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शारदीय नवरात्र: मां बिंदुवासिनी भरती हैं भक्तों की झोलियां, देश विदेश से मन्नत मांगने आते हैं श्रद्धालु - झारखंड के शक्तिपीठ

झारखंड के साहिबगंज में बिंदुधाम पर्वत आस्था का अनूठा केंद्र हैं. यहां मां दुर्गा, मां लक्ष्मी और मां सरस्वती संयुक्त रूप में विराजती हैं. 51 शक्तिपीठ में से यह भी एक शक्तिपीठ है. जिसे 3 देवियों का पिंड कहते हैं. इसे बिंदुवासनी के नाम से जाना जाता है.

मां बिंदुवासिनी के दर पर भरती हैं भक्तों की झोलियां
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Published : Oct 5, 2019, 6:37 PM IST

साहिबगंज: झारखंड के साहिबगंज में बिंदुधाम पर्वत आस्था का अनूठा केंद्र हैं. यहां बिंदुवासिनी मंदिर में मां दुर्गा, मां लक्ष्मी और मां सरस्वती संयुक्त रूप में विराजती हैं. पहाड़ की चोटी पर स्थित मंदिर तक जाने के लिए 108 सीढ़ी से चढ़कर माता के दर्शन किए जाते हैं. यह मंदिर बिंदु शक्तिपीठ के नाम से प्रख्यात है. यह मंदिर चारों तरफ से पहाड़ और हरे भरे पेड़ों से घिरा है. यहां कि प्राकृतिक छटा देखते बनती है.

वीडियो में देखें ये स्पेशल स्टोरी

माता के दर्शन से पहले मुख्य दरवाजे पर बीच में भगवान सूर्यदेव के दर्शन होते हैं. भगवान सूर्यदेव अपने साथ घोड़ों के रथ पर सवार हैं. ऊपर चढ़ते ही माता का मंदिर है. जहां 3 पिंड 3 देवी की मूर्ति के सामने रखे हुए हैं. इस पिंड के रूप में 3 देवियां मां दुर्गा, मां सरस्वती और मां लक्ष्मी निवास करती हैं.

ऐसे बनी 51 शक्तिपीठ

इस मंदिर के पुजारी का कहना है कि 51 शक्तिपीठ में से यह भी एक शक्तिपीठ है. जिसे 3 देवियों का पिंड कहते हैं. इसे बिंदुवासनी के नाम से जाना जाता है. उन्होंने पौराणिक कथाओं का जिक्र करते हुए कहा कि जब मां पार्वती बिन बुलाए अपने मायके चली गई थीं और उन्हें अपमान सहना पड़ा, तो ऐसी स्थिति में मां पार्वती सती हो गईं थीं. जब भगवान भोलेनाथ को यह मालूम चला तो वो मां पार्वती का शव अपने कंधे पर रखकर तांडव करने लगे.

ये भी पढ़ें- शारदीय नवरात्र: अलौकिक है रजरप्पा की मां छिन्नमस्तिके का स्वरूप, दूर-दूर से दर्शन को आते हैं भक्त

तांडव इतना भयानक था कि पूरा सृष्टि समाप्त हो जाती. ऐसी स्थिति में भगवान विष्णु ने सती पार्वती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से टुकड़े-टुकड़े कर दिया. जहां-जहां सती पार्वती का रक्त गिरा वो जगह शक्तिपीठ के नाम से जानी जाने लगी. यह मंदिर भी 51 शक्ति पीठ में से एक है जहां माता पार्वती का रक्त गिरा है. आज भी इस मंदिर में 3 पिंड हैं और तीनों पिंड को तीन देवियों के नाम से जाना जाता है.

मंदिर में आए हुए भक्तों का कहना है कि माता सबकी इच्छाएं पूरी करती हैं. जो भी लोग यहां सच्चे दिल से मन्नत मांगते हैं, उनकी सारी मनोकामना पूरी होती है. बिंदुवासिनी माता के दर्शन के लिए झारखंड, बिहार, बंगाल, ओडिशा सहित देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं.

