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निबंधन से कतरा रहीं मंदिर समितियां, संपत्ति में घालमेल और अतिक्रमण को बढ़ावा!

झारखंड में लाख कोशिशों के बाबजूद मंदिर समितियां ना तो निबंधन करा रही और ना ही अपनी संपत्ति का ब्यौरा दिया जा रहा है. ऐसे में मंदिरों की संपत्ति में घालमेल के साथ-साथ इसकी जमीन पर अनाधिकृत रुप से अतिक्रमण किया जा रहा है.

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झारखंड में मंदिर समितियां
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Published : Apr 13, 2021, 5:55 PM IST

Updated : Apr 13, 2021, 10:48 PM IST

रांचीः झारखंड में राजधानी रांची सहित विभिन्न जिलों में बड़ी संख्या में विभिन्न देवी देवताओं के नाम पर मंदिरें है. इन धार्मिक स्थलों से लाखों करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है. जिसके कारण ना केवल पर्यटन को बढ़ावा मिलता है बल्कि रोजी रोजगार भी इससे लोगों का जुड़ा हुआ है.

देखें पूरी खबर

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धार्मिक न्यास समिति के माध्यम से चल रहे कई धार्मिक स्थल सैकड़ों वर्ष पुराने हैं जो या तो दान में दी हुई जमीन पर है या सरकार की ओर से अधिग्रहित जमीन पर अवस्थित है. कई मंदिरों की जमीन और संपत्ति आज भी विवादों में है. भू-माफिया गलत ढंग से जमीन बंदोबस्ती करा लेने से इन स्थानों की जमीन अतिक्रमित होती चली गई है.

उदाहरण के तौर पर राजधानी रांची के पहाड़ी मंदिर सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार करीब 26 एकड़ में है. मगर सच्चाई यह है कि मंदिर के कब्जे में 22 एकड़ से अधिक जमीन नहीं है. उसमें भी कई स्थानों पर झुग्गी झोपड़ी लगाकर अतिक्रमण कर लिया गया है. पहाड़ी मंदिर के संस्थापक रहे दयाशंकर की मानें तो पहाड़ी मंदिर की पूरी जमीन भूमाफियाओं ने गलत बंदोबस्ती करा ली थी जिसके बचाने में उन्हें जेल भी जाना पड़ा था.

पहाड़ी मंदिर के अलावे राजधानी का जगन्नाथ स्वामी का मंदिर जहां रथयात्रा के दौरान श्रद्दालुओं का सैलाब उमड़ता है. इस मंदिर का निर्माण 1691 में नागवंशी राजा एनी नाथ शाहदेव ने कराया था. ठाकुर एनी नाथ शाहदेव ने मंदिर के रखरखाव के लिए 3 गांव जगन्नाथपुर आमी और भूसू की जमीन मंदिर को दान में दी थी. 1979 में मंदिर को ट्रस्ट के माध्यम से संचालित करने का निर्णय लिया गया. उपायुक्त ट्रस्ट के पदेन अध्यक्ष होते हैं, साथ ही ट्रस्ट में राज परिवार के भी सदस्य शामिल हैं. समय के साथ इस मंदिर की जमीन पर भी विवाद गहराने लगा है.


मंदिर धार्मिक न्यास समिति पर नियंत्रण नहीं
आंकड़ों के मुताबिक झारखंड में करीब 6000 छोटे बड़े मंदिर हैं. खास बात यह है कि इन मंदिरों की संपत्ति का ब्यौरा सरकार के पास नहीं है. प्रावधान के अनुसार हर मंदिर समिति को झारखंड राज्य हिन्दू धार्मिक न्यास पर्षद से निबंधन कराकर हर वर्ष आय व्यय का लेखा जमा करना आवश्यक है. एक्ट के अनुसार झारखंड राज्य हिन्दू धार्मिक न्यास पर्षद में किसी मंदिर के कुल आय के 20 प्रतिशत मंदिर प्रशासनिक व्यय पर खर्च मानकर शेष 80 प्रतिशत आय के 5% टैक्स जमा किया जाना है.

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मंदिर समिति नहीं करवा रहीं निबंधन

मगर हकीकत यह है कि झारखंड राज्य हिन्दू धार्मिक न्यास पर्षद के पास अब तक मात्र 103 मंदिर समितियों ने ही निबंधन कराया है. शेष मंदिरों की संपत्ति के बारे में सरकार के पास कोई रेकॉर्ड नहीं है. दुखद पहलू यह है कि संयुक्त बिहार के समय तक 95 ऐसे मंदिर समिति निबंधित थी. राज्य गठन के बाद अब तक मात्र 8 निबंधित हुए हैं.

