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SPECIAL: साहिबगंज में खादी ग्रामोद्योग से 'हाकिम' ने फेरा मुंह, महिलाएं संजो रहीं बापू की विरासत

साहिबगंज के खादी ग्रामोद्योग में काम करने वाली महिलाओं के साथ उद्योग की भी हालत खस्ता है. सालों से जर्जर भवन में ही यह काम जारी है. यहां काम करने वाली महिलाओं को भी कोई खास मेहनताना नहीं मिलता. यहां के कर्मचारी सरकार से मदद की आस कर रहे हैं.

Khadi gram udyog in sahibganj
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Published : Oct 19, 2020, 1:11 PM IST

साहिबगंजः कभी देश में क्रांति की मशाल रही खादी साहिबगंज में बेहाल हो गई है. जिले के आला अफसरों ने इसकी ओर से मुंह फेर लिया है, तमाम बार गुहार लगाने के बाद भी जिला उपायुक्त ने जर्जर भवन की मरम्मत के लिए फंड की व्यवस्था नहीं की. यहां काम करने वाली 32 महिलाओं को वर्षों पहले मिलने वाली ही मजदूरी आज भी मिल रही है फिर भी यहां महिलाएं किसी तरह बापू की विरासत संभाल रही हैं.

देखें पूरी खबर

ये भी पढ़ें-देवघर को आज मिलेगी नवरात्रि की सौगात, नगर निगम भवन का मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन करेंगे उद्घाटन

चरखा का नाम सुनते ही हमारे मस्तिष्क में बापू की याद आ जाती है. महात्मा गांधी हमेशा से खादी कपड़ों को बढ़ावा देते थे. अपने देश के कपड़ों को पहनने की सलाह दिया करते थे, लेकिन समय बदलता गया और लोग खादी वस्त्र को दरकिनार करते गए. इस चकाचौंध भरी दुनिया में लोग पश्चिमी सभ्यता की वेशभूषा अधिक पसंद करने लगे. इससे खादी को संजो रहीं महिलाओं की चुनौती बढ़ गई है..

खादी ग्रामोद्योग से जुड़ी हैं 32 महिलाएं

जानकारी के अनुसार साहिबगंज में खादी ग्रामोद्योग से 32 महिलाएं जुड़कर अपना परिवार चला रही हैं, वर्षों से इस संस्थान से जुड़कर काम करते-करते बूढ़ी हो चुकी हैं मगर आज भी इनका हौसले बुलंद हैं.

बदलते दौर में इनकी मजदूरी कम मिलने से ये नाराज हैं. इन महिलाओं का कहना है कि वर्षों से 3 रुपये प्रति गुंडी के हिसाब से मजदूरी मिलती है. कम मजदूरी मिलने से हमें परेशानी हो रही है. इन महिलाओं का कहना है कि कम से कम 5 रुपया प्रति गुंडी मजदूरी होनी चाहिए तभी हम खुशहाल रह पाएंगे. सभी का कहना है कि इस संस्थान से जुड़ कर परिवार चला रहे हैं लेकिन इस महंगाई में मजदूरी बढ़नी चाहिए.

खादी भवन जर्जर

खादी ग्रामोद्योग से जुड़ी महिलाएं बताती हैं कि सुबह 9 बजे काम पर आ जाती हैं और शाम को 5 बजे जाती हैं, समय का पता नहीं चलता है, समय भी कट जाता है. उनका कहना है कि काम करने से वे सभी स्वस्थ भी हैं. सरकार और प्रशासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए, इस जर्जर भवन में पंखा नहीं है लाइट की कमी है. खादी ग्रामोद्योग के मैनेजर ने ईटीवी भारत से कहा कि जिला प्रशासन को कई बार यहां की समस्या से अवगत कराया लेकिन कोई भी पहल नहीं हुई. उन्होंने कहा कि खादी ग्रामोद्योग परिसर में यहां जमीन पर्याप्त है, इस जमीन पर नया भवन बना दिया जाता है तो 100 बुनकर और 250 महिलाओं को काम दिया जा सकता है. पुराना जर्जर भवन है, इससे हमेशा डर लग रहता कि कहीं कोई हादसा न हो जाए.

कपड़ों की बिक्री कम

उन्होंने कहा कि खादी ग्रामोद्योग से अभी 32 महिला चरखा चलाकर काम कर रही हैं. वहीं खादी कपड़ों में चमक नहीं है, यही वजह है कि लोग पसंद नहीं करते और बिक्री कम होती है. कम बिक्री होने से कमाई नहीं होती है.

