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छुटनी महतो आखिर कैसे बनीं पद्मश्री छुटनी महतो? जानिए पूरी कहानी - सरायकेला में डायन प्रथा

छुटनी महतो सरायकेला-खरसावां जिला के गम्हरिया प्रखंड के बीरबास गांव की रहने वाली हैं. जिन्होंने डायन प्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ीं और उनकी इस लड़ाई का सम्मान मिला. झारखंड का नाम आज पूरे देश में गर्व से ऊंचा करने वाली पद्मश्री से सम्मानित छुटनी महतो की.

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छुटनी महतो
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Published : Feb 9, 2021, 8:01 PM IST

Updated : Feb 11, 2021, 7:36 PM IST

सरायकेला: सरायकेला-खरसावां जिला के वीरबांस की रहने वाली छुटनी महतो को 15 मार्च को नई दिल्ली में भारत के राष्ट्रपति के हाथों सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से नवाजा जाएगा. आज पूरा समाज छुटनी के सम्मान से गर्व महसूस कर रहा है. तकरीबन 25 साल पहले इसी समाज के कुछ तथाकथित लोगों ने भोली-भाली अनपढ़ गांव की महिला को डायन के नाम पर इतना प्रताड़ित किया कि यह महिला आत्मविश्वास से इतनी लबरेज हुई कि इसने ठाना कि जो दुर्दशा मेरे साथ हुई है, वह अब और किसी के साथ नहीं होगी. इसका नतीजा है कि आज सरकार ने भी छुटनी के हिम्मत और संघर्ष को सलाम किया है.

देखें पूरी खबर

छुटनी की कहानी

भले ही आज पूरी दुनिया छुटनी के जज्बे को सलाम कर रही है. लेकिन 1995 का वह दिन याद कर आज भी छुटनी सिहर उठती हैं. पद्मश्री मिलना छूटनी के लिए किसी सपने से कम नहीं लेकिन डायन के नाम पर जो गहरा जख्म झेला है, वह आज भी तरोताजा है. कच्ची उम्र में शादी और फिर चार छोटे बच्चों को लेकर घर छोड़ना छुटनी को आज भी बुरे सपने की तरह लगता है. लेकिन प्रताड़ित कर गांव से निकाले जाने के बाद पत्नी ने प्रण लिया था कि वह ना प्रताड़ित होगी और अब ना ही किसी अन्य महिला को प्रताड़ित होने देंगी. उसने एक जंग की शुरुआत की यह जन किसी व्यक्ति विशेष नहीं बल्कि समाज में फाइलें कुरीति कुप्रथा और अंधविश्वास के विरुद्ध जंग जीतना काफी कठिन था लेकिन वह अपने मजबूत इरादों के साथ आगे बढ़ती रहे.

कुप्रथा के विरुद्ध बनाया संगठन
60 साल की छुटनी महतो का जीवन संघर्षशील रहा 8 महीने छुटनी ने खुले आसमान के नीचे पेड़ के सहारे बरसात, सर्दी और गर्मी में गुजारा. वक्त भी इतना बेईमान साबित हुआ कि पति ने भी साथ छोड़ दिया. लेकिन आज छुटनी ताकत है उन सभी प्रताड़ित महिलाओं की जिन्हें डायन के नाम पर बुरी तरह प्रताड़ित किया गया. घर से निकाले जाने के बाद इस अनपढ़ महिला ने कभी हार नहीं मानी.

छुटनी पर टोटका करने का आरोप

1995 में गांव के पड़ोसी भोजोहरि की बेटी बीमार हुई तो लोगों ने शक जाहिर किया कि छुटनी ने ही उस पर जादू टोना, टोटका किया है. जिसके बाद गांव में पंचायत हुई भरी पंचायत में छुटनी को डायन करार दिया गया. समाज का विध्वंस यहीं नहीं रुका, उसी रात गांव के कुछ लोगों ने घर में घुसकर दुष्कर्म करने की कोशिश की, दरवाजा तोड़ लोग अंदर आ गए. उस वक्त इस महिला ने किसी तरह अपने आपको तो बचा लिया. ठीक अगले दिन पंचायत ने ₹500 का जुर्माना लगाया. छुटनी ने बड़ी मुश्किल से पंचायत को जुर्माना भी अदा कर दिया. तब छुटनी को लगा कि अब सब कुछ ठीक हो जाएगा लेकिन नियती को कुछ और मंजूर था.

