रांची: मामला सिमडेगा जिला से जुड़ा है. बोलबा थाना क्षेत्र के कुंदुरमुंडा गांव की सीता कुमारी की कुपोषण और टीबी की वजह से मौत हो गई है. सीता की मौत पर इसलिए सवाल उठ रहे हैं क्योंकि वह साल 2014 से ही जेल में थी. जाहिर है कि जेल में कैदियों को भोजन और इलाज की सुविधा मिलती है. इसके बावजूद वह कैसे कुपोषित हो गई. अगर उसको टीबी ने जकड़ा भी तो इलाज क्यों नहीं हो पाया.
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दिवंगत जयराम मांझी की बेटी सीता कुमारी पर अपनी ही मां की हत्या का आरोप था. उसे सिमडेगा कोर्ट ने 10 अगस्त 2016 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. इसके बाद सीता को 18 सितंबर 2016 में रांची के बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा में शिफ्ट कर दिया गया था. इसी दौरान साल 2019 में पता चला कि सीता को ग्लैंड टीबी है. उसे खाना खाने में दिक्कत होती थी. उसकी सेवा दूसरी महिला कैदी किया करती थीं.
समय पर नहीं हुआ सीता का ईलाज:अब सवाल है कि जब पता चल गया कि सीता को टीबी है तो उसका समय पर इलाज क्यों नहीं हुआ. 10 जुलाई 2023 को सीता की तबीयत ज्यादा खराब होने पर बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा के चिकित्सक ने बेहतर इलाज के लिए रिम्स रेफर कर दिया. तब से सीता का इलाज डॉ विद्यापति के यूनिट में चल रहा था. इसी दौरान 20 जुलाई 2023 को उसकी मौत हो गई.
डॉ विद्यापति ने बताया कि वह टीबी से गंभीर रूप से ग्रसित थी. बीपी कम हो गया था. उसका खाना-पीना छूट गया था. उसको सही से भोजन नहीं मिला. इसकी वजह से उसकी हालत बिगड़ती चली गई. वह कुपोषित हो चुकी थी. ऐसे मरीज को स्पेशल न्यूट्रिशन देना पड़ता जो नहीं हो पाया. टीबी से ग्रसित मरीज को खाने की ईच्छा नहीं होती है. वैसी स्थिति में उनको विशेष केयर करने की जरूरत होती है. जब उसको रिम्स लाया गया, तब उसकी हालत बेहद नाजुक हो चुकी थी. फिर भी उसको बचाने की पूरी कोशिश की गई लेकिन वह नहीं बच पाई.
सीता की मौत से इंसानियत भी शर्मसार: सिमडेगा के बोलबा थानाक्षेत्र की रहने वाली सीता कुमारी की मौत ने इंसानियत पर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं. जेल सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक पोस्टमार्टम के बाद जब उसके परिजनों को शव ले जाने की सूचना दी गई तो सभी ने हाथ खड़े कर दिए. बोलबा पुलिस के मुताबिक सीता ने ही अपनी मां की हत्या की थी. उसके पिता जयराम मांझी का पहले ही निधन हो चुका है. एक भाई था जो पहले ही मर गया. गांव में इसके चाचा हैं लेकिन इतने गरीब है कि सीता का अंतिम संस्कार करने की भी हालत में नहीं हैं. लिहाजा, परिजनों ने पुलिस को कह दिया है कि आपलोग अपने स्तर से ही उसका अंतिम संस्कार करा दें. उससे जेल में भी मिलने कोई नहीं आता था.
जेल में कैदियों को किस तरह का मिलता है भोजन: जाहिर है कि सीता कुमारी की मौत के पीछे कुपोषण एक बड़ा कारण है. अब सवाल है कि जेल में कैदियों को जरूरत के हिसाब से भोजन नहीं मिलता. इसकी पड़ताल करने पर जेल सूत्रों ने बताया कि हर दिन कैदियों को सुबह का नाश्ता, दोपहर का भोजन और शाम को (सुरक्षा कारणों की वजह से रात के बजाए शाम को ) रात का भोजन दिया जाता है. नाश्ता में चूड़ा, गुड़, मुरही, सत्तू और चाय मिलता है. दोपहर में चावल, दाल और सब्जी दिया जाता है. शाम के वक्त रोटी, दाल और सब्जी परोसा जाता है. सप्ताह में एक दिन दही, चटनी और मटन की व्यवस्था रहती है. वेजिटेरियन कैदियों को मटन की जगह खीर दिया जाता है.
