साहिबगंजः हूल क्रांति के महानायक सिदो कान्हो की रविवार यानी 11 अप्रैल को जयंती है. जिले समेत प्रदेश के कई इलाकों में लोग क्रांति के महानायक को याद कर उनकी जयंती मना रहे हैं. इस कड़ी में उनके वंशजों ने पूजा-अर्चना कर इस महानायक को याद किया.
जिले में स्थानीय लोगों ने बताया कि 1855 में सिदो कान्हो ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे. इन्हें हुल का नायक भी कहा जाता है. आज हम लोग इनकी जयंती सादगी से मना रहे हैं. उन्होंने बताया कि बरसों की परंपरा है कि हुल दिवस पर हम वंशज ही सर्वप्रथम पूजा अर्चना करते हैं. इसके बाद ही जिला प्रशासन या किसी राजनीति पार्टी के के लोग माल्यार्पण करते हैं.
भोगनाडीह के स्टेडियम में की पूजा-अर्चना
सिदो कान्हो की जयंती पर शहीद के वंशजों की ओर से पैतृक गांव भोगनाडीह में स्थित स्टेडियम में सिदो-कान्हू, चांद भैरव की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराया गया. शहीद की प्रतिमा को शुद्ध करने के बाद वंशजों की ओर से गंगाजल, फूल और धूप अगरबत्ती से इनका पूजन किया गया. आज भी आदिवासी समाज इन शहीदों को भगवान के रूप में पूजता है.
सुबह 11 बजे शुरू होगा सरकारी कार्यक्रम
सरकारी कार्यक्रम दिन के 11:00 बजे से शुरू होगा. जिला प्रशासन द्वारा क्रांति स्थल पंचकठिया में जहां सिदो कान्हो को फांसी दी गई थी, वहीं पूजा अर्चना की जाएगी. तोरण द्वार का शिलान्यास किया जाएगा और जन्मस्थली पैतृक गांव भोगनाडीह में कई योजनाओं का आधारशिला जिला प्रशासन द्वारा रखी जाएगी. कोविड गाइडलाइन के तहत विकास मेला भी लगाया गया है. शहीद के वंशजों को जिला प्रशासन द्वारा अंग वस्त्र भेंट कर सम्मानित भी किया जाएगा.
1857 से दो साल पहले छेड़ दी थी जंग
इतिहास के पन्नों को पलटें तो आजादी के लिए पहला बिगुल फूंकने का जिक्र 1857 में मिलता है. लेकिन, इससे दो साल पहले ही झारखंड में संथालों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आजादी की जंग छेड़ दी थी. संथालों ने नारा दिया था "करो या मरो, अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो" और नारा देने वाले थे सिदो-कान्हो. अंग्रजों के खिलाफ जिस तरह सिदो-कान्हो ने मोर्चा खोला था और उसके छक्के छुड़ा दिए थे उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि साहिबगंज में लोग इन्हें भगवान की तरह पूजते हैं. आदिवासियों और गैर-आदिवासियों को महाजनों और अंग्रेजों के अत्याचार से मुक्ति दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी. ब्रिटिश हुकूमत की जंजीरों को तार-तार करने वाले इन वीर सपूतों के शहादत की याद में हर साल 11 अप्रैल को जयंती समारोह मनाया जाता है. इसमें देश के कई प्रांतो से विद्वान, लेखक और इतिहासकार भोगनाडीह पहुंचते हैं और शहीदों के जीवन वृतांत पर प्रकाश डालकर उनके बलिदान की याद करते हैं.