गांव के लोगों ने किया अत्याचार

समाज के ठेकेदारों ने अपना अत्याचार यही कम नहीं किया. पंचायत में एक बार फिर ओझा गुनी को बुलाया गया देर शाम दो लोगों ने मानव मल-मूत्र पिलाने की कोशिश की, ओझा गुनी ने तर्क दिया कि मानव मल पीने से डायन का प्रकोप खत्म हो जाएगा. जिसके बाद गांव के लोगों ने जबरन मल-मूत्र पिलाने की कोशिश की. जब छुटनी ने इनकार किया तो सभी ने जोर जबरदस्ती की छुटनी किसी तरह जान बचाकर पंचायत से भागी तो लोगों ने उसके शरीर पर ही महिला मैला फेंक दिया. पूरा गांव एक तरफ और एक लाचार बेबस छुटनी एक तरफ. पति ने भी उस वक्त मजबूरी में साथ छोड़ा. 5 सितंबर की उस काली रात को छुटनी गांव से निकाल दी गई.

छुटनी ने दर्ज कराई थी FIR

अगले दिन 6 सितंबर 1995 को छुटनी ने हिम्मत दिखाई और थाने में रिपोर्ट दर्ज कराया. तब पुलिस ने सक्रियता दिखाते हुए कुछ लोगों को गिरफ्तार किया. लेकिन वो जल्द ही जमानत पर छूट गए. इसके बाद भी गांव में कुछ नहीं बदला, लेकिन यही वह समय था जब छुटनी की किस्मत बदलने लगी. छुटनी ससुराल छोड़ मायके आ गई, यहां भी लोग उसे देख दरवाजा बंद कर लेते, छुटनी को देख गांव के लोग अपने बच्चों को छुपा लेते, मदद के लिए कोई आगे नहीं आया 8 महीने अपने चार बच्चों के साथ खुले आसमान में रहने के बाद छुटनी के भाइयों ने इनकी सुध ली और कुछ पैसे से मदद की. जिससे छूटनी ने अपना एक छोटा सा आशियाना बनाया और अपने चारों बच्चों का भरण पोषण किया.

फ्लैक और प्रेमचंद बने छुटनी का सहारा
छुटनी के साथ हुए इस घटना की जानकारी वर्ष 1995 में कुछ समय बीतने के बाद एक हिंदी दैनिक में छपी. जिसके बाद सन 1977 में बेसहारा और जरूरतमंद लोगों को मुफ्त कानूनी सलाह देने के उद्देश्य से बने फ्री लीगल एंड कमिटी फ्लैक की नजर इस पर पड़ी. सन 1991 से डायन प्रथा के खिलाफ काम कर रहे फ्लैक के चेयरमैन प्रेमचंद बताते हैं कि छुटनी के साथ घटित हुई या घटना छुटनी और फ्लैक के लिए टर्निंग प्वाइंट थी. हमने छुटनी का साथ दिया और जिला प्रशासन के सहयोग से डायन प्रथा अंधविश्वास के खिलाफ जागरूकता अभियान फैलाना शुरू किया.

