रांची: वर्षों पुरानी सरना धर्म कोड की मांग को लेकर आदिवासी समाज का आंदोलन दिनों दिन बढ़ते जा रहा है. सोमवार को भी बड़ी संख्या में सरना समाज को लोगों ने सड़क पर उतरकर धार्मिक पहचान की मांग की. झारखंड विधानसभा के मॉनसून सत्र के दौरान भी राज्य के आदिवासी समाज ने सड़क पर उतरकर अपनी मांग का समर्थन किया था, लेकिन सदन में सरना धर्म कोड पर कोई चर्चा तक नहीं की गई. यही वजह है कि आदिवासी समाज का आक्रोश दिनों दिन बढ़ते जा रहा है.
आदिवासी सामाजिक धार्मिक संगठन लगातार सरना धर्म कोड को लेकर चरणबद्ध आंदोलन कर रहे हैं, जो एक बार फिर सड़कों पर देखने को मिली है. विभिन्न इलाकों से बड़ी संख्या में आदिवासी समाज के लोग अपने हाथों में सरना कोड की तख्ती लिए मोराबादी मैदान पहुंचे, जहां कोड नहीं तो वोट नहीं नारों से पूरा इलाका गूंज उठा. समाज के लोगों ने सरकार से मांग की है की विशेष सत्र बुलाकर सदन से प्रस्ताव पास कर केंद्र को भेजा जाए, ताकि 2021 के जनगणना प्रपत्र में सरना धर्म कोड कॉलम अंकित किया जा सके.
इसे भी पढे़ं:- झारखंड चैंबर ऑफ कॉमर्स ने सीएम को लिखा पत्र, समारोह स्थल के क्षेत्रफल के आधार पर अतिथि संख्या तय करने की मांग
आजाद भारत में सभी धर्मावलंबी को अपना धार्मिक पहचान मिला हुआ है, दुर्भाग्य की बात है कि आदिकाल से सृष्टि में रहने वाले इस समाज को आज तक धार्मिक पहचान नहीं मिली है, जिसके कारण इनके धार्मिक पहचान पर दिनों दिन खतरा मंडरा रहा है. बड़े पैमाने पर आदिवासी समाज का धर्मांतरण हो रहा है. वही इन्हें अलग-अलग धर्मों से जोड़कर देखा जाता है, जिसकी वजह से इनकी जनसंख्या बढ़ती चली जा रही है. इसलिए समाज के लोग अपनी धार्मिक अस्तित्व को बचाने के लिए निरंतर संघर्ष कर रहे हैं. जब तक मांगे पूरी नहीं हो जाती है तब तक अपने आंदोलन को थमने नहीं देना चाहते हैं. आदिकाल से ही आदिवासी सरना समाज के लोग प्रकृति की पूजा करते आ रहे हैं. इनके धार्मिक अनुष्ठान और आस्था को ही सरना धर्म कहा जाता है जो इनके पर्व त्योहार और परंपरा में देखने को मिलती है, बावजूद इसके आज तक इन्हें अपना धार्मिक पहचान नहीं मिला है.