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खरसावां गोलीकांड: 73 साल बाद भी इतिहास के पन्नों से है गुम, हजारों झारखंडियों की शहादत को बयां करता शहीद स्थल - खरसावां न्यूज

1 जनवरी 1948 को खरसावां में हुए गोलीकांड को आज 73 साल बीत गए हैं, लेकिन आज भी भारतीय इतिहास के पन्नों में यह गोलीकांड गुम है, शायद भारतीय इतिहासकारों ने आजाद भारत के इस सबसे बड़े गोलीकांड का जिक्र तक नहीं किया, लेकिन खरसावां शहीद स्थल आज भी उन हजारों मासूम निहत्थे लोगों के शहादत की गाथा को बयां कर रहा है.

1948 Kharsawan firing case
खरसावां गोलीकांड शहीद स्थल
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Published : Jan 1, 2021, 7:44 AM IST

सरायकेला: स्वतंत्र भारत में तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल जो देश के सभी प्रांत को मिलाकर भारत का एक हिस्सा बनाना चाहते थे, तब सरायकेला और खरसावां दो अलग-अलग छोटे रियासत थे.


क्या हुआ था 1 जनवरी 1948 को

खरसावां पड़ोसी राज्य ओडिशा से सटा हुआ था लिहाजा यहां उड़िया भाषा बोलने वालों की संख्या अधिक थी, इसी उद्देश्य से तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल खरसावां रियासत को ओडिशा राज्य में विलय कर देना चाहते थे, लेकिन उस वक्त खरसावां के लोग बिहार से खरसावां को अलग काटकर ओडिशा में शामिल किए जाने का लगातार विरोध कर रहे थे. इसी कड़ी में खरसावां के शहीद स्थल पर आंदोलनकारी जयपाल सिंह मुंडा के नेतृत्व में एक सभा का आयोजन किया जा रहा था, तभी ओडिशा सरकार की ओर से सभा में शामिल लोगों पर अंधाधुंध फायरिंग की गई थी, आज भी आंकड़े तो किसी को पता नहीं है लेकिन बताया जाता है कि हजारों की संख्या में बेगुनाह, निहत्थे आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया गया था. हालांकि, इस घटना के बाद सरकारी आंकड़ों में महज 35 आदिवासियों की मौत होने की जानकारी दी गई थी.


आजाद भारत का सबसे बड़ा गोलीकांड

इतिहासकारों ने भले ही इस विध्वंसकारी गोलीकांड का जिक्र किताबों में नहीं किया, लेकिन बताया जाता है कि जालियांवाला बाग गोलीकांड से भी अधिक लोग खरसावां गोलीकांड में मारे गए थे. ओडिशा मिलिट्री पुलिस की क्रूरता की कहानी जालियांवाला बाग के जनरल डायर से भी कहीं अधिक भयावह है. बताया जाता है खरसावां के इस सभा में रांची, खूंटी, तमाड़, जमशेदपुर समेत आसपास क्षेत्रों से बड़ी संख्या में आदिवासी एकत्रित हुए थे. खरसावां गोलीकांड के बाद सरकार की ओर से कई जांच कमेटियां बनाई गई, लेकिन आज तक इस घटना की असल रिपोर्ट पेश नहीं की जा सकी है. प्रतिवर्ष 1 जनवरी को बड़ी संख्या में लोग खरसावां शहीद स्थल पर जुटते हैं और अपने पूर्वजों को याद कर भावभीनी श्रद्धांजलि देते हैं.

सरायकेला: स्वतंत्र भारत में तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल जो देश के सभी प्रांत को मिलाकर भारत का एक हिस्सा बनाना चाहते थे, तब सरायकेला और खरसावां दो अलग-अलग छोटे रियासत थे.


क्या हुआ था 1 जनवरी 1948 को

खरसावां पड़ोसी राज्य ओडिशा से सटा हुआ था लिहाजा यहां उड़िया भाषा बोलने वालों की संख्या अधिक थी, इसी उद्देश्य से तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल खरसावां रियासत को ओडिशा राज्य में विलय कर देना चाहते थे, लेकिन उस वक्त खरसावां के लोग बिहार से खरसावां को अलग काटकर ओडिशा में शामिल किए जाने का लगातार विरोध कर रहे थे. इसी कड़ी में खरसावां के शहीद स्थल पर आंदोलनकारी जयपाल सिंह मुंडा के नेतृत्व में एक सभा का आयोजन किया जा रहा था, तभी ओडिशा सरकार की ओर से सभा में शामिल लोगों पर अंधाधुंध फायरिंग की गई थी, आज भी आंकड़े तो किसी को पता नहीं है लेकिन बताया जाता है कि हजारों की संख्या में बेगुनाह, निहत्थे आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया गया था. हालांकि, इस घटना के बाद सरकारी आंकड़ों में महज 35 आदिवासियों की मौत होने की जानकारी दी गई थी.


आजाद भारत का सबसे बड़ा गोलीकांड

इतिहासकारों ने भले ही इस विध्वंसकारी गोलीकांड का जिक्र किताबों में नहीं किया, लेकिन बताया जाता है कि जालियांवाला बाग गोलीकांड से भी अधिक लोग खरसावां गोलीकांड में मारे गए थे. ओडिशा मिलिट्री पुलिस की क्रूरता की कहानी जालियांवाला बाग के जनरल डायर से भी कहीं अधिक भयावह है. बताया जाता है खरसावां के इस सभा में रांची, खूंटी, तमाड़, जमशेदपुर समेत आसपास क्षेत्रों से बड़ी संख्या में आदिवासी एकत्रित हुए थे. खरसावां गोलीकांड के बाद सरकार की ओर से कई जांच कमेटियां बनाई गई, लेकिन आज तक इस घटना की असल रिपोर्ट पेश नहीं की जा सकी है. प्रतिवर्ष 1 जनवरी को बड़ी संख्या में लोग खरसावां शहीद स्थल पर जुटते हैं और अपने पूर्वजों को याद कर भावभीनी श्रद्धांजलि देते हैं.

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