डायन प्रथा उन्मूलन के लिए जागरूकता अभियान

छुटनी के साथ हुई घटना के ठीक बाद 1995 में ही सरायकेला जिला के कुचाई में एक ही परिवार के 6 लोगों को डायन के नाम पर कत्लेआम कर दिया गया था. तब छुटनी और प्रेमचंद ने मिलकर अंधविश्वास उन्मूलन के अपने इस मिशन को और आगे बढ़ाया. तब तत्कालीन अविभाजित पश्चिम सिंहभूम जिला के उपायुक्त अमित खरे और पूर्वी सिंहभूम जिला के उपायुक्त संजय कुमार के प्रयास से डायन प्रथा उन्मूलन को लेकर कई जागरूकता कार्यक्रम किया गया. इसी अभियान का नतीजा रहा कि जिला प्रशासन द्वारा छुटनी को वीरबांस में डायन प्रथा रोकने को लेकर सन 1996 कल्याण केंद्र बना कर दिया. जहां डायन के नाम पर प्रताड़ित होकर आने वाली महिलाओं को छुटनी यहां ना सिर्फ शरण देतीं, बल्कि उनकी आवाज बंद कर उन्हें न्याय भी दिलाती. आज छुटनी ने उन सैकड़ों बेबस महिलाओं को तबाह होने से बचाया है, जो कुव्यवस्था की शिकार हुई थीं. आज छुटनी उन पीड़ित महिलाओं के लिए किसी भगवान से कम नहीं.

छुटनी को बनाया अभियान का चेहरा
फ्री लीगल एंड कमिटी के फ्लैक के चेयरमैन प्रेमचंद बताते हैं कि छुटनी महतो को जिला प्रशासन के सहयोग से डायन प्रथा के विरुद्ध चलाए जा रहे अभियान का चेहरा बनाया गया. जहां छुटनी समेत अन्य 25 पीड़ित महिलाओं को लेकर एक सेमिनार आयोजित किया गया. जिसमें डायन कुप्रथा के विरुद्ध जागरूकता अभियान की शुरुआत की गई. प्रेमचंद बताते हैं कि इस अभियान के तहत जो भी कार्यक्रम चलता उसका चेहरा छुटनी होती. ये अपने ऊपर हुए अत्याचार को बताती और लोगों को जागरूक करती, इसी अभियान का नतीजा रहा कि छुटनी को उसके मायके बीरबांस में प्रशासन के सहयोग से छोटा हॉल बना कर दिया गया. बाद में आगे चलकर प्रताड़ित महिलाओं के लिए यह पुनर्वास केंद्र बन गया.

इसे भी पढ़ें- सरायकेला जिले में बिजली संकट गहराया, 15 की जगह मिल रही केवल 5 मेगावाट



1997 में डायन प्रथा खिलाफ कानून बनाने की उठी थी मांग
फ्री लीगल एंड कमिटी फ्लैक की ओर से संयुक्त बिहार राज्य में 1997 में पटना में सेमिनार आयोजित कराया गया. जिसमें 30 महिलाओं ने भाग लिया. इस सेमिनार में डायन प्रथा रोकने को लेकर कानून बनाने की मांग की गई. फ्लैक के तत्कालीन सचिव जीएस जायसवाल ने इसका मसौदा तैयार किया. इसके बाद 1997 से लेकर 1999 तक इस कानून को बनाने की जबरदस्त लॉबिंग की गई. उसका नतीजा हुआ कि 24 जुलाई 1999 को डायन प्रथा निषेध कानून बिहार विधानसभा और विधान परिषद से पास हो गया. 20 अक्टूबर 1999 को यह कानून बन गया. बाद में झारखंड राज्य बनने पर साल 2001 में 3 जुलाई को झारखंड में भी यह कानून लागू कर दिया गया.

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यूनिसेफ ने किया था सर्वे

बिहार सरकार के निर्देश पर तत्कालीन बिहार राज्य में डायन बिसाही समस्या को जानने यूनिसेफ के साथ एक सर्वे किया गया. जिसमें रांची, जमशेदपुर, बोकारो समेत देवघर के 26 प्रखंडों के 190 ग्राम पंचायतों के 332 गांव में सघन जागरूकता अभियान चलाया गया. इस अभियान के फलस्वरुप 176 महिलाएं ऐसी मिली जिन्हें डायन के नाम पर प्रताड़ित किया जा रहा था. आज झारखंड राज्य बने 21 साल हो गए. लेकिन एक आंकड़े के मुताबिक हर साल लगभग 20 हजार महिलाएं डायन के नाम पर प्रताड़ित की जाती हैं और इनमें से अधिकांश या तो प्रताड़ना से मर जाती हैं या उनकी हत्या कर दी जाती है.

