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जज्बे को सलाम: नौकरी के लिए नौ साल लड़ी कानूनी लड़ाई

एक ओबीसी महिला को नौकरी के लिए नौ साल लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी. महिला ने अपने अधिकार के लिए केंद्रीय प्रसाशनिक पंचाट से लेकर हाईकोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया और सालों बाद डाटा एंट्री ऑपरेटर की नौकरी हासिल की. आइये जानते हैं कि कब, कैसे और क्या-क्या हुआ...

woman fought 9 years legal case for job of Data Entry Operator
woman fought 9 years legal case for job of Data Entry Operator
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Published : Jun 3, 2022, 8:21 PM IST

नई दिल्ली : एसएससी के माध्यम से डाटा एंट्री ऑपरेटर बनने के लिए एक युवती को 9 साल लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी. इस कानूनी लड़ाई के दौरान उसका विवाह झारखंड में हो गया. शादी के बाद वह दो बच्चों की मां बनी, लेकिन नौकरी पाने की उम्मीद उसने नहीं छोड़ी. 6 साल बाद कैट ने उसकी याचिका को खारिज कर दिया. उसने फिर भी हिम्मत नहीं हारी. इस मामले में हाईकोर्ट ने बड़ी राहत देते हुए 9 साल बाद एसएससी को निर्देश दिए हैं कि युवती को डाटा एंट्री ऑपरेटर की नौकरी दी जाए.


अधिवक्ता अनिल सिंघल ने बताया कि महेंद्रगढ़ की रहने वाली सुनील पूजा ने वर्ष 2012 में एसएससी में डाटा एंट्री ऑपरेटर की नौकरी के लिए आवेदन किया था. उसने ओबीसी कैटेगरी के तहत यह आवेदन किया था. इसमें अगस्त 2009 से लेकर अगस्त 2012 के बीच का ओबीसी सर्टिफिकेट जमा कराने के लिए एसएससी ने कहा था, लेकिन पूजा के पास जून 2009 का ओबीसी प्रमाण पत्र था. उसने दिसंबर 2012 में भी ओबीसी का प्रमाण पत्र बनवा लिया. वर्ष 2013 में जब परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ तो उसमें ओबीसी कैटेगरी की मेरिट सूची में पूजा का नाम नहीं था. उसे जनरल मानते हुए चयनित नहीं किया गया था.

देखें पूरी खबर
सुनील पूजा ने अधिवक्ता अनिल सिंघल के माध्यम से वर्ष 2013 में कैट (केंद्रीय प्रसाशनिक पंचाट) में याचिका दायर की. उन्होंने कैट में जज को बताया कि किस तरीके से ओबीसी होते हुए भी उसे मेरिट सूची में नहीं रखा गया है. वहीं एसएससी की तरफ से दलील दी गई कि उन्होंने जिस अवधि का ओबीसी सर्टिफिकेट मांगा था, वह आवेदनकर्ता के पास नहीं है, इसलिए उसे ओबीसी कोटे में लाभ नहीं दिया जा सकता. वर्ष 2019 में कैट ने युवती की याचिका को खारिज कर दिया. इसके बाद अधिवक्ता अनिल सिंघल ने हाईकोर्ट के समक्ष कैट के निर्णय को चैलेंज किया.

उन्होंने हाईकोर्ट को बताया कि सुनील पूजा जन्म से ओबीसी है. ऐसे में उसके ओबीसी होने के लिए किसी तारीख के सर्टिफिकेट की आवश्यकता नहीं है. उसके पास तय की गई अवधि के पहले और बाद का सर्टिफिकेट है, जिसे एसएससी ने नहीं लिया है. हाई कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करने के बाद आदेश दिए हैं कि सुनील पूजा को ओबीसी मानते हुए एसएससी डाटा एंट्री ऑपरेटर की नौकरी दे. पूजा को अब एसएससी के माध्यम से नौकरी मिलेगी. उसे वही वेतन मिलेगा जो उस समय भर्ती हुए डाटा एंट्री ऑपरेटर को अभी मिल रहा है. इसके साथ ही उनके समान ही पदोन्नति का अवसर भी उसे दिया जाएगा.

झारखंड में रहने वाली सुनील पूजा ने ईटीवी भारत से बात करते हुए हाईकोर्ट के फैसले पर खुशी जताई. पूजा ने बताया कि एसएससी ने जब उसका चयन नहीं किया तो वह काफी निराश हुई थी, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और उनके फैसले के खिलाफ कैट में याचिका दायर की. 2016 में उसका विवाह हो गया. 2018 में उसने पहले बेटे को जन्म दिया और 2020 में वह दोबारा मां बनी. उसके जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन उसने हार नहीं मानी. पूजा ने बताया कि कैट ने जब उसके हक में फैसला नहीं दिया तो उसे निराशा हुई, लेकिन उसने तय किया कि वह हार नहीं मानेगी. इसलिए उसने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और आखिरकार उसे वह नौकरी मिली जिसकी हकदार वह 2013 में थी.