राज्य के कई बड़े मंदिर स्थानीय स्तर पर संचालित होते रहे हैं. जिसमें रांची का पहाड़ी मंदिर, देवड़ी मंदिर, रजरप्पा का छिन्नमस्तिका मंदिर, चतरा का इटखोरी मंदिर, राजधानी रांची का मेनरोड हनुमान मंदिर शामिल है. ऐसे गैर-निबंधित मंदिर समितियों पर अंकुश लगाने के लिए नोटिस भेजे जाने के बाबजूद निबंधन नहीं कराया जाने से मंदिर समितियों के कामकाज पर सवाल उठने लगे हैं.

झारखंड राज्य हिन्दू धार्मिक न्यास पर्षद के अधीक्षक अशोक कुमार राय ने कहा है कि जब तक सरकार के पास इन मंदिर समितियों का रिकॉर्ड नहीं रहेगा, तब तक इनकी संपत्ति के बारे में जानना मुश्किल है. मंदिर प्रबंधन की ओर से निबंधन नहीं कराए जाने के पीछे का कारण है कि उन्हें लगता है उनके स्वामित्व में दखलअंदाजी हो जाएगी.

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झारखंड राज्य हिन्दू धार्मिक न्यास पर्षद है बेबस
संसाधनों की कमी की वजह से झारखंड राज्य हिंदू धार्मिक न्यास पर्षद मंदिर समितियों के ऊपर कार्रवाई नहीं कर पा रही है. सीमित संसाधन और मैनपावर को लेकर किसी तरह कार्यालय चला रहे. अशोक कुमार राय की मानें तो नोटिस भेजने के अलावे हमलोग क्या कर सकते हैं.

प्राकृतिक संसाधनों से भरे इस प्रदेश में सभी धर्मों के लोग रहते हैं. एक तरफ जहां जैन धर्मावलंबियों के लिए पारसनाथ मंदिर आस्था का महासागर है. वहीं दूसरी तरह देवघर का बाबा बैजनाथ मंदिर ज्योर्तिलिंगों में से एक है. दुमका का मलुटी जिसे मंदिरों का गांव के रुप में पर्यटकों के लिए खास आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है. ऐसे में आवश्यकता इस बात की है इन धार्मिक स्थलों को संरक्षित करने की.

रांचीः झारखंड में राजधानी रांची सहित विभिन्न जिलों में बड़ी संख्या में विभिन्न देवी देवताओं के नाम पर मंदिरें है. इन धार्मिक स्थलों से लाखों करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है. जिसके कारण ना केवल पर्यटन को बढ़ावा मिलता है बल्कि रोजी रोजगार भी इससे लोगों का जुड़ा हुआ है.

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धार्मिक न्यास समिति के माध्यम से चल रहे कई धार्मिक स्थल सैकड़ों वर्ष पुराने हैं जो या तो दान में दी हुई जमीन पर है या सरकार की ओर से अधिग्रहित जमीन पर अवस्थित है. कई मंदिरों की जमीन और संपत्ति आज भी विवादों में है. भू-माफिया गलत ढंग से जमीन बंदोबस्ती करा लेने से इन स्थानों की जमीन अतिक्रमित होती चली गई है.

उदाहरण के तौर पर राजधानी रांची के पहाड़ी मंदिर सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार करीब 26 एकड़ में है. मगर सच्चाई यह है कि मंदिर के कब्जे में 22 एकड़ से अधिक जमीन नहीं है. उसमें भी कई स्थानों पर झुग्गी झोपड़ी लगाकर अतिक्रमण कर लिया गया है. पहाड़ी मंदिर के संस्थापक रहे दयाशंकर की मानें तो पहाड़ी मंदिर की पूरी जमीन भूमाफियाओं ने गलत बंदोबस्ती करा ली थी जिसके बचाने में उन्हें जेल भी जाना पड़ा था.

