रांचीः झारखंड की राजधानी रांची से गुजरने वाले हाईवे हों या दूसरी सड़कें, जहां-तहां सड़क किनारे खड़े वाहन अक्सर मिल जाते हैं. दूर से ये नहीं पता चल पाता है कि वाहन चल रहा है कि रूका है. जब तक आगे वाले वाहन के करीब पीछे की गाड़ी पहुंचती है, तब तक देर हो जाती है और लोग बेवक्त मारे जाते हैं. राजधानी रांची के साथ-साथ प्रदेश के कई जिलों में पिछले कुछ महीनों में ऐसे हादसों में इजाफा हुआ है.
40 लोगों ने गंवाई जान
झारखंड में दिसंबर 2020 से लेकर 10 जनवरी 2021 के आंकड़ों के ही बात करें तो 40 लोगों से ज्यादा की मौत सड़क हादसे में हुई है. इनमें से सबसे ज्यादा हादसे खड़े वाहनों में पीछे से टक्कर मारने की वजह से हुई है. दिसंबर 2020 में पलामू में एक ही परिवार के पांच सदस्य, रांची में चार दोस्तों की मौत, सरायकेला में एक ही परिवार के 4 लोग ऐसे ही हादसों का शिकार हो चुके हैं. इसके अलावा कई बाइक सवार भी हाईवे पर खड़ी बड़ी वाहनों को पीछे से टक्कर मारने से मौत के आगोश में समा चुके हैं.
जानलेवा साबित होती सड़कें
झारखंड की राजधानी में आउटर रिंग रोड की बात हो या बेहतर होते एनएच की. इन्हें तीव्र गति से चलने योग्य बनाने का लाभ तो सभी को मिल रहा है. इससे जान का जोखिम भी बढ़ गया है. हाईवे पर चलने वाले माल भरे हुए ट्रक हो या अन्य कोई वाहन चालक की लापरवाही से दुर्घटना का कारण भी बन रहे हैं. टाटा-रांची हाईवे हो या रांची-पटना हाईवे, इन सड़कों के दोनों तरफ बड़ी संख्या में वाहन खड़े नजर आते हैं. यही हाल, रांची से पलामू, बोकरो और कोलकाता राजमार्ग का है. कार्रवाई ना होने से चौबीस घंटे सड़क के दोनों ओर ट्रक और भारी वाहनों का मेला लगा रहता है. सड़क किनारे चालक अपने वाहन अक्सर रात में बेतरतीब खड़ी कर देते हैं. जिससे आए दिन हादसे हो रहे हैं, जिनमें लोगों की जान भी बड़ी संख्या में जा रही है.
ढाबों के पास बेतरतीब खड़े हो रहे वाहन
पीछे से आने वाले तेज रफ्तार वाहन खड़ी वाहन में टकराने से कई बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं. लेकिन लापरवाह वाहन चालकों पर लगाम नहीं लग सकी. कहने को तो संबंधित थानों के सिपाहियों को रात और दिन में प्रत्येक चौराहों पर गश्त पर रहने के निर्देश हैं. लेकिन वह कभी कभार ही दिखाई देते हैं. ढाबों के पास नहीं होती चेकिंग दुर्घटनाएं अक्सर ढाबों के आसपास होती हैं. जब ट्रक चालक लापरवाही से वाहन खड़ा कर देते हैं. खड़े वाहनों में ना तो पार्किंग लाइट जलाई जाती है और ना ही रेडियम संकेत होते हैं, हादसा होने का कारण भी यही है. सबसे ज्यादा बड़े वाहन ढाबों पर खड़े नजर आते हैं. रात और दिन में यहां वाहन एक के पीछे एक खड़े रहते हैं. रात के समय तो आलम और भी भयंकर होता है, यहां से निकलने में भी डर बना रहता है. नियमित चेकिंग ना होने और चालान ना होने की वजह से यहां हादसे का डर बना रहता है.