झारखंड के जेलों की स्थिति: झारखंड में कुल 31 जेल हैं. इनमें 07 सेंट्रल जेल, 17 जिला जेल, 06 अनुमंडल जेल और हजारीबाग में 01 ओपन जेल है. ज्यादातर जेल की स्थिति खराब है. 31 में से 23 जेल में क्षमता से ज्यादा कैदी हैं. यही नहीं करीब 20 जेलों में अधीक्षक का पद खाली पड़ा हुआ है. कारापाल, सहायक कारापाल, कक्षपाल और लिपिक के ज्यादातर पद खाली हैं.
स्वास्थ्य व्यवस्था प्लान नहीं: रांची के बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा में कैदियों की कुल क्षमता 3,666 है. इसकी तुलना में इस जेल में कुल 3,370 कैदी हैं. इनमें 100 के करीब महिला कैदी हैं. झारखंड में महिलाओं के लिए अबतक अलग से कोई जेल नहीं बना है. सरकार के मुताबिक वर्तमान वित्तीय वर्ष में जेल से जुड़ी योजनाओं के लिए 160 करोड़ रुय खर्च किए जाएंगे. इसके तहत नये कारा का निर्माण कर क्षमता से ज्यादा कैदियों की संख्या को खत्म किया जाएगा. जेलों में 4जी सेल फोन जैमर लगाया जाना है. जेलों में रोटी मेकिंग मशीन भी लगाए जाने हैं. लेकिन कैदियों के स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर कोई प्लान नहीं है.
सीएम कब करेंगे जेलों का निरीक्षण: साल 2022 के जून माह में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कारा विभाग के अधिकारियों के साथ हाई लेबल मीटिंग की थी. तब उनको बताया गया था कि ज्यादातर जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदी हैं. इनमें 03 साल से कम सजा पाने वाले कैदियों की संख्या ज्यादा है. उस दौरान सीएम ने वैसे कैदियों को मुफ्त में कानूनी सहायता मुहैया कराने का निर्देश दिया था. तब उन्होंने खुद कहा था कि वे बहुत जल्द सभी जेलों का खुद निरीक्षण करेंगे. लेकिन बैठक हुए एक साल से ज्यादा का वक्त गुजर चुका है और सीएम को आज तक निरीक्षण की फुर्सत नहीं मिली.
गैंगस्टर्स के पनाहगार बन गये हैं जेल: सभी जानते हैं कि झारखंड की जेलों में बंद कुख्यात गैंगस्टर्स अपना क्राइम नेटवर्क ऑपरेट करते हैं. इसके बावजूद जेलों में जैमर लगाने की बात होती है तो कल पर टाल दिया जाता है. अक्सर सदन में भी जेलों की सुरक्षा व्यवस्था का मसला उठता रहता है. लेकिन इतने संवेदनशील ठिकानों को लेकर गंभीरता नहीं दिखती. अभी हाल के दिनमों में ही मनी लांड्रिंग मामले में कार्रवाई के बाद सवाल उठे हैं कि जेल में बंद हाईप्रोफाइल लोग कैसे नियम की धज्जियां उड़ा रहे हैं. इसी वजह से पूजा सिंह केस में ईडी ने जेल से सीसीटीवी फुटेज की भी मांग की थी.
टीबी मुक्त झारखंड का सपना कैसे होगा पूरा: 12 जुलाई को राष्ट्रीय यक्ष्मा उन्मूलन कार्यक्रम के तहत रांची में टीबी वर्क प्लेस पॉलिसी एंड कॉर्पोरेट इंगेजमेंट टू एंड टीबी को लेकर राज्य स्तरीय कार्यक्रम हुआ था. उद्घाटन समारोह में स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने कहा था कि पूरे विश्व में टीबी उन्मूलन का लक्ष्य वर्ष 2030 है. राष्ट्रीय लक्ष्य वर्ष 2025 तक है. लेकिन झारखंड ने दिसंबर 2024 तक राज्य को टीबी मुक्त राज्य बनाने का लक्ष्य रखा है. अभी तक राज्य में 57,567 टीबी मरीजों की पहचान हो चुकी है. उसी दिन उन्होंने टीबी मुक्त पंचायत कार्यक्रम की शुरूआत भी की. झारखंड देश का पहला राज्य है जो वर्क प्लेस पॉलिसी फॉर टीबी पर काम कर रहा है. पंचायत स्तर पर शिविर लगाकर टीबी जांच की बात की जा रही है. यह बातें सुनने में बहुत अच्छी तब लगतीं जब टीबी से ग्रसित सीता कुमारी को बचा लिया गया होता.