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रांची सिविल कोर्ट के आदेश पर परिवहन विभाग कार्यालय की संपत्ति अटैच, जानिए क्या है कारण - परिवहन विभाग के संयुक्त सचिव प्रदीप कुमार

Transport Department office Property attached. रांची सिविल कोर्ट के आदेश पर झारखंड परिवहन विभाग कार्यालय की संपत्ति को अटैच किया गया है. पूरा मामला बॉर्डर एरिया में इंटीग्रेटेड चेकपोस्ट बनाने से जुड़ा है. सरकार ने चेकपोस्ट बनाने के लिए टेंडर निकाला था और काम भी कंपनी को सौंप दिया था. कंपनी ने काम करना शुरू तो कर दिया, लेकिन सरकार ने जमीन उपलब्ध नहीं करायी. इस कारण कंपनी को काफी नुकसान हुआ और कंपनी ने कोर्ट में केस कर दिया.

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Transport Department Office Property Attached
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Dec 5, 2023, 10:49 PM IST

रांची: झारखंड सरकार की परिवहन विभाग के कार्यालय की संपत्ति को सिविल कोर्ट के आदेशानुसार मंगलवार को अटैच किया गया. इस संबंध में वकील वैभव गहलोत ने बताया कि यह मामला वर्ष 2004 का है. राज्य सरकार की तरफ से बॉर्डर एरिया में इंटीग्रेटेड चेकपोस्ट बनाने के लिए टेंडर निकाला गया था. टेंडर की नियमावली के अनुसार कुल नौ चेकपोस्ट बनाए जाने थे और यह चेकपोस्ट बनाने की जिम्मेदारी M/S K S SOFTNET SOLUTION PVT LIMITED कंपनी को दी गई थी.

सरकार ने कंपनी को दिया टेंडर, पर नहीं उपलब्ध करायी जमीनः टेंडर में राज्य सरकार की तरफ से यह कहा गया था कि राज्य के नौ जगहों पर इंटीग्रेटेड चेकपोस्ट प्वाइंट बनाने हैं. इसको लेकर जिस कंपनी को टेंडर मिला था उस कंपनी ने काम शुरू कर दिया, लेकिन राज्य सरकार की लापरवाही की वजह से मात्र पांच प्वाइंट्स पर चेकपोस्ट बनाने के लिए ही कंपनी को जमीन मिल पाई. जिस वजह से कंपनी तय किए गए नौ जगहों पर अपना काम पूरा नहीं कर पायी, लेकिन नौ जगहों पर चेकपोस्ट प्वाइंट्स बनाने के लिए सारी तैयारी और सामान की खरीदारी कर ली गई थी, लेकिन राज्य सरकार की तरफ से जब जगह मुहैया नहीं कराया गया और विभिन्न विभागों से एनओसी नहीं मिल पाया तो चेकपोस्ट बनाने के लिए खरीदी गई सामग्री बर्बाद हो गई. इससे कंपनी को आर्थिक क्षति उठानी पड़ी.

2013 में सरकार ने ड्रॉप किया प्रपोजल, कंपनी को क्षतिपूर्ति के रूप में 11 करोड़ देने पर बनी थी सहमतिः साथ ही वर्ष 2013 में राज्य के नौ जगहों पर बनने वाली इंटीग्रेटेड चेकपोस्ट प्वाइंट्स के प्रपोजल को सरकार ने ड्रॉप कर दिया. प्रोजेक्ट ड्रॉप होने के बाद मेसर्स केएस सॉफ्टनेट सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने राज्य सरकार से अपने लगाए गए पैसे की मांग की. जिस पर राज्य सरकार ने वर्ष 2017 में यह माना कि 11 करोड़ रुपए राज्य सरकार M/S K S SOFTNET SOLUTION PVT LIMITED कंपनी को वापस करेगी, लेकिन पांच साल बीत जाने के बावजूद भी राज्य सरकार की तरफ से M/S K S SOFTNET SOLUTION PVT LIMITED कंपनी को पैसा नहीं लौटाया गया.

जब कंपनी को नहीं लौटाया गया पैसा तो कंपनी ने कोर्ट की ली शरणः मेसर्स केएस सॉफ्टनेट सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरफ से केस लड़ रहे वकील वैभव गहलोत ने बताया कि जब परिवहन विभाग और राज्य सरकार की तरफ से पैसे नहीं लौटाए जा रहे थे तो उन्होंने कोर्ट की शरण ली. इस पर सिविल कोर्ट स्थित कमर्शियल कोर्ट के न्यायाधीश एमपी झा ने भी उनकी दलील को सुनने के बाद परिवहन विभाग के कार्यालय में पड़े सामानों को अटैच करने के लिए जिला प्रशासन को आदेश दिया. केस लड़ रहे वकील वैभव गहलोत ने बताया कि अपने पैसे को वापस लेने के लिए जिला प्रशासन की मदद से गठित की गई टीम के साथ सभी सामानों को अटैच कर लिया गया है. प्रक्रिया पूरी करने के बाद जितने भी सामान परिवहन विभाग के अटैच किए जाएंगे, उनकी कीमत का आकलन किया जाएगा और फिर उन सामानों को बेचने की प्रक्रिया पूरी की जाएगी. उससे आए पैसे से उनके क्लाइंट नुकसान की भरपाई करेंगे.