पहाड़ी मंदिर के अलावे राजधानी का जगन्नाथ स्वामी का मंदिर जहां रथयात्रा के दौरान श्रद्दालुओं का सैलाब उमड़ता है. इस मंदिर का निर्माण 1691 में नागवंशी राजा एनी नाथ शाहदेव ने कराया था. ठाकुर एनी नाथ शाहदेव ने मंदिर के रखरखाव के लिए 3 गांव जगन्नाथपुर आमी और भूसू की जमीन मंदिर को दान में दी थी. 1979 में मंदिर को ट्रस्ट के माध्यम से संचालित करने का निर्णय लिया गया. उपायुक्त ट्रस्ट के पदेन अध्यक्ष होते हैं, साथ ही ट्रस्ट में राज परिवार के भी सदस्य शामिल हैं. समय के साथ इस मंदिर की जमीन पर भी विवाद गहराने लगा है.


मंदिर धार्मिक न्यास समिति पर नियंत्रण नहीं
आंकड़ों के मुताबिक झारखंड में करीब 6000 छोटे बड़े मंदिर हैं. खास बात यह है कि इन मंदिरों की संपत्ति का ब्यौरा सरकार के पास नहीं है. प्रावधान के अनुसार हर मंदिर समिति को झारखंड राज्य हिन्दू धार्मिक न्यास पर्षद से निबंधन कराकर हर वर्ष आय व्यय का लेखा जमा करना आवश्यक है. एक्ट के अनुसार झारखंड राज्य हिन्दू धार्मिक न्यास पर्षद में किसी मंदिर के कुल आय के 20 प्रतिशत मंदिर प्रशासनिक व्यय पर खर्च मानकर शेष 80 प्रतिशत आय के 5% टैक्स जमा किया जाना है.

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मंदिर समिति नहीं करवा रहीं निबंधन

मगर हकीकत यह है कि झारखंड राज्य हिन्दू धार्मिक न्यास पर्षद के पास अब तक मात्र 103 मंदिर समितियों ने ही निबंधन कराया है. शेष मंदिरों की संपत्ति के बारे में सरकार के पास कोई रेकॉर्ड नहीं है. दुखद पहलू यह है कि संयुक्त बिहार के समय तक 95 ऐसे मंदिर समिति निबंधित थी. राज्य गठन के बाद अब तक मात्र 8 निबंधित हुए हैं.

राज्य के कई बड़े मंदिर स्थानीय स्तर पर संचालित होते रहे हैं. जिसमें रांची का पहाड़ी मंदिर, देवड़ी मंदिर, रजरप्पा का छिन्नमस्तिका मंदिर, चतरा का इटखोरी मंदिर, राजधानी रांची का मेनरोड हनुमान मंदिर शामिल है. ऐसे गैर-निबंधित मंदिर समितियों पर अंकुश लगाने के लिए नोटिस भेजे जाने के बाबजूद निबंधन नहीं कराया जाने से मंदिर समितियों के कामकाज पर सवाल उठने लगे हैं.

झारखंड राज्य हिन्दू धार्मिक न्यास पर्षद के अधीक्षक अशोक कुमार राय ने कहा है कि जब तक सरकार के पास इन मंदिर समितियों का रिकॉर्ड नहीं रहेगा, तब तक इनकी संपत्ति के बारे में जानना मुश्किल है. मंदिर प्रबंधन की ओर से निबंधन नहीं कराए जाने के पीछे का कारण है कि उन्हें लगता है उनके स्वामित्व में दखलअंदाजी हो जाएगी.

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झारखंड राज्य हिन्दू धार्मिक न्यास पर्षद है बेबस
संसाधनों की कमी की वजह से झारखंड राज्य हिंदू धार्मिक न्यास पर्षद मंदिर समितियों के ऊपर कार्रवाई नहीं कर पा रही है. सीमित संसाधन और मैनपावर को लेकर किसी तरह कार्यालय चला रहे. अशोक कुमार राय की मानें तो नोटिस भेजने के अलावे हमलोग क्या कर सकते हैं.

प्राकृतिक संसाधनों से भरे इस प्रदेश में सभी धर्मों के लोग रहते हैं. एक तरफ जहां जैन धर्मावलंबियों के लिए पारसनाथ मंदिर आस्था का महासागर है. वहीं दूसरी तरह देवघर का बाबा बैजनाथ मंदिर ज्योर्तिलिंगों में से एक है. दुमका का मलुटी जिसे मंदिरों का गांव के रुप में पर्यटकों के लिए खास आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है. ऐसे में आवश्यकता इस बात की है इन धार्मिक स्थलों को संरक्षित करने की.

Last Updated : Apr 13, 2021, 10:48 PM IST
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