साहिबगंज: झारखंड के साहिबगंज में बिंदुधाम पर्वत आस्था का अनूठा केंद्र हैं. यहां बिंदुवासिनी मंदिर में मां दुर्गा, मां लक्ष्मी और मां सरस्वती संयुक्त रूप में विराजती हैं. पहाड़ की चोटी पर स्थित मंदिर तक जाने के लिए 108 सीढ़ी से चढ़कर माता के दर्शन किए जाते हैं. यह मंदिर बिंदु शक्तिपीठ के नाम से प्रख्यात है. यह मंदिर चारों तरफ से पहाड़ और हरे भरे पेड़ों से घिरा है. यहां कि प्राकृतिक छटा देखते बनती है.

वीडियो में देखें ये स्पेशल स्टोरी

माता के दर्शन से पहले मुख्य दरवाजे पर बीच में भगवान सूर्यदेव के दर्शन होते हैं. भगवान सूर्यदेव अपने साथ घोड़ों के रथ पर सवार हैं. ऊपर चढ़ते ही माता का मंदिर है. जहां 3 पिंड 3 देवी की मूर्ति के सामने रखे हुए हैं. इस पिंड के रूप में 3 देवियां मां दुर्गा, मां सरस्वती और मां लक्ष्मी निवास करती हैं.

ऐसे बनी 51 शक्तिपीठ

इस मंदिर के पुजारी का कहना है कि 51 शक्तिपीठ में से यह भी एक शक्तिपीठ है. जिसे 3 देवियों का पिंड कहते हैं. इसे बिंदुवासनी के नाम से जाना जाता है. उन्होंने पौराणिक कथाओं का जिक्र करते हुए कहा कि जब मां पार्वती बिन बुलाए अपने मायके चली गई थीं और उन्हें अपमान सहना पड़ा, तो ऐसी स्थिति में मां पार्वती सती हो गईं थीं. जब भगवान भोलेनाथ को यह मालूम चला तो वो मां पार्वती का शव अपने कंधे पर रखकर तांडव करने लगे.

ये भी पढ़ें- शारदीय नवरात्र: अलौकिक है रजरप्पा की मां छिन्नमस्तिके का स्वरूप, दूर-दूर से दर्शन को आते हैं भक्त

तांडव इतना भयानक था कि पूरा सृष्टि समाप्त हो जाती. ऐसी स्थिति में भगवान विष्णु ने सती पार्वती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से टुकड़े-टुकड़े कर दिया. जहां-जहां सती पार्वती का रक्त गिरा वो जगह शक्तिपीठ के नाम से जानी जाने लगी. यह मंदिर भी 51 शक्ति पीठ में से एक है जहां माता पार्वती का रक्त गिरा है. आज भी इस मंदिर में 3 पिंड हैं और तीनों पिंड को तीन देवियों के नाम से जाना जाता है.

मंदिर में आए हुए भक्तों का कहना है कि माता सबकी इच्छाएं पूरी करती हैं. जो भी लोग यहां सच्चे दिल से मन्नत मांगते हैं, उनकी सारी मनोकामना पूरी होती है. बिंदुवासिनी माता के दर्शन के लिए झारखंड, बिहार, बंगाल, ओडिशा सहित देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं.

Intro:बिंदवासनी 51 शक्तिपीठ में एक यह भी मंदिर है। तीन देवियां का यहाँ पिंड के रूप में होता है पूजा। आस पास के राज्य और देश विदेश के श्रद्धालु आते है दर्शन करने। एक रिपोर्ट


