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नीली क्रांति की कक्षा! पांच जिलों के 166 ग्रामीण सीख रहे मछली पालन की आधुनिक तकनीक - Ranchi Fisheries Training Center

नीली क्रांति यानी मछली पालन में झारखंड को निर्यातक राज्य बनाने के सपने को साकार करने की दिशा में सार्थक पहल की जा रही है. इसके लिए पांच जिलों के 166 ग्रामीण मछली पालन की आधुनिक तकनीक सीखने के लिए रांची मत्स्य प्रशिक्षण केंद्र में ट्रेनिंग ले रहे (fish farming techniques training in Ranchi) हैं.

Training for modern techniques of fish farming in Jharkhand
रांची
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Published : Nov 21, 2022, 11:24 AM IST

रांचीः अलग राज्य बनने के 22 वर्ष में झारखंड में मत्स्य उत्पादन (fish farming in Jharkhand) काफी बढ़ा है. वर्ष 2001-02 में राज्य में जहां सिर्फ 14 हजार मीट्रिक टन मछली का उत्पादन होता था तो आज यह 02 लाख 20 हजार टन के करीब पहुंच गया है, यही नीली क्रांति है. लेकिन अभी भी प्रयास कम नहीं हुए हैं कि इस नीली क्रांति की छाप को और गहरा किया जा रहा है.

इसे भी पढ़ें- दुमका में रोजगार सृजन की दिशा में सार्थक पहल, बंद खदान के तालाब में मछली पालन किया शुरू

रांची मत्स्य प्रशिक्षण केंद्र में इन दिनों नीली क्रांति की विशेष कक्षाएं लग रही हैं. जहां एक साथ पांच जिलों के 166 महिला-पुरुष जिसमें से ज्यादा ऐसी जो शायद पहली बार रांची आयी हैं. ये सभी आधुनिक मत्स्य पालन की वैज्ञानिक तकनीक सीख रहीं (fish farming techniques training in Ranchi) हैं ताकि यहां से मिले ज्ञान को वह अपने घर बाहर के जलाशयों में इस्तेमाल कर ज्यादा से ज्यादा मछली का उत्पादन कर सकें.

देखें पूरी खबर

रांची के धुर्वा स्थित मत्स्य प्रशिक्षण केंद्र में 17 से 21 नवंबर तक पांच दिन का निशुल्क आवासीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. जिसमें भाग लेने के लिए बोकारो से 71, गिरिडीह से 30, जामताड़ा से 27, लातेहार से 30 और पाकुड़ से 08 महिला पुरुष रांची में हैं. इनमें से कई ऐसे हैं जिनकी गोद में बच्चा है लेकिन मत्स्य पालन के क्षेत्र में सरकार द्वारा दी जा रही विशेष सुविधा से वह वंचित ना रह जाएं इसलिए ठंड के मौसम में भी वह क्लास करने के लिए अपने बच्चे के साथ रांची आयी हैं.


मछली पालन से बेहतर जीवनः मत्स्य प्रशिक्षण केंद्र की प्रशिक्षक सायबा आफरीन कहती हैं कि पांच दिनों के इस ट्रेनिंग में इन लोगों को मत्स्यपालन की अत्याधुनिक तकनीक, मछलियों में होने वाली सामान्य बीमारियां और उसके प्रबंधन से लेकर मछली के बीज उत्पादन तक की तकनीक बताई जा रही है. जिससे ये लोग प्रशिक्षण लेकर वापस जाएं तो ना सिर्फ खुद आर्थिक रूप से स्वाबलंबी बनें बल्कि राज्य के विकास में भी अपनी भागीदारी निभाएं. रांची में प्रशिक्षण ले रहीं बोकारो की ज्योति देवी हो या लातेहार केआर के महतो, सभी का सपना एक ही है कि मछली पालन कर वह पैसे कमाएं. जिससे वो अपने और पूरे परिवार के सदस्यों को एक बेहतर जिंदगी दे सकें.

