साहिबगंजः कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के दौरान आर्थिक संकट की स्थिति उत्पन्न हो गयी. इससे अभी-भी लोग पूरी तरह से उबर नहीं पाए हैं. कई बंदिशों के बावजूद लोग काम कर रहे हैं. इसी तरह साहिबगंज के किसान भी महंगाई और आर्थिक तंगी से परेशान हैं. लेकिन अब ये किसान केमिकल खाद को छोड़कर जैविक खाद का उपयोग कर फसल उगा रहे हैं.
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किसानों का कहना है कि एक तरफ रासायनिक खाद फसल पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है. रासायनिक खाद से उत्पादन पहले की तरह नहीं हो रहा और इस महंगाई में किसानों की लागत भी बढ़ रही है. लेकिन खर्च के अनुपात में पैदावार नहीं हो रहा है. अब किसान Chemical Fertilizers के दुष्प्रभाव को जान लिया है कि कैसे ये खेत की उर्वरक क्षमता को कम कर देता है और जमीन को बंजर बना देता है. जिसका असर फसल पर पड़ता है.
कोरोना काल में किसान आर्थिक तंगी में बचत के लिए काफी कुछ सीखा है. एक तरफ रासायनिक खाद की आसमान छूती कीमतें तो दूसरी ओर से खेतों की कम होती पैदावार. लॉकडाउन और आर्थिक मार के बीच जैविक खाद और सड़ा हुआ गोबर का उपयोग किसान अपने खेतों में करने लगे हैं. इसका फायदा भी अब उन्हें मिलने लगा है. किसानों का मानना है कि जैविद खाद ही मिट्टी के लिए सबसे अच्छा है, इससे पैदावार भी अच्छी होती है और मिट्टी में नमी भी बनी रहती है. इसके साथ ही कम लागत में ज्यादा का फायदा होता है.
जैविक खाद की ओर किसानों का रुझान
कबूतर खोपी के रहने वाले किसान टुनटुन चौधरी ने बताया कि कोरोना काल में सभी किसान टूट चुके हैं. महंगे दाम पर यूरिया, डीएपी खरीदना पड़ता है. लेकिन इसका खास प्रभाव फसल और पैदावार पर नहीं पड़ता है, यहां तक की उत्पादन भी कम हो जाता है. लेकिन करोना काल में जब से जैविक खाद का उपयोग करने लगे हैं तब से फसल लगाने में खर्च कम आ रहा और रासायनिक खाद से खेत के बंजर होने की संभावना भी खत्म होती जा रही है.
किसान प्रमोद चौधरी ने कहा कि कोरोना काल से इस खाद का अधिक उपयोग करने लगे हैं, यह पौधों को मजबूती प्रदान करता है. उन्होंने कहा कि दियारा क्षेत्र में बलुआई मिट्टी है और इस मिट्टी में जैविक खाद काफी मददगार साबित हो रहा है. अब किसान सड़े हुए गोबर और केंचुए से तैयार खाद का ही इस्तेमाल कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि जैविक और वर्मी कंपोस्ट खाद के इस्तेमाल से पिछले साल गेहूं, मकई, सब्जी की पैदावार अच्छी हुई थी. उन्होंने दूसरे किसानों से अपील करते हुए कहा कि वो रासायनिक खाद का उपयोग ना करें, इसके बदले में जैविक खाद का उपयोग अपने खेतों में अधिक से अधिक करें.
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जागरूक हो रहे किसान
जैविक और वर्मी कंपोस्ट खाद को लेकर किसानों में आई जागरुकता पर कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक वीरेंद्र कुमार मेहता ने बताया कि यह खुशी की बात है कि अब किसान रसायनिक खाद का उपयोग नहीं कर रहे हैं. वो जैविक खाद का उपयोग कर रहे हैं जो खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए काफी लाभदायक होता है. इसके इस्तेमाल से किसान को कम लागत में अच्छी खाद मिलती है और पैदावार भी अच्छी होती है. उन्होंने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करने से भी जैविक खाद किसानों को उपलब्ध कराई जाती है. इसके अलावा समय-समय पर उन्हें प्रशिक्षण भी देने की व्यवस्था की गयी है.
क्या है जैविक खाद
फसल की बेहतर पैदावार और पोषण के लिए जीवधारियों या उनके अवशेषों के उपयोग को जैविक पोषक तत्व या जैविक खाद कहा जाता है. जैविक खाद वातावरण में उपलब्ध नाइट्रोजन को संरक्षित करने या पोषक तत्वों जैसे-फास्फोरस को पौधों को उपलब्ध कराने में सहायक होती है. जैविक खाद पौधों की प्रभावकारी वृद्धि के लिए पोषक तत्व वाहक का काम भी करती है.
जैविक खाद के लाभ
जैविक खाद, जैविक पदार्थों से बनाई जाती हैं. ये खाद पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने में मदद करती हैं और मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ाती है. जैविक खाद से मिट्टी की नमी को लंबे समय तक संरक्षित रखा जा सकता है. इसके साथ ही भूमि के कटाव को भी कम किया जा सकता है.
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कंपोस्ट क्या है?
खेतों में बेकार पड़ी जैविक चीजों को सड़ाकर कंपोस्ट के रूप में परिणित कर पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की कमी को किसी हद तक पूरा किया जा सकता है. कंपोस्ट परोक्ष रूप से पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने में मददगार होता है. कंपोस्ट पोषक तत्वों का बहुत अच्छा स्त्रोत हैं. कंपोस्ट पौधों के लिए आवश्यक है और पर्यावरण को नुकसान भी नहीं होता. कंपोस्ट खाद खेत की मिट्टी को भुरभुरा बनाता है. इससे मिट्टी में पौधों के लिए उचित पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में मिलता है. अपने आस-पास उपलब्ध बेकार पड़ी जैविक सामग्रियों द्वारा कंपोस्ट बनाए जा सकते हैं.
केंचुआ खाद या Vermicompost
इसमें पोषण पदार्थों से भरपूर एक उत्तम जैव उर्वरक है. यह केंचुआ आदि कीड़ों के द्वारा वनस्पतियों एवं भोजन के कचरे को विघटित करके बनाई जाती है. वर्मी कंपोस्ट में बदबू नहीं होती है और मक्खी एवं मच्छर नहीं बढ़ते है और वातावरण भी प्रदूषित नहीं होती है. तापमान नियंत्रित रहने से जीवाणु क्रियाशील और सक्रिय रहते हैं. वर्मी कंपोस्ट डेढ़ से दो महीने के अंदर तैयार हो जाता है. इसमें 2.5 से 3% नाइट्रोजन, 1.5 से 2% सल्फर और 1.5 से 2% पोटाश पाया जाता है. जो खेती के लिए काफी अच्छा माना जाता है.