर दिल्ली में बेच दिया था. करीब डेढ़ साल एक दंपती के घर में उस नाबालिग लड़की ने काम किया, जिसके एवज में उसे अब तक एक रुपया भी नहीं मिला है. इतने दिनों में बच्ची को एक बार भी घर आने नहीं दिया गया. किसी तरह उसने अपनी एक सहेली को अपनी मजबूरी बताई और दिल्ली में ही उससे 3000 रुपए उधार लिए. जिसके बाद मौका पाकर वह दंपती घर से भाग गई और दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंची. दिल्ली से वह किसी तरह ट्रेन के माध्यम से राउरकेला पहुंची और फिर बस से सिमडेगा पहुंची.
सिमडेगा आने के बाद लड़की नाबालिग बाल कल्याण समिति पहुंची. वहां उसने समिति के सदस्य जोहन कंडुलना को मामले की पूरी जानकारी दी, लेकिन उसने नाबालिग बच्ची के परेशानियों को दरकिनार कर कोई कार्रवाई नहीं की. फिर भी न्याय के लिए बच्ची करीब 5 घंटे तक भटकती रही. इस बीच ईटीवी भारत की टीम को मामले की जानकारी मिली. जिसके बाद टीम बाल कल्याण समिति पहुंची और वहां के सदस्य जोहन कंडुलना से बात की, जिन्हें वर्तमान में सीडब्ल्यूसी के कार्य करने की जिम्मेदारी दी गयी है. सवालों से बचने के लिए जोहन कंडुलना इधर से उधर भागते नजर आए. हालांकि, अंत में बाल कल्याण समिति के सदस्य जोहन कंडुलना ने आनन-फानन में कागजी कार्रवाई पूरी कर बच्ची को संरक्षण में ले लिया.
बाल कल्याण समिति के सदस्य जोहन कंडुलना कहते हैं कि जिस दंपती के घर बच्ची करीब डेढ़ वर्षों से अधिक समय तक रही थी. उससे उन्होंने फोन पर बात की थी. जिसमें उन्होंने लड़की की उम्र 18 वर्ष बताई है. लेकिन ईटीवी भारत की टीम द्वारा लड़की के आधार कार्ड में दर्ज उम्र को लेकर सवाल पूछे जाने पर वह कुछ भी बोलने से बचते दिखे क्योंकि आधार कार्ड और उसके परिजनों की मानें तो बच्ची अभी नाबालिग है.
झारखंड के पिछड़े जिलों में सिमडेगा शुमार है, क्योंकि यहां पर रोजगार के साधन न्यूनतम हैं. ऐसे में गरीबी और बेरोजगारी के कारण युवा वर्ग और नाबालिग पलायन को मजबूर हैं, जिसका फायदा मानव तस्कर भरपूर उठाते हैं. लेकिन बाहर के महानगरों में जाकर फंस जाने और किसी तरह अपनी जान बचाकर या रेस्क्यू कर वापस लौटने वाले नाबालिगों को संरक्षण देने में जिला बाल कल्याण समिति का निष्क्रिय होना, कई बड़े सवाल खड़े करता है. जिस बाल कल्याण समिति को नाबालिग बच्चों को संरक्षण देना है. वही अगर आपने कार्य, जिम्मेदारी से भागकर निष्क्रिय होकर बैठा रहे, तो सिमडेगा का भविष्य कैसे सुरक्षित होगा. ऐसे में जागरुकता अभियान और बड़े-बड़े बैनर पोस्टरों को महज मनोरंजन की चीजें कहना गलत नहीं होगा.