रांची: आरयू का जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग नए रूप में बनकर तैयार है. अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस इस विभाग में एक ही छत के नीचे 9 क्षेत्रीय और जनजातीय भाषाओं की पढ़ाई अब होगी. वहीं शिक्षकों की कमी को देखते हुए जेपीएससी को इसे लेकर रिमाइंडर भी भेजा गया है. जानकारी के मुताबिक इस नए भवन का उद्घाटन राज्यपाल रमेश बैस 18 दिसंबर को करेंगे.
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रांची विश्वविद्यालय का सबसे पुराने विभागों में से एक विभाग जनजातीय और क्षेत्रीय भाषा विभाग भी है. इस विभाग की स्थापना 1980 में स्वर्गीय रामदयाल मुंडा की अगुवाई में हुई थी. इसी विभाग के बीचो-बीच आदिवासी संस्कृति को संजोने के लिए एक आखड़ा का भी निर्माण हुआ है. जर्जर भवन को तोड़कर नए रूप में भवन बनकर तैयार हो गया है. आदिवासी कलाकृतियों से इस भवन के दीवारों को बेहतरीन तरीके से सजाया गया है. राज्य के विभिन्न जिलों के विद्यार्थी क्षेत्रीय और जनजातीय भाषा को लेकर यहां रिसर्च भी करते हैं. एक लंबे अरसे से इस विभाग के कायाकल्प को लेकर मांग उठ रही थी.
जनजातीय भाषाओं की पढ़ाई
एक छत के नीचे 9 क्षेत्रीय और जनजातीय भाषाओं की पढ़ाई और शिक्षकों के साथ साथ अलग-अलग फैकल्टी के लिए बैठने की व्यवस्था, लाइब्रेरी की व्यवस्था, कैंटीन की व्यवस्था के साथ ही कई मूलभूत सुविधाओं की मांग उठाई गई थी. हालांकि विद्यार्थियों की इस मांग को अब विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से पूरा कर दिया गया है. यह विभाग अब नए तरीके से सुसज्जित कर दिया गया है. जहां ऑडिटोरियम के साथ-साथ तमाम मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध हैं.
राज्यपाल करेंगे नए भवन का उद्घाटन
जानकारी के मुताबिक इस नए भवन का उद्घाटन राज्यपाल डॉ रमेश बैस 18 दिसंबर को करेंगे. इस भवन में कॉमन रूम और कमरों को भी व्यवस्थित तरीके से बनवाया गया है.
9 भाषाओं की पढ़ाई और रिसर्च
झारखंड के संथाली, मुंडारी, नागपुरी, खोरठा, पंचपरगानिया, कुरमाली, बांग्ला, खड़िया, कुडुख जैसे कुल 9 भाषाओं की पढ़ाई पर रिसर्च भी होता है. समय-समय पर देश-विदेश के रिसर्चर यहां पहुंचते हैं. क्षेत्रीय और जनजातीय भाषा विभाग को व्यवस्थित तरीके से संचालित करने से अब शोधार्थियों की संख्या भी बढ़ेगी. अन्य देशों के शोध करने वाले विशेषज्ञ भी यहां पहुंचेंगे. जिससे विद्यार्थियों को काफी लाभ मिलेगा.