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मध्यस्थता के जरिए भी उपभोक्ता करा सकते हैं विवादों का निपटारा, जानिए कन्ज्यूमर कोर्ट के मध्यस्थ की क्या है भूमिका - राज्य उपभोक्ता आयोग

झारखंड में उपभोक्ताओं द्वारा दायर केस को सुलझाने के लिए कन्ज्यूमर न्यायालय में मध्यस्थ को रखा गया है. इसके जरिए आपस में ही मामले को सुलझा लिया जाता है. इसके लिए ग्राहकों को लंबी कानूनी प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ता है. Role of Mediator in Consumer Court Jharkhand

Role of Mediator in Consumer Court Jharkhand
Consumer Court Jharkhand
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Oct 23, 2023, 5:12 PM IST

रांची: किसी भी विवाद को सुलझाने में मध्यस्थ की भूमिका अहम होती है. चाहे वो कानूनी प्रक्रिया हो या सामाजिक विवाद. इसकी महत्ता को ध्यान में रखकर न्यायिक व्यवस्था में तेजी से मध्यस्थता का प्रचलन बढ़ा है, जो कारगर साबित हो रहा है. उपभोक्ता संरक्षण के लिए बने कानूनी प्रावधान में भी इसे अपनाया गया है. जिसका लाभ कन्ज्यूमर को लंबी कानूनी प्रक्रिया से गुजरने के बजाय कम समय में राहत देने वाली होती है.

यह भी पढ़ें: कन्जयूमर कोर्ट से फैसला होने पर भी न्याय मिलने में होती है देरी, आखिर कैसे मिलेगा न्याय?

झारखंड में राज्य उपभोक्ता आयोग से लेकर जिला स्थित कन्ज्यूमर न्यायालय में मध्यस्थ को रखा गया है. राज्य उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष बसंत कुमार गोस्वामी के अनुसार, राज्य उपभोक्ता आयोग में 10 और जिलों में करीब 143 मध्यस्थ रखे गए हैं, जिसमें अधिकांशतः वरीय अधिवक्ता हैं. जो जिला या राज्यस्तरीय विधिक सेवा प्राधिकार में मध्यस्थ की भूमिका में रहे हैं.

कन्ज्यूमर कोर्ट में मध्यस्था से जुड़े कुछ अहम बिंदू:

  1. मध्यस्थता के जरिए कन्ज्यूमर कोर्ट केसों का है 25% सफलता दर
  2. राज्य उपभोक्ता आयोग में 10 और सभी जिलों में हैं 143 मध्यस्थ
  3. मध्यस्थता सफल होने पर प्रति केस अधिवक्ताओं को मिलता है 5000 रुपया, असफल होने पर 2500 रुपया
  4. न्यायालय के आदेश पर केसों को मध्यस्थता के लिए होता ट्रांसफर
  5. झारखंड एकमात्र राज्य जहां मिलते हैं मध्यस्थों को प्रति केस पारिश्रमिक

मध्यस्थता के जरिए 25% सफलता दर: मध्यस्थता के जरिए झारखंड में केसों का सक्सेस रेसियो 25% है. इसके माध्यम से मध्यस्थ दोनों पक्षों को एक साथ आमने-सामने बिठाने का काम करता है और उसके बाद दोनों की राय जानने के बाद इस मामले में निर्णय लिया जाता है. इसमें अलग से कोई अधिवक्ता रखने की कंज्यूमर को कोई जरूरत नहीं है यानी कि बगैर कोई खर्च के मध्यस्थता के जरिए मामले सुलझ जाते हैं.

मामला सुलझ जाने पर अधिवक्ता को प्रति केस 5000 रुपया और यदि असफल होते हैं तो 2500 रुपया दिया जाता है. राज्य उपभोक्ता आयोग में ऐसे 10 मध्यस्थ हैं, जो कोर्ट के आदेश पर मामलों की मध्यस्थता करते हैं. इसी तरह जिला स्तर पर पूरे राज्य भर में 143 मध्यस्थ को बनाया गया है, जो कंज्यूमर न्यायालय में दाखिल केसों की मध्यस्थता करने के लिए अधिकृत हैं.

रांची: किसी भी विवाद को सुलझाने में मध्यस्थ की भूमिका अहम होती है. चाहे वो कानूनी प्रक्रिया हो या सामाजिक विवाद. इसकी महत्ता को ध्यान में रखकर न्यायिक व्यवस्था में तेजी से मध्यस्थता का प्रचलन बढ़ा है, जो कारगर साबित हो रहा है. उपभोक्ता संरक्षण के लिए बने कानूनी प्रावधान में भी इसे अपनाया गया है. जिसका लाभ कन्ज्यूमर को लंबी कानूनी प्रक्रिया से गुजरने के बजाय कम समय में राहत देने वाली होती है.

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झारखंड में राज्य उपभोक्ता आयोग से लेकर जिला स्थित कन्ज्यूमर न्यायालय में मध्यस्थ को रखा गया है. राज्य उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष बसंत कुमार गोस्वामी के अनुसार, राज्य उपभोक्ता आयोग में 10 और जिलों में करीब 143 मध्यस्थ रखे गए हैं, जिसमें अधिकांशतः वरीय अधिवक्ता हैं. जो जिला या राज्यस्तरीय विधिक सेवा प्राधिकार में मध्यस्थ की भूमिका में रहे हैं.

कन्ज्यूमर कोर्ट में मध्यस्था से जुड़े कुछ अहम बिंदू:

  1. मध्यस्थता के जरिए कन्ज्यूमर कोर्ट केसों का है 25% सफलता दर
  2. राज्य उपभोक्ता आयोग में 10 और सभी जिलों में हैं 143 मध्यस्थ
  3. मध्यस्थता सफल होने पर प्रति केस अधिवक्ताओं को मिलता है 5000 रुपया, असफल होने पर 2500 रुपया
  4. न्यायालय के आदेश पर केसों को मध्यस्थता के लिए होता ट्रांसफर
  5. झारखंड एकमात्र राज्य जहां मिलते हैं मध्यस्थों को प्रति केस पारिश्रमिक

मध्यस्थता के जरिए 25% सफलता दर: मध्यस्थता के जरिए झारखंड में केसों का सक्सेस रेसियो 25% है. इसके माध्यम से मध्यस्थ दोनों पक्षों को एक साथ आमने-सामने बिठाने का काम करता है और उसके बाद दोनों की राय जानने के बाद इस मामले में निर्णय लिया जाता है. इसमें अलग से कोई अधिवक्ता रखने की कंज्यूमर को कोई जरूरत नहीं है यानी कि बगैर कोई खर्च के मध्यस्थता के जरिए मामले सुलझ जाते हैं.

मामला सुलझ जाने पर अधिवक्ता को प्रति केस 5000 रुपया और यदि असफल होते हैं तो 2500 रुपया दिया जाता है. राज्य उपभोक्ता आयोग में ऐसे 10 मध्यस्थ हैं, जो कोर्ट के आदेश पर मामलों की मध्यस्थता करते हैं. इसी तरह जिला स्तर पर पूरे राज्य भर में 143 मध्यस्थ को बनाया गया है, जो कंज्यूमर न्यायालय में दाखिल केसों की मध्यस्थता करने के लिए अधिकृत हैं.

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