रांची-जमशेदपुर हाईवे पर खड़े रहते हैं ट्रक
रांची से जमशेदपुर जाने के दौरान नामकुम से बुंडू के बीच चौबीस घंटे ट्रक खड़े रहने से ऐसा प्रतीत होता है कि मानो पार्किंग मुफ्त की सुविधा मिल गई हो. कई बार यहां ट्रक चालकों पर कार्रवाई भी की गई, लेकिन आज तक समस्या दूर नहीं हो सकी. नतीजा यह है कि यहां प्रतिदिन हादसे होते हैं, लेकिन कार्रवाई किसी पर भी नहीं होती. वाहन खड़े होने के साथ ही इस स्थान से ट्रकों में माल भी भरा जाता है. ट्रकों से निकलते लोहे का सरिया खतरनाक है, कई बार ट्रकों या अन्य लोडिंग वाहनों में उनकी क्षमता से अधिक माल भरा होता है. लोहे का सरिया, गार्डर जो लोडिंग की लंबाई में ना आते हुए पीछे निकलते हुए रहते हैं. इस तरह के वाहन भी हादसों का कारण बनते हैं. पीछे से आ रहे वाहन कभी भी इन सरियों या लोहे का गार्डर से टकरा सकते हैं. इसलिए हाइवे पुलिस, यातायात पुलिस व परिवहन विभाग को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए.
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कार्रवाई का भरोसा
इस मामले को लेकर राजधानी रांची के सीनियर एसपी सुरेंद्र झा बेहद गंभीर नजर आए. जब उन्हें यह जानकारी दी गई कि रांची टाटा हाईवे पर सबसे ज्यादा सड़कों पर वाहन लगते हैं तो उन्होंने हाईवे पेट्रोल को इस पर निगरानी रख सख्त कार्रवाई करने का आदेश भी दिया.
आखिर कौन है जिम्मेदार ?
सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि आखिर इन हादसों के लिए जिम्मेदार कौन है? मुख्य रूप से तो इन हादसों के लिए टोल टैक्स कंपनियां, एनएचएआई, आरटीओ और जिला प्रशासन सभी जिम्मेदार हैं. टोल टैक्स पर जिस टैक्स की वसूली की जाती है, उसमें पैसेंजर सेफ्टी टैक्स भी जुड़ा होता है. इनकी जिम्मेदारी होती है कि हाईवे पर लगातार गश्त करें और खड़ी वाहनों को हटवाएं. टोल टैक्स शुरू होने के पहले हाईवे पेट्रोलिंग और हर दस किलोमीटर पर एक क्रेन का इंतजाम करने की शर्त भी होती है. पेट्रोलिंग को दौरान वाहन में मौजूद कर्मचारी क्रेन में तैनात कर्मी को जानकारी देंगे और खराब वाहन को उचित स्थान पर पहुंचाया जाएगा. लेकिन यह सिर्फ कागजों पर ही सिमटे हुए हैं.
सर्विस लाइन का नहीं होना भी हादसों की वजह
झारखंड में सड़क सुरक्षा को लेकर आम लोगों को जागरूक करने वाली एकमात्र संस्था राइज अप के फाउंडर ऋषभ के अनुसार किसी भी हाईवे पर लंबी दूरी तय करने वाले वाहन सबसे ज्यादा चलते हैं. ऐसे में उनका कहीं ना कहीं ब्रेकडाउन होना आम बात है. ऐसी समस्या से बचने के लिए हाईवे पर एक सर्विस लेन बनाने का नियम होता है. हैरानी की बात तो यह है कि झारखंड के अधिकांश हाईवे पर सर्विस लेन का निर्माण ही नहीं किया गया है. इस तरह के हादसों में 279 और 304 बी के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता है. इन मामलों में थाना से ही खड़े-खड़े जमानत हो जाती है. इस वजह से हादसों को अंजाम देने वालों को डर नहीं रहता. वहीं रसूख और दबंगई की वजह से लोग टोल टैक्स प्रबंधन को पार्टी नहीं बनाते हैं. हालांकि हाईवे पर वाहन खड़ी करना लापरवाही की श्रेणी में आता है. किसी भी हाईवे पर 20 मिनट से अधिक वाहन खड़ा करना गैरकानूनी होता है लेकिन यह सिर्फ नियम ही है.