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सहायक पुलिसकर्मियों के नक्सलियों का सॉफ्ट टारगेट बनने का खतरा, नौकरी छूटने पर बना सकते हैं साथ आने का दबाव

झारखंड के सहायक पुलिसकर्मियों का अनुबंध कुछ महीने पहले खत्म हो चुका है और ये रांची के मोरहाबादी मैदान में वादे के अनुसार स्थायी नौकरी दिलाने की मांग को लेकर आवाज बुलंद कर रहे हैं. इसी के साथ सुरक्षा विशेषज्ञों को इनके नक्सलियों का सॉफ्ट टारगेट बनने की चिंता सताने लगी है.

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Published : Sep 12, 2020, 2:13 PM IST

protest of assistant policemen
सहायक पुलिसकर्मियों का आंदोलन

रांचीः झारखंड के अत्यंत नक्सल प्रभावित जिलों से आने वाले 2500 सहायक पुलिसकर्मियों के नौकरी जाने के बाद नक्सलियों का सॉफ्ट टारगेट बनने का खतरा मंडराने लगा है. मोरहाबादी मैदान में आंदोलन कर रहे सहायक पुलिसकर्मी भी इसको लेकर चिंतित हैं कि उन्होंने नक्सलियों के खिलाफ अभियान में काम किया है और अगर ये पुलिस फोर्स में न रहे तो नक्सली इनको और इनके परिवार को निशाना बना सकते हैं और अपने संगठन में शामिल होने का दबाव डाल सकते हैं.

देखें पूर खबर


भविष्य को लेकर चिंता
झारखंड में पिछले 3 सालों से नक्सल अभियान से लेकर ट्रैफिक व्यवस्था संभालने की ड्यूटी कर रहे 2500 सहायक पुलिसकर्मी इन दिनों आंदोलनरत हैं. झारखंड के अत्यंत नक्सल प्रभावित जिलों से पुलिस में शामिल किए गए यै सहायक पुलिस वाले पिछले 3 सालों से मात्र दस हजार की मानदेय लेकर ड्यूटी पर पसीना बहा रहे थे. कोरोना संक्रमण के काल में भी उन्होंने पूरी निष्ठा और जिम्मेदारी के साथ अपनी ड्यूटी निभाई लेकिन अब उनका अनुबंध समाप्त हो चुका है और इन्हें अपने भविष्य की चिंता सता रही है. इससे पहले सरकार ने यह वादा किया था कि 3 साल के बाद उन्हें पुलिस में बहाल कर लिया जाएगा, लेकिन अब सरकार अपने वादे से मुकर गई है.

ये भी पढ़ें-रांचीः मोरहाबादी मैदान में जुटे दो हजार सहायक पुलिसकर्मी, हक के लिए किया आर-पार का ऐलान

भविष्य में यह खतरातीन साल पहले झारखंड सरकार ने नक्सल प्रभावित जिलों में रहने वाले युवाओं को सहायक पुलिसकर्मी की नौकरी अनुबंध के आधार पर दी थी, ताकि नक्सलियों की तरफ उनका जुड़ाव न हो और वे मुख्यधारा में जुड़कर कानून व्यवस्था संभालने का काम करें. इधर उनका अनुबंध खत्म होने के बाद आगे की कार्रवाई सरकार की तरफ से नहीं की गई. नतीजतन सहायक पुलिस वालों को यह चिंता सता रही है कि अगर वे घर लौटते हैं तो नक्सली उन्हें अपने संगठन में शामिल होने का दबाव बना सकते हैं. एक सहायक पुलिसकर्मी अंकित ने बताया कि ऐसे में अगर वह नक्सलियों का साथ नहीं देते हैं तब उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. दरअसल चिंता यह भी है कि सहायक पुलिस वाले पूरी तरह से ट्रेंड हैं. अब वे पुलिस विभाग की बारीकियों के बारे में भी बेहतर जाने लगे हैं. ऐसे में अगर उन्हें जबरदस्ती या फिर जान से मारने की धमकी देकर नक्सली संगठन अपने साथ ले जाते हैं तो यह सरकार के लिए एक बड़ा खतरा बन सकते हैं.
protest of assistant policemen
सहायक पुलिसकर्मियों का आंदोलन
यह था वादाजब सहायक पुलिस की बहाली निकली थी तो उस समय यह तय हुआ था कि नक्सल प्रभावित इलाके से जो युवा पुलिस में भर्ती हो रहे हैं. उन्हें उनके थाना क्षेत्र में ही ड्यूटी कराई जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. उन्हें राजधानी रांची सहित दूसरी जगह पर ट्रैफिक और कानून व्यवस्था की स्थिति को संभालने में भी लगाया गया. वह भी मात्र 10 हजार के मानदेय पर.झारखंड पुलिस मेंस एसोसिएशन के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह ने कहा कि सहायक पुलिस कर्मियों के आंदोलन में पुलिस मेंस एसोसिएशन साथ है. उन्होंने यह चिंता भी जताई है कि अगर वह घर लौटते हैं तो निश्चित रूप से नक्सली उन्हें मोटिवेट कर अपने संगठन में शामिल करने की कोशिश कर सकते हैं.वरीय अधिकारी कर रहे प्रयासरांची रूरल के एसपी नौसाद आलम का कहना है कि झारखंड पुलिस के आला अधिकारी यह प्रयास कर रहे हैं कि सहायक पुलिस और सरकार के बीच की रस्साकशी खत्म हो जाय और उसका कोई समाधान निकल जाए.

