साहिबगंजः गंगा किनारे बसा साहिबगंज उसकी विरासत को भी संजोए हुए है. जो अपने आप में भारत की परंपरा और प्राचीनता की कहानी है. साहिबगंज के लोग भी गंगा ही की तरह उम्मीदों से भरे हुए हैं. तभी नवरात्रि में पूजा के लिए पंडाल ऐसे सजाए, जैसे कोरोना की मुश्किल कभी आई ही नहीं. अब दिवाली नजदीक है, लोग सबसे बड़े त्योहार को मनाने के लिए उत्साह से भरे हुए हैं. तो कुम्हार इस दिवाली को दीये वाली बनाने में जुट गए हैं.
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इस साल दीये बनाने वालों के चेहरों पर चमक भी है. क्योंकि उन्हें अच्छा कारोबार होने की उम्मीद है. दीये बनाने वाली महिला कारीगर बरमसिया देवी का कहना है कि जब देश के चीन से रिश्ते अच्छे थे तो हमारी मुसीबत थी. बड़े पैमाने पर निर्माण के कारण चीनी सामान हमारे सामानों से सस्ते होते थे और हमारे बाजारों में पट जाते थे. लोग भी उनके सामान ही खरीदते थे, जिससे हमें बड़ा नुकसान होता था. अब चीन से बिगड़े रिश्तों के कारण चीनी सामान से बाजारों के न पटने की संभावना ने हमारे लिए अच्छी कमाई की उम्मीद बंधा दी है.
15 दिन से बना रहे दीये
मिट्टी के दीये बनाने वाले लक्ष्मी पंडित ने बताया कि वे 15 दिनों से दीये, मिट्टी के दूसरे सामान, मटके, सुराही कमंडल आदि बनाने में जुटे हैं, ताकि ग्राहको को अच्छा सामान मिल सके. इधर, लक्ष्मी पंडित की पत्नी का कहना है कि दिवाली में दिन-रात मेहनत करके दीये बनाते हैं.
पूरा परिवार इसी काम में लगा रहता है, लेकिन जब इन दीयों को लेकर बाजार पहुंचते हैं तो ग्राहक चाइनीज लड़ियां और मोमबत्तियां ही लोग पसंद करते हैं. इससे हमारे लिए मुश्किल होती है. लोग थोड़ा हमारे लिए सोचें तो हममें से कई की जिंदगी आसान हो जाए. यह भी कहा कि इस बार चीन का सामान बाजार में कम बिकता है तो उनके लिए साल अच्छा बीतेगा.
चीन के सामानों से दूरी शहीदों को श्रद्धांजलिः शहीद कुंदन के पिता
चीनी सामानों से नाराजगी मिट्टी के दीये बनाने वालों को तो है ही. साहिबगंज के दिहारी गांव के शहीद कुंदन ओझा के पिता रवि शंकर ओझा को भी है. रवि शंकर ओझा ने बताया कि 16 जून 2020 को गलवान घाटी में 20 भारतीय फौजी शहीद हो गए थे. इनमें से एक साहिबगंज के दिहारी गांव के उनके बेटे कुंदन ओझा भी थे. उन्होंने लोगों से अपील की है कि दिवाली पर लोग स्थानीय मिट्टी के दीये ही जलाएं. उन्होंने कहा कि जिस देश के लिए उनके बेटे ने जान की बाजी लगा दी, वहां के लोग चीनी सामानों का कम से कम इस्तेमाल करें, यह उनके बेटे के लिए श्रद्धांजलि होगी.
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ऐसे मदद भी कर सकेंगे
पर्यावरणविद प्रोफेसर रंजीत सिंह का कहना है कि मिट्टी से जुड़ी हर चीज की जरूरत हम सबको है. यह ईको फ्रेंडली भी है. इसलिए दिवाली जैसे महापर्व पर हमारे साहिबगंज के कलाकारों द्वारा बनाए गए मिट्टी के दिये का लोग प्रयोग करें. इससे इन लोगों का रोजगार और मनोबल भी बढ़ेगा. साथ ही अनजाने ही हम अपने लोगों की मदद कर पाएंगे और पर्यावरण भी बचा पाएंगे. दूसरे रूप में यह गलवान घाटी में शहीद कुंदन ओझा के लिए श्रद्धांजलि भी होगी.
लोन लेकर करें कारोबार
लोकल फॉर वोकल अभियान के तहत सरकार भी मिट्टी के दीये के कारोबार को बढ़ाने में मदद कर रही है. साहिबगंज जिला उद्योग केंद्र के महाप्रबंधक रमेश प्रसाद गुप्ता ने कहा कि ऐसे लोग जो कोरोना के कारण कारोबार नहीं शुरू कर पा रहे हैं, उनको उद्योग विभाग 1 लाख से पच्चीस लाख तक का लोन दिलाया जा रहा है. इसमें ओबीसी के लिए 35 फीसदी और सामान्य वर्ग के लोगों के लिए 25 फीसदी छूट रहेगी.