कोर्ट के आदेश पर अटैच किए गए परिवहन कार्यालय के सामानः वहीं कोर्ट के आदेश के बाद हो रही कार्रवाई को लेकर ईटीवी भारत ने जब परिवहन विभाग के संयुक्त सचिव प्रदीप कुमार से बात करने की कोशिश की तो वह पूरे मामले पर कुछ भी कहने से बचते नजर आए. वहीं परिवहन विभाग के सचिन कृपानंद झा ने भी कुछ भी कहने से इनकार कर दिया. अब ऐसे में यह सवाल उठता है कि यदि कोर्ट के आदेश के बाद परिवहन विभाग के कार्यालय और उसके संपत्ति को अटैच किया है तो कार्यालय का काम कितना प्रभावित होगा.

रांची: झारखंड सरकार की परिवहन विभाग के कार्यालय की संपत्ति को सिविल कोर्ट के आदेशानुसार मंगलवार को अटैच किया गया. इस संबंध में वकील वैभव गहलोत ने बताया कि यह मामला वर्ष 2004 का है. राज्य सरकार की तरफ से बॉर्डर एरिया में इंटीग्रेटेड चेकपोस्ट बनाने के लिए टेंडर निकाला गया था. टेंडर की नियमावली के अनुसार कुल नौ चेकपोस्ट बनाए जाने थे और यह चेकपोस्ट बनाने की जिम्मेदारी M/S K S SOFTNET SOLUTION PVT LIMITED कंपनी को दी गई थी.

सरकार ने कंपनी को दिया टेंडर, पर नहीं उपलब्ध करायी जमीनः टेंडर में राज्य सरकार की तरफ से यह कहा गया था कि राज्य के नौ जगहों पर इंटीग्रेटेड चेकपोस्ट प्वाइंट बनाने हैं. इसको लेकर जिस कंपनी को टेंडर मिला था उस कंपनी ने काम शुरू कर दिया, लेकिन राज्य सरकार की लापरवाही की वजह से मात्र पांच प्वाइंट्स पर चेकपोस्ट बनाने के लिए ही कंपनी को जमीन मिल पाई. जिस वजह से कंपनी तय किए गए नौ जगहों पर अपना काम पूरा नहीं कर पायी, लेकिन नौ जगहों पर चेकपोस्ट प्वाइंट्स बनाने के लिए सारी तैयारी और सामान की खरीदारी कर ली गई थी, लेकिन राज्य सरकार की तरफ से जब जगह मुहैया नहीं कराया गया और विभिन्न विभागों से एनओसी नहीं मिल पाया तो चेकपोस्ट बनाने के लिए खरीदी गई सामग्री बर्बाद हो गई. इससे कंपनी को आर्थिक क्षति उठानी पड़ी.

2013 में सरकार ने ड्रॉप किया प्रपोजल, कंपनी को क्षतिपूर्ति के रूप में 11 करोड़ देने पर बनी थी सहमतिः साथ ही वर्ष 2013 में राज्य के नौ जगहों पर बनने वाली इंटीग्रेटेड चेकपोस्ट प्वाइंट्स के प्रपोजल को सरकार ने ड्रॉप कर दिया. प्रोजेक्ट ड्रॉप होने के बाद मेसर्स केएस सॉफ्टनेट सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने राज्य सरकार से अपने लगाए गए पैसे की मांग की. जिस पर राज्य सरकार ने वर्ष 2017 में यह माना कि 11 करोड़ रुपए राज्य सरकार M/S K S SOFTNET SOLUTION PVT LIMITED कंपनी को वापस करेगी, लेकिन पांच साल बीत जाने के बावजूद भी राज्य सरकार की तरफ से M/S K S SOFTNET SOLUTION PVT LIMITED कंपनी को पैसा नहीं लौटाया गया.

जब कंपनी को नहीं लौटाया गया पैसा तो कंपनी ने कोर्ट की ली शरणः मेसर्स केएस सॉफ्टनेट सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरफ से केस लड़ रहे वकील वैभव गहलोत ने बताया कि जब परिवहन विभाग और राज्य सरकार की तरफ से पैसे नहीं लौटाए जा रहे थे तो उन्होंने कोर्ट की शरण ली. इस पर सिविल कोर्ट स्थित कमर्शियल कोर्ट के न्यायाधीश एमपी झा ने भी उनकी दलील को सुनने के बाद परिवहन विभाग के कार्यालय में पड़े सामानों को अटैच करने के लिए जिला प्रशासन को आदेश दिया. केस लड़ रहे वकील वैभव गहलोत ने बताया कि अपने पैसे को वापस लेने के लिए जिला प्रशासन की मदद से गठित की गई टीम के साथ सभी सामानों को अटैच कर लिया गया है. प्रक्रिया पूरी करने के बाद जितने भी सामान परिवहन विभाग के अटैच किए जाएंगे, उनकी कीमत का आकलन किया जाएगा और फिर उन सामानों को बेचने की प्रक्रिया पूरी की जाएगी. उससे आए पैसे से उनके क्लाइंट नुकसान की भरपाई करेंगे.

कोर्ट के आदेश पर अटैच किए गए परिवहन कार्यालय के सामानः वहीं कोर्ट के आदेश के बाद हो रही कार्रवाई को लेकर ईटीवी भारत ने जब परिवहन विभाग के संयुक्त सचिव प्रदीप कुमार से बात करने की कोशिश की तो वह पूरे मामले पर कुछ भी कहने से बचते नजर आए. वहीं परिवहन विभाग के सचिन कृपानंद झा ने भी कुछ भी कहने से इनकार कर दिया. अब ऐसे में यह सवाल उठता है कि यदि कोर्ट के आदेश के बाद परिवहन विभाग के कार्यालय और उसके संपत्ति को अटैच किया है तो कार्यालय का काम कितना प्रभावित होगा.

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