रांचीः झारखंड के अत्यंत नक्सल प्रभावित जिलों से आने वाले 2500 सहायक पुलिसकर्मियों के नौकरी जाने के बाद नक्सलियों का सॉफ्ट टारगेट बनने का खतरा मंडराने लगा है. मोरहाबादी मैदान में आंदोलन कर रहे सहायक पुलिसकर्मी भी इसको लेकर चिंतित हैं कि उन्होंने नक्सलियों के खिलाफ अभियान में काम किया है और अगर ये पुलिस फोर्स में न रहे तो नक्सली इनको और इनके परिवार को निशाना बना सकते हैं और अपने संगठन में शामिल होने का दबाव डाल सकते हैं.

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भविष्य को लेकर चिंता
झारखंड में पिछले 3 सालों से नक्सल अभियान से लेकर ट्रैफिक व्यवस्था संभालने की ड्यूटी कर रहे 2500 सहायक पुलिसकर्मी इन दिनों आंदोलनरत हैं. झारखंड के अत्यंत नक्सल प्रभावित जिलों से पुलिस में शामिल किए गए यै सहायक पुलिस वाले पिछले 3 सालों से मात्र दस हजार की मानदेय लेकर ड्यूटी पर पसीना बहा रहे थे. कोरोना संक्रमण के काल में भी उन्होंने पूरी निष्ठा और जिम्मेदारी के साथ अपनी ड्यूटी निभाई लेकिन अब उनका अनुबंध समाप्त हो चुका है और इन्हें अपने भविष्य की चिंता सता रही है. इससे पहले सरकार ने यह वादा किया था कि 3 साल के बाद उन्हें पुलिस में बहाल कर लिया जाएगा, लेकिन अब सरकार अपने वादे से मुकर गई है.

ये भी पढ़ें-रांचीः मोरहाबादी मैदान में जुटे दो हजार सहायक पुलिसकर्मी, हक के लिए किया आर-पार का ऐलान

भविष्य में यह खतरातीन साल पहले झारखंड सरकार ने नक्सल प्रभावित जिलों में रहने वाले युवाओं को सहायक पुलिसकर्मी की नौकरी अनुबंध के आधार पर दी थी, ताकि नक्सलियों की तरफ उनका जुड़ाव न हो और वे मुख्यधारा में जुड़कर कानून व्यवस्था संभालने का काम करें. इधर उनका अनुबंध खत्म होने के बाद आगे की कार्रवाई सरकार की तरफ से नहीं की गई. नतीजतन सहायक पुलिस वालों को यह चिंता सता रही है कि अगर वे घर लौटते हैं तो नक्सली उन्हें अपने संगठन में शामिल होने का दबाव बना सकते हैं. एक सहायक पुलिसकर्मी अंकित ने बताया कि ऐसे में अगर वह नक्सलियों का साथ नहीं देते हैं तब उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. दरअसल चिंता यह भी है कि सहायक पुलिस वाले पूरी तरह से ट्रेंड हैं. अब वे पुलिस विभाग की बारीकियों के बारे में भी बेहतर जाने लगे हैं. ऐसे में अगर उन्हें जबरदस्ती या फिर जान से मारने की धमकी देकर नक्सली संगठन अपने साथ ले जाते हैं तो यह सरकार के लिए एक बड़ा खतरा बन सकते हैं.
protest of assistant policemen
सहायक पुलिसकर्मियों का आंदोलन
यह था वादाजब सहायक पुलिस की बहाली निकली थी तो उस समय यह तय हुआ था कि नक्सल प्रभावित इलाके से जो युवा पुलिस में भर्ती हो रहे हैं. उन्हें उनके थाना क्षेत्र में ही ड्यूटी कराई जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. उन्हें राजधानी रांची सहित दूसरी जगह पर ट्रैफिक और कानून व्यवस्था की स्थिति को संभालने में भी लगाया गया. वह भी मात्र 10 हजार के मानदेय पर.झारखंड पुलिस मेंस एसोसिएशन के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह ने कहा कि सहायक पुलिस कर्मियों के आंदोलन में पुलिस मेंस एसोसिएशन साथ है. उन्होंने यह चिंता भी जताई है कि अगर वह घर लौटते हैं तो निश्चित रूप से नक्सली उन्हें मोटिवेट कर अपने संगठन में शामिल करने की कोशिश कर सकते हैं.वरीय अधिकारी कर रहे प्रयासरांची रूरल के एसपी नौसाद आलम का कहना है कि झारखंड पुलिस के आला अधिकारी यह प्रयास कर रहे हैं कि सहायक पुलिस और सरकार के बीच की रस्साकशी खत्म हो जाय और उसका कोई समाधान निकल जाए.

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