सरायकेला: नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने राज्य समेत जिले के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के जल स्रोत ,तालाब, पोखर आदि को चिन्हित कर उनके वॉटर सैंपल टेस्टिंग कराने का आदेश जिले से लेकर प्रखंड और शहरी क्षेत्र के स्थानीय नगर निकायों को दिया गया है. उद्देश्य है शहर और गांव में स्थित पारंपरिक जल स्रोत तालाबों का संरक्षण और जल गुणवत्ता जांच कर उसे और बेहतर बनाने की.
एनजीटी के आदेश के बाद जिला प्रशासन जिले भर में स्थित जल स्रोत और तालाबों से जल संग्रह के नमूने एकत्र करने की कवायद में जुटा है.लेकिन इस आदेश के बीच जो बात सामने उभर कर आ रही है, वह है पारंपरिक जल स्रोत तालाबों का अतिक्रमण. जिला प्रशासन के फाइलों में वर्षों पूर्व जो तालाब दर्ज हैं असल में अब वहां बड़े-बड़े भवन और कमर्शियल बिल्डिंग, अपार्टमेंट बना दिए गए हैं.
लिहाजा पारंपरिक जल स्रोतों का संरक्षण तो दूर भूगर्भ जल संरक्षण भी नहीं हो पा रहा. एनजीटी द्वारा जारी किए गए आदेश के मुताबिक जिले भर के जल स्रोत, पोखर, तालाब आदि को चिन्हित कर उनके वॉटर सैंपल का टेस्टिंग लेबोरेटरी में कराना है.
यह प्रक्रिया 5 नवंबर तक होनी थी, जिसके बाद लेबोरेटरी में जांच के उपरांत जिन तालाब जल स्रोत के गहरीकरण, साफ -सफाई और वॉटर क्वालिटी बेहतर करने की आवश्यकता है वैसे जल स्रोत तालाबों को आगामी 15 दिसंबर तक रीस्टोर किया जाना है. इसके अलावा एनजीटी द्वारा सरकार को दिए गए आदेश में निम्न बातें इस प्रकार शामिल हैं:
1. शहरी क्षेत्र में जल स्रोत तालाबों की पहचान कर उनके जल नमूने एकत्र करने का कार्य नगर निगम नगर परिषद और नगर पंचायत द्वारा किया जाना है
2. ग्रामीण क्षेत्रों में जिले के सभी नौ प्रखंड में प्रखंड विकास पदाधिकारी द्वारा यह कार्य किया जाना है इसके साथ ही संबंधित प्रखंड विकास पदाधिकारियों को यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक ग्राम से कम से कम एक जल स्रोत का चिन्हितीकरण हो और उन जल स्रोत के ही सैंपल लिए जाएं.
3. जल स्रोत चिन्हित करते समय इन बातों का ध्यान रखा जाए कि जल स्रोत प्राकृतिक स्वरूप में हो.
4- जल स्रोतों का निर्माण किसी सरकारी योजना के अंतर्गत किया गया हो, जल स्रोत का माप कम से कम 100 फिट हो,
5. जल स्रोत का प्रयोग उस जगह के अधिकांश लोगों द्वारा किया जा रहा हो.
6. जल स्रोत से लिए गए सैंपल में स्थानीय ग्राम ,शहर, थाना , खाता संख्या ,विभाग एवं कार्यालय का नाम अंकित किया जाए.
7. ग्रामीण क्षेत्र से एकत्र किए गए जल संग्रह नमूने को पेयजल एवं स्वच्छता विभाग कार्यालय को जांच के लिए सुपुर्द किया जाना है, जबकि शहरी क्षेत्र के जल स्रोत के वाटर सैंपल झारखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कार्यालय में भेजा जाना है.
8. शहरी समेत ग्रामीण क्षेत्र के जल स्रोतों से एकत्र किए गए सैंपल जांच प्रक्रिया को पूरा करने के लिए नोडल पदाधिकारी का भी चयन किया गया है जो यह सुनिश्चित करेंगे कि प्रतिदिन कम से कम 200 वाटर सैंपल का परीक्षण अवश्य रूप से किया जाए.
यह तो बात हो गई कि एनजीटी के इस संबंध में क्या आदेश है और इसे कैसे पूरा किया जाना है, लेकिन इन सब में सबसे प्रमुख मुद्दा यह है कि आज शहर हो या गांव सभी जगह पारंपरिक जल स्रोत, पोखर ,तालाब आदि लुप्त हो चुके हैं. ऐसे में एनजीटी का यह आदेश जल संरक्षण और जल स्रोत में व्याप्त अशुद्धियों को को दूर करने में कैसे सफल होगा.