झारखंड सरकार और भारत सरकार ने मत्स्य पालकों के लिए कई योजनाएं चलाई हैं तो बड़ी सब्सिडी का भी प्रावधान किया गया है. ऐसे में जिस तरह राज्य के दूरदराज और ग्रामीण इलाकों के लोगों में मत्स्य पालन से स्वाबलंबी बनने की ललक जगी है. इससे यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जल्द ही झारखंड मछली का निर्यातक राज्यों की सूची में शुमार होगा और राज्यवासियों के रोजगार और आय बढ़ाने में भी यह मददगार साबित होगा.

रांचीः अलग राज्य बनने के 22 वर्ष में झारखंड में मत्स्य उत्पादन (fish farming in Jharkhand) काफी बढ़ा है. वर्ष 2001-02 में राज्य में जहां सिर्फ 14 हजार मीट्रिक टन मछली का उत्पादन होता था तो आज यह 02 लाख 20 हजार टन के करीब पहुंच गया है, यही नीली क्रांति है. लेकिन अभी भी प्रयास कम नहीं हुए हैं कि इस नीली क्रांति की छाप को और गहरा किया जा रहा है.

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रांची मत्स्य प्रशिक्षण केंद्र में इन दिनों नीली क्रांति की विशेष कक्षाएं लग रही हैं. जहां एक साथ पांच जिलों के 166 महिला-पुरुष जिसमें से ज्यादा ऐसी जो शायद पहली बार रांची आयी हैं. ये सभी आधुनिक मत्स्य पालन की वैज्ञानिक तकनीक सीख रहीं (fish farming techniques training in Ranchi) हैं ताकि यहां से मिले ज्ञान को वह अपने घर बाहर के जलाशयों में इस्तेमाल कर ज्यादा से ज्यादा मछली का उत्पादन कर सकें.

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रांची के धुर्वा स्थित मत्स्य प्रशिक्षण केंद्र में 17 से 21 नवंबर तक पांच दिन का निशुल्क आवासीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. जिसमें भाग लेने के लिए बोकारो से 71, गिरिडीह से 30, जामताड़ा से 27, लातेहार से 30 और पाकुड़ से 08 महिला पुरुष रांची में हैं. इनमें से कई ऐसे हैं जिनकी गोद में बच्चा है लेकिन मत्स्य पालन के क्षेत्र में सरकार द्वारा दी जा रही विशेष सुविधा से वह वंचित ना रह जाएं इसलिए ठंड के मौसम में भी वह क्लास करने के लिए अपने बच्चे के साथ रांची आयी हैं.


मछली पालन से बेहतर जीवनः मत्स्य प्रशिक्षण केंद्र की प्रशिक्षक सायबा आफरीन कहती हैं कि पांच दिनों के इस ट्रेनिंग में इन लोगों को मत्स्यपालन की अत्याधुनिक तकनीक, मछलियों में होने वाली सामान्य बीमारियां और उसके प्रबंधन से लेकर मछली के बीज उत्पादन तक की तकनीक बताई जा रही है. जिससे ये लोग प्रशिक्षण लेकर वापस जाएं तो ना सिर्फ खुद आर्थिक रूप से स्वाबलंबी बनें बल्कि राज्य के विकास में भी अपनी भागीदारी निभाएं. रांची में प्रशिक्षण ले रहीं बोकारो की ज्योति देवी हो या लातेहार केआर के महतो, सभी का सपना एक ही है कि मछली पालन कर वह पैसे कमाएं. जिससे वो अपने और पूरे परिवार के सदस्यों को एक बेहतर जिंदगी दे सकें.

झारखंड सरकार और भारत सरकार ने मत्स्य पालकों के लिए कई योजनाएं चलाई हैं तो बड़ी सब्सिडी का भी प्रावधान किया गया है. ऐसे में जिस तरह राज्य के दूरदराज और ग्रामीण इलाकों के लोगों में मत्स्य पालन से स्वाबलंबी बनने की ललक जगी है. इससे यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जल्द ही झारखंड मछली का निर्यातक राज्यों की सूची में शुमार होगा और राज्यवासियों के रोजगार और आय बढ़ाने में भी यह मददगार साबित होगा.

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