निश्चित रूप से जिला प्रशासन और सरकार को इस खादी ग्राम उद्योग पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. खादी से जुड़े मशीनों को अगर आधुनिकीकरण कर दिया जाए तो खादी वस्त्रों में थोड़ी चमक आएगी और लोगों को खूब पसंद आएगा.

साहिबगंजः कभी देश में क्रांति की मशाल रही खादी साहिबगंज में बेहाल हो गई है. जिले के आला अफसरों ने इसकी ओर से मुंह फेर लिया है, तमाम बार गुहार लगाने के बाद भी जिला उपायुक्त ने जर्जर भवन की मरम्मत के लिए फंड की व्यवस्था नहीं की. यहां काम करने वाली 32 महिलाओं को वर्षों पहले मिलने वाली ही मजदूरी आज भी मिल रही है फिर भी यहां महिलाएं किसी तरह बापू की विरासत संभाल रही हैं.

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चरखा का नाम सुनते ही हमारे मस्तिष्क में बापू की याद आ जाती है. महात्मा गांधी हमेशा से खादी कपड़ों को बढ़ावा देते थे. अपने देश के कपड़ों को पहनने की सलाह दिया करते थे, लेकिन समय बदलता गया और लोग खादी वस्त्र को दरकिनार करते गए. इस चकाचौंध भरी दुनिया में लोग पश्चिमी सभ्यता की वेशभूषा अधिक पसंद करने लगे. इससे खादी को संजो रहीं महिलाओं की चुनौती बढ़ गई है..

खादी ग्रामोद्योग से जुड़ी हैं 32 महिलाएं

जानकारी के अनुसार साहिबगंज में खादी ग्रामोद्योग से 32 महिलाएं जुड़कर अपना परिवार चला रही हैं, वर्षों से इस संस्थान से जुड़कर काम करते-करते बूढ़ी हो चुकी हैं मगर आज भी इनका हौसले बुलंद हैं.

बदलते दौर में इनकी मजदूरी कम मिलने से ये नाराज हैं. इन महिलाओं का कहना है कि वर्षों से 3 रुपये प्रति गुंडी के हिसाब से मजदूरी मिलती है. कम मजदूरी मिलने से हमें परेशानी हो रही है. इन महिलाओं का कहना है कि कम से कम 5 रुपया प्रति गुंडी मजदूरी होनी चाहिए तभी हम खुशहाल रह पाएंगे. सभी का कहना है कि इस संस्थान से जुड़ कर परिवार चला रहे हैं लेकिन इस महंगाई में मजदूरी बढ़नी चाहिए.

खादी भवन जर्जर

खादी ग्रामोद्योग से जुड़ी महिलाएं बताती हैं कि सुबह 9 बजे काम पर आ जाती हैं और शाम को 5 बजे जाती हैं, समय का पता नहीं चलता है, समय भी कट जाता है. उनका कहना है कि काम करने से वे सभी स्वस्थ भी हैं. सरकार और प्रशासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए, इस जर्जर भवन में पंखा नहीं है लाइट की कमी है. खादी ग्रामोद्योग के मैनेजर ने ईटीवी भारत से कहा कि जिला प्रशासन को कई बार यहां की समस्या से अवगत कराया लेकिन कोई भी पहल नहीं हुई. उन्होंने कहा कि खादी ग्रामोद्योग परिसर में यहां जमीन पर्याप्त है, इस जमीन पर नया भवन बना दिया जाता है तो 100 बुनकर और 250 महिलाओं को काम दिया जा सकता है. पुराना जर्जर भवन है, इससे हमेशा डर लग रहता कि कहीं कोई हादसा न हो जाए.

कपड़ों की बिक्री कम

उन्होंने कहा कि खादी ग्रामोद्योग से अभी 32 महिला चरखा चलाकर काम कर रही हैं. वहीं खादी कपड़ों में चमक नहीं है, यही वजह है कि लोग पसंद नहीं करते और बिक्री कम होती है. कम बिक्री होने से कमाई नहीं होती है.

निश्चित रूप से जिला प्रशासन और सरकार को इस खादी ग्राम उद्योग पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. खादी से जुड़े मशीनों को अगर आधुनिकीकरण कर दिया जाए तो खादी वस्त्रों में थोड़ी चमक आएगी और लोगों को खूब पसंद आएगा.

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