नई दिल्ली : एसएससी के माध्यम से डाटा एंट्री ऑपरेटर बनने के लिए एक युवती को 9 साल लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी. इस कानूनी लड़ाई के दौरान उसका विवाह झारखंड में हो गया. शादी के बाद वह दो बच्चों की मां बनी, लेकिन नौकरी पाने की उम्मीद उसने नहीं छोड़ी. 6 साल बाद कैट ने उसकी याचिका को खारिज कर दिया. उसने फिर भी हिम्मत नहीं हारी. इस मामले में हाईकोर्ट ने बड़ी राहत देते हुए 9 साल बाद एसएससी को निर्देश दिए हैं कि युवती को डाटा एंट्री ऑपरेटर की नौकरी दी जाए.


अधिवक्ता अनिल सिंघल ने बताया कि महेंद्रगढ़ की रहने वाली सुनील पूजा ने वर्ष 2012 में एसएससी में डाटा एंट्री ऑपरेटर की नौकरी के लिए आवेदन किया था. उसने ओबीसी कैटेगरी के तहत यह आवेदन किया था. इसमें अगस्त 2009 से लेकर अगस्त 2012 के बीच का ओबीसी सर्टिफिकेट जमा कराने के लिए एसएससी ने कहा था, लेकिन पूजा के पास जून 2009 का ओबीसी प्रमाण पत्र था. उसने दिसंबर 2012 में भी ओबीसी का प्रमाण पत्र बनवा लिया. वर्ष 2013 में जब परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ तो उसमें ओबीसी कैटेगरी की मेरिट सूची में पूजा का नाम नहीं था. उसे जनरल मानते हुए चयनित नहीं किया गया था.

देखें पूरी खबर
सुनील पूजा ने अधिवक्ता अनिल सिंघल के माध्यम से वर्ष 2013 में कैट (केंद्रीय प्रसाशनिक पंचाट) में याचिका दायर की. उन्होंने कैट में जज को बताया कि किस तरीके से ओबीसी होते हुए भी उसे मेरिट सूची में नहीं रखा गया है. वहीं एसएससी की तरफ से दलील दी गई कि उन्होंने जिस अवधि का ओबीसी सर्टिफिकेट मांगा था, वह आवेदनकर्ता के पास नहीं है, इसलिए उसे ओबीसी कोटे में लाभ नहीं दिया जा सकता. वर्ष 2019 में कैट ने युवती की याचिका को खारिज कर दिया. इसके बाद अधिवक्ता अनिल सिंघल ने हाईकोर्ट के समक्ष कैट के निर्णय को चैलेंज किया.

उन्होंने हाईकोर्ट को बताया कि सुनील पूजा जन्म से ओबीसी है. ऐसे में उसके ओबीसी होने के लिए किसी तारीख के सर्टिफिकेट की आवश्यकता नहीं है. उसके पास तय की गई अवधि के पहले और बाद का सर्टिफिकेट है, जिसे एसएससी ने नहीं लिया है. हाई कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करने के बाद आदेश दिए हैं कि सुनील पूजा को ओबीसी मानते हुए एसएससी डाटा एंट्री ऑपरेटर की नौकरी दे. पूजा को अब एसएससी के माध्यम से नौकरी मिलेगी. उसे वही वेतन मिलेगा जो उस समय भर्ती हुए डाटा एंट्री ऑपरेटर को अभी मिल रहा है. इसके साथ ही उनके समान ही पदोन्नति का अवसर भी उसे दिया जाएगा.

झारखंड में रहने वाली सुनील पूजा ने ईटीवी भारत से बात करते हुए हाईकोर्ट के फैसले पर खुशी जताई. पूजा ने बताया कि एसएससी ने जब उसका चयन नहीं किया तो वह काफी निराश हुई थी, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और उनके फैसले के खिलाफ कैट में याचिका दायर की. 2016 में उसका विवाह हो गया. 2018 में उसने पहले बेटे को जन्म दिया और 2020 में वह दोबारा मां बनी. उसके जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन उसने हार नहीं मानी. पूजा ने बताया कि कैट ने जब उसके हक में फैसला नहीं दिया तो उसे निराशा हुई, लेकिन उसने तय किया कि वह हार नहीं मानेगी. इसलिए उसने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और आखिरकार उसे वह नौकरी मिली जिसकी हकदार वह 2013 में थी.

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