रांची: 8 मार्च यानी विश्व महिला दिवस. महिला दिवस के अवसर पर विभिन्न कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें महिलाओं को हक और अधिकार दिलाने की मुद्दे पर चर्चा की गई. लेकिन झारखंड की महिलाओं को सम्मान नहीं मिल रहा है. स्थिति यह है कि महिलाएं आज भी न्यूनतम वेतन की मांग को लेकर धरना पर बैठी है.
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झारखंड की घरेलू महिलाओं की बात छोड़ दें. सरकारी संस्थाओं में काम करने वाली महिलाएं अपने हक की लड़ाई लड़ने को मजबूर हैं. झारखंड में कार्य करने वाले को संयोजिका, रसोइया, आंगनबाड़ी सेविका, पोषण सखी आदि के रूप में काम कर रही महिलाएं अपने हक की लड़ाई लड़ रही हैं.
राज्य में पोषण सखी की संख्या करीब 10 हजार 400 हैं, जो न्यूनतम वेतन और स्थायी नौकरी की मांग को लेकर पिछले 20 दिनों से धरना पर बैठी हैं. वहीं दो हजार मासिक वेतन पर काम कर रही रसोइया भी वेतन की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रही हैं. आंगनबाड़ी सेविका और सहिया दीदी की स्थिति भी अच्छी नहीं है.
पोषण सखी के रूप में काम करने वाली महिलाओं ने कहा कि जिस राज्य में महिलाएं घर परिवार छोड़कर अपने हक की लड़ाई लड़ने को मजबूर हैं. उस राज्य में महिलाओं को सम्मान मिलने की बात करना नाइंसाफी होगी. महिला एवं बाल विकास मंत्री जोबा मांझी ने कहा कि राज्य सरकार की ओर महिलाओं की विकास को लेकर कई योजनाएं संचालित कर रही है. उन्होंने कहा कि सभी महिलाएं योजनाओं से लाभान्वित हो. इसको लेकर सरकार प्रयास कर रही है.