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पलायन का दर्दः रोजगार की तलाश में भटकते झारखंड के मजदूर, हजारों की संख्या में प्रतिदिन कर रहे हैं पलायन - मजदूरों का पलायन

झारखंड पलायन के दर्द से बेजार है. सरकार के प्रयासों के बाद भी आज भी हर दिन प्रदेश के मजदूर रोजगार की तलाश में कन्याकुमारी से असम तक पलायन कर रहे हैं.

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पलायन करते मजदूर
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Published : Jan 7, 2021, 6:50 PM IST

रांची: देश के धनवान राज्यों में शामिल झारखंड के लोग गरीबी में जीने को मजबूर हैं. यह हम नहीं कह रहे हैं बल्कि ईटीवी भारत के कैमरे में कैद तस्वीरें बयां कर रही है. इसी के मद्देनजर झारखंड के ग्रामीण एवं सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले लाचार और मासूम लोग किस प्रकार से ठेकेदारों माध्यम से रोजगार की तलाश में अपने छोटे-छोटे बच्चे और घरों को छोड़कर जाने के लिए मजबूर है.

पलायन पर ईटीवी भारत की पड़ताल
पलायन कर रहे हैं मजदूर

लोहरदगा जिला से बलिया जा रहे हैं मजदूर लंका उरांव बताते हैं कि घर में काम नहीं रहने के कारण हमें मजबूरन अपना घर छोड़कर दूर प्रदेश जाना पड़ रहा है. क्योंकि हमारे पास खाने पीने का कोई इंतजाम नहीं है. इतना ही नहीं हमने जब उनसे पूछा कि आप कहां जा रहे हैं तो उन्हे इसकी कोई जानकारी तक नहीं है जो कहीं ना कहीं एक संशय पैदा करता है. वहीं बक्सर जा रहे हैं मजदूर बताते हैं कि अपने राज्य और अपने घरों में रोजगार नहीं मिलने के कारण हम लोग बाहर जाने के लिए विवश हैं. वहीं बनारस बंगाल जाने वाले मजदूरों की भी संख्या हजारों में देखी गई और दिन-ब-दिन पलायन कर रहे मजदूरों की संख्या बढ़ती ही जा रही है, जो चिंता का विषय है.

घर में नहीं मिल रहा काम

लॉकडाउन के बाद प्रवासी मजदूरों को झारखंड लाने के बाद वर्तमान सरकार ने अपने घरों में ही रोजगार देने की बात कही थी. राजधानी के खादगढ़ा बस स्टैंड पर पलायन करती तस्वीरें यह सब बता रही है कि सरकार अपने वादे को निभाने में कहीं से भी सफल नहीं हो पाई है. कई मजदूरों ने बताया कि गरीबी और भुखमरी के कारण हम लोग अपने माता पिता और बच्चों को छोड़ने के लिए मजबूर हैं. ऐसे में अगर हम लोगों को अपने घर में ही रोजगार मिल जाता है तो हम लोगों के लिए यह काफी बेहतर होगा. बस स्टैंड से मजदूरों को बाहर भेजने में कहीं ना कहीं दलाल का भी अहम भूमिका है. क्योंकि झारखंड के ग्रामीण एवं सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले भोले भाले मजदूरों को बाहर के प्रदेश भेजने में ठेकेदारों को सीधा लाभ होता है.

इसे भी पढ़ें- रिमांड में भैरव सिंह को टॉर्चर नहीं कर सकती पुलिस, कोर्ट का आदेश


ईटीवी भारत की पड़ताल

ईटीवी भारत की टीम ने जब और भी पड़ताल किया तो हमने देखा इसमें कई ऐसे मजदूर हैं जिन्हें अपने अधिकारों की भी जानकारी नहीं है. ऐसे में अगर इन सीधे-साधे मजदूरों के साथ कुछ गलत होता है तो वह इसकी जानकारी भी जल्द से जल्द उचित जगह पर नहीं पहुंचा पायेगा. पलायन कर रहे आधे से अधिक गरीब मजदूरों के पास अपना मोबाइल फोन तक नहीं है. पलायन कर रहे मजदूरों की यह दुर्दशा आज भी साफ दर्शाता है कि झारखंड भले ही देश के धनी राज्यों में शामिल हो लेकिन यहां के रहने वाले लोग आज भी गरीबी की मार झेलने को मजबूर हैं.

