साहिबगंज: कोरोना काल में लोग बीमारियों से बचने और स्वस्थ्य रहने के लिए कई तरह की सावधानियां बरत रहे हैं. कोरोना ने लोगों को मानसिक स्तर पर भी प्रभावित किया है. साहिबगंज में भी अवसाद और मेंटल रोगियों की संख्या काफी तेजी से बढ़ रही है, लेकिन इसके इलाज के लिए जिले में समुचित व्यवस्था आज तक नहीं हो पाई है.
देश-दुनिया में मनोरोगियों की संख्या काफी तेजी से बढ़ रही है. इसी के मद्देनजर हर साल लोगों को जागरूक करने के लिए 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता हैं. इस कोरोना काल में विशेषज्ञों की मानें तो मानसिक महामारी का बीजारोपण हो चुका है. इससे बचाव के उपाय भी तलाशे जा रहे हैं. इसका मुख्य कारण तनाव व अवसाद है. जागरूकता ही इससे बचाव का सर्वोत्तम उपाय है. ऐसे में साहिबगंज जिला इस बीमारी से निपटने के लिए कितना सक्षम है, इसका हकीकत यहां के लोग ही बताते हैं. स्थानीय लोगों के अनुसार इस जिले में सरकारी स्तर पर कोई व्यवस्था नहीं है. यहां एक भी मनोरोग के डॉक्टर पदास्थापित नहीं हैं. झरखंड में जब महागठबंधन की सरकार थी और इसी जिले के बरहेट विधायक हेमलाल मुर्मू स्वास्थ्य मंत्री थे, तब जिलेवासियों को एक आश अपने विधायक से जगी थी, कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतर कार्य होंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया.
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मेंटल हॉस्पिटल का उद्घाटन साल 2011 में हुआ था
झारखंड सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे हेमलाल मुर्मू अपने शासनकाल में जिलेवासियों को कई उपहार तो दिए, लेकिन विभागीय लापरवाही के कारण आज उसका फायदा आम लोगों को नहीं मिल पा रहा है. जिला सदर अस्पताल के प्रांगण में करोड़ों की लागत से मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सालय भवन तो मंत्री ने बनवा दिए और 6 अगस्त 2011 को उद्घाटन भी हुआ था, लेकिन आजतक इस विभाग को शुरू नहीं किया जा सका है. राज्य का यह सबसे सुदरवर्ती और शांत जिला है. ट्रेन से 12 से 14 घंटे और सड़क माध्यम से 8 घंटे में राजधानी रांची पहुंचा जा सकता है. ऐसी स्थिति में अगर अस्पातल इसी जिले में होता तो जिलेवासियों के लिए यह मेंटल हॉस्पिटल वरदान साबित होता, लेकिन आज राजनीति के दाव-पेंच में फंसकर यह बिल्डिंग बेकार पड़ा हुआ है. 9 साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी यहां किसी डॉक्टर की प्रतिनियुक्ति नहीं हो पाई है. यह मेंटल हॉस्पिटल स्वास्थ्य विभाग अपने निजी काम में इस्तेमाल कर रहा है. फिलहाल इस भवन में पुलिस गार्ड और 108 एम्बुलेंस का ड्राइवर रह रहा है, तो किसी कमरे में दवा रखा गया है.
इन सवालों के जबाब किसी के पास नहीं
सवाल यह है कि एक दशक पूरा होने जा रहा है, जिला प्रशासन या राज्य सरकार का ध्यान इस ओर क्यों नहीं जा रहा है. आखिर इस भवन को बनाने का उद्देश्य क्या था. मेंटल हॉस्पिटल का उद्घाटन से जहां एक ओर लोगों में खुशी थी, वहीं अब सरकार और विभाग की इस रवैये से लोगों में अब उनके प्रति नाराजगी भी है. इस जिले के रोगियों को इलाज के लिए रांची या पटना जाना पड़ता है. ऐसे में रोगियों के साथ परिजनों को भी शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से परेशानियों का सामना करना पड़ता है. एक बार फिर से हेमंत सोरेन की सरकार है. आशा है इस सरकार के शासनकाल में इस मेंटल हॉस्पिटल को डॉक्टर मिल जाए.