छह प्रमुख तालाबों पर हुआ अतिक्रमण, बनाए गए अपार्टमेंट
सरायकेला जिले के कमरिया प्रखंड अंतर्गत वर्षों पुराने छह प्रमुख सरकारी तालाब जिनका अतिक्रमण कर आज वहां बड़े-बड़े भवन और अपार्टमेंट बना दिए गए हैं.
इन तालाबों में कभी खुली डाक से तालाब बंदोबस्ती की जाती थी लेकिन वह आज केवल सरकारी फाइल और कागजों में ही सिमट कर रह गया है, यह वो 6 सरकारी तालाब है, जिनमें से अधिकांश पर अतिक्रमण हो चुका है.
1. राज बांध- गम्हरिया , खाता संख्या- 753
2. ऊपर बेड़ा बांध, ऊपर बेड़ा , खाता संख्या - 40
3. कुंमडीह बांध , कुंमडीह , खाता संख्या - 262
4- असंगी बांध- असंगी , खाता संख्या - 187
5. बांसुरदा बांध , बांसुरदा, खाता संख्या - 124
6. दिण्डली बांध , दिण्डली, खाता संख्या- 308
इसके अलावा बड़ा हरिहरपुर खाता संख्या 52 रकवा 1.58 एकड़ भूमि का प्रकार तालाब में पावर प्लांट संचालित हो रहा है. ऐसे में साफ है कि आज अधिकतर तालाब केवल सरकारी कागजों पर ही चल रहे हैं जबकि जमीनी हकीकत कुछ और है.
प्रशासन का दावा मनरेगा के तहत जल स्रोत होंगे जीवित
इधर पारंपरिक जल स्रोत और तालाबों को भरकर भवन और अपार्टमेंट बनाए जाने के मुद्दे पर जिला प्रशासन के अधिकारियों का कहना है कि मनरेगा के तहत जल स्रोतों को चिन्हित और जीवित रखने की प्रक्रिया अपनाई जाएगी, ताकि जल संरक्षण हो सके.
अधिकारियों ने बताया कि जल स्रोत के आसपास नालों का निर्माण कर बरसातों के पानी को एकत्र कर तालाबों में जल स्तर बरकरार रखा जाएगा.
वहीं नगर निकाय के अधिकारियों ने बताया कि शहरी क्षेत्रों में नए तालाब निर्माण के लिए जगह की किल्लत है. ऐसे में पुराने और पारंपरिक जल स्रोत को ही और विकसित किए जाने की आवश्यकता है.
शहरों में लगातार गिर रहा भूगर्भ जलस्तर
ग्रामीण क्षेत्र में आबादी कम होने के कारण भू-गर्भ जलस्तर भीषण गर्मी में भी बरकरार रहता है, लेकिन इसके ठीक विपरीत शहरी क्षेत्र में गर्मी के दस्तक देते ही भूगर्भ जलस्तर में लगातार गिरावट दर्ज की जाती है.
नगर निगम के कई ऐसे इलाके हैं जो गर्मी के मौसम में पूरी तरह ड्राई जोन में तब्दील हो जाते हैं और वहां भूगर्भ का जलस्तर 400 फीट से भी नीचे चल जाता है.
जबकि अन्य क्षेत्रों में भी भूगर्भ जलस्तर इस दौरान 250 से 300 फीट तक रहता है. जानकार बताते हैं कि इनका मुख्य कारण ग्राउंड वाटर लेवल का कम होना है. पारंपरिक जल स्रोत तालाब लुप्त हो रहे हैं, जिसका नतीजा है कि भूगर्भ का जल स्तर बरकरार नहीं रहता ऐसे में जल स्तर का कम होना और पानी की किल्लत स्वभाविक है.
एनजीटी के आदेश से यह साफ होता है कि प्राकृतिक और पारंपरिक जल स्रोत सदा बने रहे ताकि मनुष्य के लिए सबसे महत्वपूर्ण जल जो कि जीवन है वह उपलब्ध रहे ,लेकिन निजी स्वार्थों के कारण आज लोग पारंपरिक और प्राकृतिक जल स्रोत से छेड़छाड़ कर रहे हैं.
जरूरत है सरकार और प्रशासन को सख्त और कड़े नियम बनाने की ताकि जल स्रोत बेहतर बने रहें और इन पर आश्रित मानव जीवन भी सुगमता से चले, क्योंकि "जल है तो कल है".