रांची: देश के धनवान राज्यों में शामिल झारखंड के लोग गरीबी में जीने को मजबूर हैं. यह हम नहीं कह रहे हैं बल्कि ईटीवी भारत के कैमरे में कैद तस्वीरें बयां कर रही है. इसी के मद्देनजर झारखंड के ग्रामीण एवं सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले लाचार और मासूम लोग किस प्रकार से ठेकेदारों माध्यम से रोजगार की तलाश में अपने छोटे-छोटे बच्चे और घरों को छोड़कर जाने के लिए मजबूर है.

पलायन पर ईटीवी भारत की पड़ताल
पलायन कर रहे हैं मजदूर

लोहरदगा जिला से बलिया जा रहे हैं मजदूर लंका उरांव बताते हैं कि घर में काम नहीं रहने के कारण हमें मजबूरन अपना घर छोड़कर दूर प्रदेश जाना पड़ रहा है. क्योंकि हमारे पास खाने पीने का कोई इंतजाम नहीं है. इतना ही नहीं हमने जब उनसे पूछा कि आप कहां जा रहे हैं तो उन्हे इसकी कोई जानकारी तक नहीं है जो कहीं ना कहीं एक संशय पैदा करता है. वहीं बक्सर जा रहे हैं मजदूर बताते हैं कि अपने राज्य और अपने घरों में रोजगार नहीं मिलने के कारण हम लोग बाहर जाने के लिए विवश हैं. वहीं बनारस बंगाल जाने वाले मजदूरों की भी संख्या हजारों में देखी गई और दिन-ब-दिन पलायन कर रहे मजदूरों की संख्या बढ़ती ही जा रही है, जो चिंता का विषय है.

घर में नहीं मिल रहा काम

लॉकडाउन के बाद प्रवासी मजदूरों को झारखंड लाने के बाद वर्तमान सरकार ने अपने घरों में ही रोजगार देने की बात कही थी. राजधानी के खादगढ़ा बस स्टैंड पर पलायन करती तस्वीरें यह सब बता रही है कि सरकार अपने वादे को निभाने में कहीं से भी सफल नहीं हो पाई है. कई मजदूरों ने बताया कि गरीबी और भुखमरी के कारण हम लोग अपने माता पिता और बच्चों को छोड़ने के लिए मजबूर हैं. ऐसे में अगर हम लोगों को अपने घर में ही रोजगार मिल जाता है तो हम लोगों के लिए यह काफी बेहतर होगा. बस स्टैंड से मजदूरों को बाहर भेजने में कहीं ना कहीं दलाल का भी अहम भूमिका है. क्योंकि झारखंड के ग्रामीण एवं सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले भोले भाले मजदूरों को बाहर के प्रदेश भेजने में ठेकेदारों को सीधा लाभ होता है.

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ईटीवी भारत की पड़ताल

ईटीवी भारत की टीम ने जब और भी पड़ताल किया तो हमने देखा इसमें कई ऐसे मजदूर हैं जिन्हें अपने अधिकारों की भी जानकारी नहीं है. ऐसे में अगर इन सीधे-साधे मजदूरों के साथ कुछ गलत होता है तो वह इसकी जानकारी भी जल्द से जल्द उचित जगह पर नहीं पहुंचा पायेगा. पलायन कर रहे आधे से अधिक गरीब मजदूरों के पास अपना मोबाइल फोन तक नहीं है. पलायन कर रहे मजदूरों की यह दुर्दशा आज भी साफ दर्शाता है कि झारखंड भले ही देश के धनी राज्यों में शामिल हो लेकिन यहां के रहने वाले लोग आज भी गरीबी की मार झेलने को मजबूर हैं.

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