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सरायकेला: सरायकेला-खरसावां जिला के वीरबांस की रहने वाली छुटनी महतो को 15 मार्च को नई दिल्ली में भारत के राष्ट्रपति के हाथों सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से नवाजा जाएगा. आज पूरा समाज छुटनी के सम्मान से गर्व महसूस कर रहा है. तकरीबन 25 साल पहले इसी समाज के कुछ तथाकथित लोगों ने भोली-भाली अनपढ़ गांव की महिला को डायन के नाम पर इतना प्रताड़ित किया कि यह महिला आत्मविश्वास से इतनी लबरेज हुई कि इसने ठाना कि जो दुर्दशा मेरे साथ हुई है, वह अब और किसी के साथ नहीं होगी. इसका नतीजा है कि आज सरकार ने भी छुटनी के हिम्मत और संघर्ष को सलाम किया है.

देखें पूरी खबर

छुटनी की कहानी

भले ही आज पूरी दुनिया छुटनी के जज्बे को सलाम कर रही है. लेकिन 1995 का वह दिन याद कर आज भी छुटनी सिहर उठती हैं. पद्मश्री मिलना छूटनी के लिए किसी सपने से कम नहीं लेकिन डायन के नाम पर जो गहरा जख्म झेला है, वह आज भी तरोताजा है. कच्ची उम्र में शादी और फिर चार छोटे बच्चों को लेकर घर छोड़ना छुटनी को आज भी बुरे सपने की तरह लगता है. लेकिन प्रताड़ित कर गांव से निकाले जाने के बाद पत्नी ने प्रण लिया था कि वह ना प्रताड़ित होगी और अब ना ही किसी अन्य महिला को प्रताड़ित होने देंगी. उसने एक जंग की शुरुआत की यह जन किसी व्यक्ति विशेष नहीं बल्कि समाज में फाइलें कुरीति कुप्रथा और अंधविश्वास के विरुद्ध जंग जीतना काफी कठिन था लेकिन वह अपने मजबूत इरादों के साथ आगे बढ़ती रहे.

कुप्रथा के विरुद्ध बनाया संगठन
60 साल की छुटनी महतो का जीवन संघर्षशील रहा 8 महीने छुटनी ने खुले आसमान के नीचे पेड़ के सहारे बरसात, सर्दी और गर्मी में गुजारा. वक्त भी इतना बेईमान साबित हुआ कि पति ने भी साथ छोड़ दिया. लेकिन आज छुटनी ताकत है उन सभी प्रताड़ित महिलाओं की जिन्हें डायन के नाम पर बुरी तरह प्रताड़ित किया गया. घर से निकाले जाने के बाद इस अनपढ़ महिला ने कभी हार नहीं मानी.

छुटनी पर टोटका करने का आरोप

1995 में गांव के पड़ोसी भोजोहरि की बेटी बीमार हुई तो लोगों ने शक जाहिर किया कि छुटनी ने ही उस पर जादू टोना, टोटका किया है. जिसके बाद गांव में पंचायत हुई भरी पंचायत में छुटनी को डायन करार दिया गया. समाज का विध्वंस यहीं नहीं रुका, उसी रात गांव के कुछ लोगों ने घर में घुसकर दुष्कर्म करने की कोशिश की, दरवाजा तोड़ लोग अंदर आ गए. उस वक्त इस महिला ने किसी तरह अपने आपको तो बचा लिया. ठीक अगले दिन पंचायत ने ₹500 का जुर्माना लगाया. छुटनी ने बड़ी मुश्किल से पंचायत को जुर्माना भी अदा कर दिया. तब छुटनी को लगा कि अब सब कुछ ठीक हो जाएगा लेकिन नियती को कुछ और मंजूर था.