नोट-- मेल पर इस मंदिर पर खबर बनाने के लिए टास्क मिला था।सर


Body:बिंदवासनी 51 शक्तिपीठ में एक यह भी मंदिर है। तीन देवियां का यहाँ पिंड के रूप में होता है पूजा। आस पास के राज्य और देश विदेश के श्रद्धालु आते है दर्शन करने। एक रिपोर्ट
स्टोरी-साहिबगंज-- जिला मुख्यालय से 70 किमी दूरी पर बरहरवा रेलवे स्टेशन से 2 किमी पश्चिम की ओर पहाड़ की चोटी पर स्थित मंदिर तक जाने के लिये 108 सीढ़ी से चढ़कर माता का दर्शन किया जाता है। यह मंदिर बिंदु शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर 101 बीघा में यह पहाड़ चारो तरफ से हरा हरा पेड़ से घिरा ह्या है। चारो तरफ हरियाली ही हरियाली है प्राकृतिक सौंदर्य देखते बनती है।
माता के दर्शन से पहले मुख्य दरवाजा पर बीच मे भगवान सूर्यदेव का दर्शन होता है भगवान सूर्यदेव अपने साथ घोड़ो के साथ रथ पर सवार है जो हम देख सकते है। जैसे ही ऊपर चढ़ते है माता का मंदिर है जहाँ तीन पिंड तीन देवी के मूर्ति के सामने रखा हुआ है। इस पिंड के रूप में दिन देवियां माँ दुर्गा,माँ सरस्वती और माँ लक्ष्मी निवास करती है।
बात करे आस्था की तो इस मंदिर का पुजारी का कहना है कि 51 शक्तिपीठ में से यह भी एक शक्तिपीठ है। जिसे दिन देवियां का पिंड है जिसे बिंदवासनी के नाम से जाना जाता है। पुजारी का कहना है। जब माँ पार्वती बिन बुलाए अपने मायके चली गई थी और उन्हें अपमान सहना पड़ा तो ऐसी स्थिति में मां पार्वती सती हो गई थी ।जब भगवान भोलेनाथ को मालूम चला तो मां पार्वती का शव अपने कंधे पर रखकर तांडव करने लगे। तांडव इतना भयानक था कि पूरा सृष्टि दुनिया समाप्त हो जाता। ऐसी स्थिति में भगवान विष्णु ने सती पार्वती के शरीर को टुकड़ा टुकड़ा काट दिया था ।जहां-जहां सती पार्वती का रक्त गिरा वहां पर शक्तिपीठ के नाम से जान आ गया । यह मंदिर भी 51 शक्ति पीठ में से एक है जहां माता पार्वती का रक्त गिरा है आज भी इस मंदिर में तीन पिंड है और तीनों पिंड को तीन देवियों के नाम से जाना जाता है जिसमें मां दुर्गा मां सरस्वती और मां लक्ष्मी निवास करती हैं।
पुजारी और आए हुए भक्तों का कहना है कि माता सबकी इच्छा पूरी करती हैं यह काफी शक्तिशाली विंध्यवासिनी मंदिर है इस शक्तिपीठ के भी नाम से जाना जाता है यह जो भी लोग आते हैं सच्चे दिल से मन्नत मांगते हैं उनकी सारी मनोकामना पूरी होती है । विंध्यवासिनी माता का दर्शन करने के लिए झारखंड बिहार बंगाल उड़ीसा सहित देश-विदेश से श्रद्धालु मात्र दर्शन करने के लिए आते हैं जब उनकी इच्छा पूरी हो जाती है अपने सुरक्षा से इस मंदिर का रंग रोहन और यथासंभव मंदिर के नाम से कुछ भेंट करते हैं। खासकर चैती दुर्गा मेला में या भव्य मेला लगता है कई दिनों तक यहां पूजा पाठ चलता रहता है।
श्रद्धालु का कहना है कि यहां पहाड़ी बाबा भी निवास करते हैं जो आदिवासियों के लिए काफी श्रद्धा स्वरूप में पूजे जाते हैं इस मंदिर में आदिवासी समाज के लोग भी काफी बढ़ चढ़कर पूजा करने आते हैं इस मंदिर की खासियत यह भी है कि यहां बलि नहीं चढ़ाया जाता है है यहां बाली के रूप में कोहड़ा को काटा जाता है।
बाइट-1-स्वामी गंगानंद गिरी,पुजारी
बाइट-2,3,4- श्रद्धालु




Conclusion:विंध्यवासिनी मंदिर आस्था का प्रतीक माना जाता है यहां दूरदराज से लोग इस मंदिर में विराजमान 3 पॉइंट मां देवी दुर्गा और सरस्वती का दर्शन करने और पूजा करने आते हैं ऐसा माना जाता है कि जो भी सच्चे दिल से मन्नत मांगते हैं उनकी सारी मनोकामना पूरी हो जाती है ऐसा माना जाता है कि 51 शक्ति पीठ में से यह भी एक शक्तिपीठ है जहां सती पर्वती का रथ गिरा था।
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