रांचीः झारखंड के अत्यंत नक्सल प्रभावित जिलों से आने वाले 2500 सहायक पुलिसकर्मियों के नौकरी जाने के बाद नक्सलियों का सॉफ्ट टारगेट बनने का खतरा मंडराने लगा है. मोरहाबादी मैदान में आंदोलन कर रहे सहायक पुलिसकर्मी भी इसको लेकर चिंतित हैं कि उन्होंने नक्सलियों के खिलाफ अभियान में काम किया है और अगर ये पुलिस फोर्स में न रहे तो नक्सली इनको और इनके परिवार को निशाना बना सकते हैं और अपने संगठन में शामिल होने का दबाव डाल सकते हैं.
भविष्य को लेकर चिंता
झारखंड में पिछले 3 सालों से नक्सल अभियान से लेकर ट्रैफिक व्यवस्था संभालने की ड्यूटी कर रहे 2500 सहायक पुलिसकर्मी इन दिनों आंदोलनरत हैं. झारखंड के अत्यंत नक्सल प्रभावित जिलों से पुलिस में शामिल किए गए यै सहायक पुलिस वाले पिछले 3 सालों से मात्र दस हजार की मानदेय लेकर ड्यूटी पर पसीना बहा रहे थे. कोरोना संक्रमण के काल में भी उन्होंने पूरी निष्ठा और जिम्मेदारी के साथ अपनी ड्यूटी निभाई लेकिन अब उनका अनुबंध समाप्त हो चुका है और इन्हें अपने भविष्य की चिंता सता रही है. इससे पहले सरकार ने यह वादा किया था कि 3 साल के बाद उन्हें पुलिस में बहाल कर लिया जाएगा, लेकिन अब सरकार अपने वादे से मुकर गई है.
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भविष्य में यह खतरातीन साल पहले झारखंड सरकार ने नक्सल प्रभावित जिलों में रहने वाले युवाओं को सहायक पुलिसकर्मी की नौकरी अनुबंध के आधार पर दी थी, ताकि नक्सलियों की तरफ उनका जुड़ाव न हो और वे मुख्यधारा में जुड़कर कानून व्यवस्था संभालने का काम करें. इधर उनका अनुबंध खत्म होने के बाद आगे की कार्रवाई सरकार की तरफ से नहीं की गई. नतीजतन सहायक पुलिस वालों को यह चिंता सता रही है कि अगर वे घर लौटते हैं तो नक्सली उन्हें अपने संगठन में शामिल होने का दबाव बना सकते हैं. एक सहायक पुलिसकर्मी अंकित ने बताया कि ऐसे में अगर वह नक्सलियों का साथ नहीं देते हैं तब उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. दरअसल चिंता यह भी है कि सहायक पुलिस वाले पूरी तरह से ट्रेंड हैं. अब वे पुलिस विभाग की बारीकियों के बारे में भी बेहतर जाने लगे हैं. ऐसे में अगर उन्हें जबरदस्ती या फिर जान से मारने की धमकी देकर नक्सली संगठन अपने साथ ले जाते हैं तो यह सरकार के लिए एक बड़ा खतरा बन सकते हैं.