गांव के लोगों ने किया अत्याचार

समाज के ठेकेदारों ने अपना अत्याचार यही कम नहीं किया. पंचायत में एक बार फिर ओझा गुनी को बुलाया गया देर शाम दो लोगों ने मानव मल-मूत्र पिलाने की कोशिश की, ओझा गुनी ने तर्क दिया कि मानव मल पीने से डायन का प्रकोप खत्म हो जाएगा. जिसके बाद गांव के लोगों ने जबरन मल-मूत्र पिलाने की कोशिश की. जब छुटनी ने इनकार किया तो सभी ने जोर जबरदस्ती की छुटनी किसी तरह जान बचाकर पंचायत से भागी तो लोगों ने उसके शरीर पर ही महिला मैला फेंक दिया. पूरा गांव एक तरफ और एक लाचार बेबस छुटनी एक तरफ. पति ने भी उस वक्त मजबूरी में साथ छोड़ा. 5 सितंबर की उस काली रात को छुटनी गांव से निकाल दी गई.

छुटनी ने दर्ज कराई थी FIR

अगले दिन 6 सितंबर 1995 को छुटनी ने हिम्मत दिखाई और थाने में रिपोर्ट दर्ज कराया. तब पुलिस ने सक्रियता दिखाते हुए कुछ लोगों को गिरफ्तार किया. लेकिन वो जल्द ही जमानत पर छूट गए. इसके बाद भी गांव में कुछ नहीं बदला, लेकिन यही वह समय था जब छुटनी की किस्मत बदलने लगी. छुटनी ससुराल छोड़ मायके आ गई, यहां भी लोग उसे देख दरवाजा बंद कर लेते, छुटनी को देख गांव के लोग अपने बच्चों को छुपा लेते, मदद के लिए कोई आगे नहीं आया 8 महीने अपने चार बच्चों के साथ खुले आसमान में रहने के बाद छुटनी के भाइयों ने इनकी सुध ली और कुछ पैसे से मदद की. जिससे छूटनी ने अपना एक छोटा सा आशियाना बनाया और अपने चारों बच्चों का भरण पोषण किया.

फ्लैक और प्रेमचंद बने छुटनी का सहारा
छुटनी के साथ हुए इस घटना की जानकारी वर्ष 1995 में कुछ समय बीतने के बाद एक हिंदी दैनिक में छपी. जिसके बाद सन 1977 में बेसहारा और जरूरतमंद लोगों को मुफ्त कानूनी सलाह देने के उद्देश्य से बने फ्री लीगल एंड कमिटी फ्लैक की नजर इस पर पड़ी. सन 1991 से डायन प्रथा के खिलाफ काम कर रहे फ्लैक के चेयरमैन प्रेमचंद बताते हैं कि छुटनी के साथ घटित हुई या घटना छुटनी और फ्लैक के लिए टर्निंग प्वाइंट थी. हमने छुटनी का साथ दिया और जिला प्रशासन के सहयोग से डायन प्रथा अंधविश्वास के खिलाफ जागरूकता अभियान फैलाना शुरू किया.

डायन प्रथा उन्मूलन के लिए जागरूकता अभियान

छुटनी के साथ हुई घटना के ठीक बाद 1995 में ही सरायकेला जिला के कुचाई में एक ही परिवार के 6 लोगों को डायन के नाम पर कत्लेआम कर दिया गया था. तब छुटनी और प्रेमचंद ने मिलकर अंधविश्वास उन्मूलन के अपने इस मिशन को और आगे बढ़ाया. तब तत्कालीन अविभाजित पश्चिम सिंहभूम जिला के उपायुक्त अमित खरे और पूर्वी सिंहभूम जिला के उपायुक्त संजय कुमार के प्रयास से डायन प्रथा उन्मूलन को लेकर कई जागरूकता कार्यक्रम किया गया. इसी अभियान का नतीजा रहा कि जिला प्रशासन द्वारा छुटनी को वीरबांस में डायन प्रथा रोकने को लेकर सन 1996 कल्याण केंद्र बना कर दिया. जहां डायन के नाम पर प्रताड़ित होकर आने वाली महिलाओं को छुटनी यहां ना सिर्फ शरण देतीं, बल्कि उनकी आवाज बंद कर उन्हें न्याय भी दिलाती. आज छुटनी ने उन सैकड़ों बेबस महिलाओं को तबाह होने से बचाया है, जो कुव्यवस्था की शिकार हुई थीं. आज छुटनी उन पीड़ित महिलाओं के लिए किसी भगवान से कम नहीं.

छुटनी को बनाया अभियान का चेहरा
फ्री लीगल एंड कमिटी के फ्लैक के चेयरमैन प्रेमचंद बताते हैं कि छुटनी महतो को जिला प्रशासन के सहयोग से डायन प्रथा के विरुद्ध चलाए जा रहे अभियान का चेहरा बनाया गया. जहां छुटनी समेत अन्य 25 पीड़ित महिलाओं को लेकर एक सेमिनार आयोजित किया गया. जिसमें डायन कुप्रथा के विरुद्ध जागरूकता अभियान की शुरुआत की गई. प्रेमचंद बताते हैं कि इस अभियान के तहत जो भी कार्यक्रम चलता उसका चेहरा छुटनी होती. ये अपने ऊपर हुए अत्याचार को बताती और लोगों को जागरूक करती, इसी अभियान का नतीजा रहा कि छुटनी को उसके मायके बीरबांस में प्रशासन के सहयोग से छोटा हॉल बना कर दिया गया. बाद में आगे चलकर प्रताड़ित महिलाओं के लिए यह पुनर्वास केंद्र बन गया.

इसे भी पढ़ें- सरायकेला जिले में बिजली संकट गहराया, 15 की जगह मिल रही केवल 5 मेगावाट



1997 में डायन प्रथा खिलाफ कानून बनाने की उठी थी मांग
फ्री लीगल एंड कमिटी फ्लैक की ओर से संयुक्त बिहार राज्य में 1997 में पटना में सेमिनार आयोजित कराया गया. जिसमें 30 महिलाओं ने भाग लिया. इस सेमिनार में डायन प्रथा रोकने को लेकर कानून बनाने की मांग की गई. फ्लैक के तत्कालीन सचिव जीएस जायसवाल ने इसका मसौदा तैयार किया. इसके बाद 1997 से लेकर 1999 तक इस कानून को बनाने की जबरदस्त लॉबिंग की गई. उसका नतीजा हुआ कि 24 जुलाई 1999 को डायन प्रथा निषेध कानून बिहार विधानसभा और विधान परिषद से पास हो गया. 20 अक्टूबर 1999 को यह कानून बन गया. बाद में झारखंड राज्य बनने पर साल 2001 में 3 जुलाई को झारखंड में भी यह कानून लागू कर दिया गया.

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यूनिसेफ ने किया था सर्वे

बिहार सरकार के निर्देश पर तत्कालीन बिहार राज्य में डायन बिसाही समस्या को जानने यूनिसेफ के साथ एक सर्वे किया गया. जिसमें रांची, जमशेदपुर, बोकारो समेत देवघर के 26 प्रखंडों के 190 ग्राम पंचायतों के 332 गांव में सघन जागरूकता अभियान चलाया गया. इस अभियान के फलस्वरुप 176 महिलाएं ऐसी मिली जिन्हें डायन के नाम पर प्रताड़ित किया जा रहा था. आज झारखंड राज्य बने 21 साल हो गए. लेकिन एक आंकड़े के मुताबिक हर साल लगभग 20 हजार महिलाएं डायन के नाम पर प्रताड़ित की जाती हैं और इनमें से अधिकांश या तो प्रताड़ना से मर जाती हैं या उनकी हत्या कर दी जाती है.

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Last Updated : Feb 11, 2021, 7:36 PM IST
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