ETV Bharat / state

तीसी की खेती से बदल सकती है झारखंड के किसानों की किस्मत, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय कर रहा मदद - तीसी की खेती के लिए झारखंड अनुकूल

तीसी यानी अलसी रबी की प्रमुख फसल है. इससे किसान अपनी आय दोगुनी कर सकते हैं. झारखंड की जलवायु तीसी के पैदावार के लिए अनुकूल है. इसको लेकर बिरसा कृषि विश्वविद्यालय लगातार किसानों के हित में काम करते आ रहा है. इस विश्वविद्यालय ने झारखंड की जलवायु के अनुकूल दो किस्में 'दिव्या और प्रियम' को विकसित किया है.

Teesi farming in jharkhand
झारखंड में तीसी की खेती
author img

By

Published : Jun 5, 2020, 3:44 AM IST

रांची: बहु औषधीय गुणों वाली अलसी यानी तीसी की अच्छी पैदावार के लिए झारखंड का मौसम अनुकूल है. बीते कुछ सालों में तीसी की फसल की रकबा और उत्पादकता में बढ़ोतरी देखने को मिली है. इसको लेकर राज्य के वैज्ञानिक लगातार किसानों को सुझाव और मदद के लिए प्रयासरत हैं.

देखें स्पेशल स्टोरी

तीसी के पैदावार के लिए अनुकूल

तिलहन की प्रमुख व्यवासायिक फसल तीसी की खेती झारखंड में पहले की अपेक्षा कम हो गई है. राज्य में अधिक इसकी उत्पादकता हो इस उद्देश्य से बिरसा कृषि विश्वविद्यालय ने झारखंड की जलवायु के अनुकूल दो किस्में 'दिव्या और प्रियम' को विकसित किया है. आईसीएआर की अखिल भारतीय समंवित शोध परियोजना के तहत विकसित इस किस्म को केंद्रीय बीज प्रमाणन एजेंसी ने अनुशंसित किया है और चालू रबी मौसम में केंद्र ने दोनों के समूह को सेंट्रल सीट चैन में शामिल किया है, ताकि झारखंड के किसान इस बहुऔषधीय गुणों वाली तीसी की खेती अधिक से अधिक कर सकें.

10 एकड़ जमीन पर लगी तीसी की फसल

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के अनुवांशिकी और पौधा प्रजनन के मुख्य वैज्ञानिक डॉक्टर सोहन राम बताते हैं कि बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि क्षेत्र में निदेशालय की ओर से करीब 10 एकड़ भूमि में बीज उत्पादन कार्यक्रम चलाया गया है. मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग और शास्य विभाग में तीसी के किस्मों पर प्रक्षेत्रों में अभिनव शोध अध्ययन चल रहा है. राज्य में इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न जिलों के केवीके के माध्यम से अग्रिम प्रशिक्षण 'एफएलडी' कराया जा रहा है. इस साल उलीहातू खोटी सहित विभिन्न जिलों में एफलडीसी कार्यक्रम चलाया जा रहा है. विश्वविद्यालय के मुख्य क्षेत्रों के करीब 6 एकड़ भूमि में प्रजनक बीज उत्पादन और 150 जिनोटाइप पर शोध कार्यक्रम कराया जा रहा है.

कई औषधीय गुणों से भरपूर है अलसी

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. सोहन राम ने कहा कि तीसी के तेल में 20 फीसदी प्रोटीन, 35 फीसदी वसा और 28 फीसदी कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है. इसमें मौजूद ओमेगा-3 की भरपूर मात्रा कोलेस्ट्रोल हृदय और गठिया रोग में लाभदायक है. विश्व बाजार में इसकी काफी ज्यादा मांग है. बेहतर लाभ को देखते हुए प्रदेश के किसानों के लिए इसकी खेती में काफी संभावनाएं हैं.

किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रही तीसी की खेती

वहीं, तीसी की खेती करने वाला एक किसान ने बताया कि तीसी की खेती सालों से ही झारखंड में होते रहा है. किसान उन्नत और नकदी फसल पर ज्यादा निर्भर रहते हैं. झारखंड के किसान जलवायू के अनुकूल कई तरह के फसलों को लगाते हैं. किसान ने बताया कि तीसी पहले के जमाने में ज्यादा होता था. यह कम पानी में भी होने वाला फसल है, जो झारखंड के जलवायू के अनुकूल है. इस फसल के ऊपज में लगभग चार महीने का समय लगता है. तीसी की खेती में दोहरा लाभ होगा, क्योंकि इसका बाजार में काफी अच्छा मुनाफा मिल जाता है और दूसरी तरफ इसका तेल काफी फायदेमंद है. ऐसे में तीसी के अच्छी और उन्नत ऊपज से न सिर्फ किसान मालामाल होंगे बल्कि ये अलसी लोगों को रोगों से लड़ने में मदद करेगी.

रांची: बहु औषधीय गुणों वाली अलसी यानी तीसी की अच्छी पैदावार के लिए झारखंड का मौसम अनुकूल है. बीते कुछ सालों में तीसी की फसल की रकबा और उत्पादकता में बढ़ोतरी देखने को मिली है. इसको लेकर राज्य के वैज्ञानिक लगातार किसानों को सुझाव और मदद के लिए प्रयासरत हैं.

देखें स्पेशल स्टोरी

तीसी के पैदावार के लिए अनुकूल

तिलहन की प्रमुख व्यवासायिक फसल तीसी की खेती झारखंड में पहले की अपेक्षा कम हो गई है. राज्य में अधिक इसकी उत्पादकता हो इस उद्देश्य से बिरसा कृषि विश्वविद्यालय ने झारखंड की जलवायु के अनुकूल दो किस्में 'दिव्या और प्रियम' को विकसित किया है. आईसीएआर की अखिल भारतीय समंवित शोध परियोजना के तहत विकसित इस किस्म को केंद्रीय बीज प्रमाणन एजेंसी ने अनुशंसित किया है और चालू रबी मौसम में केंद्र ने दोनों के समूह को सेंट्रल सीट चैन में शामिल किया है, ताकि झारखंड के किसान इस बहुऔषधीय गुणों वाली तीसी की खेती अधिक से अधिक कर सकें.

10 एकड़ जमीन पर लगी तीसी की फसल

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के अनुवांशिकी और पौधा प्रजनन के मुख्य वैज्ञानिक डॉक्टर सोहन राम बताते हैं कि बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि क्षेत्र में निदेशालय की ओर से करीब 10 एकड़ भूमि में बीज उत्पादन कार्यक्रम चलाया गया है. मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग और शास्य विभाग में तीसी के किस्मों पर प्रक्षेत्रों में अभिनव शोध अध्ययन चल रहा है. राज्य में इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न जिलों के केवीके के माध्यम से अग्रिम प्रशिक्षण 'एफएलडी' कराया जा रहा है. इस साल उलीहातू खोटी सहित विभिन्न जिलों में एफलडीसी कार्यक्रम चलाया जा रहा है. विश्वविद्यालय के मुख्य क्षेत्रों के करीब 6 एकड़ भूमि में प्रजनक बीज उत्पादन और 150 जिनोटाइप पर शोध कार्यक्रम कराया जा रहा है.

कई औषधीय गुणों से भरपूर है अलसी

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. सोहन राम ने कहा कि तीसी के तेल में 20 फीसदी प्रोटीन, 35 फीसदी वसा और 28 फीसदी कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है. इसमें मौजूद ओमेगा-3 की भरपूर मात्रा कोलेस्ट्रोल हृदय और गठिया रोग में लाभदायक है. विश्व बाजार में इसकी काफी ज्यादा मांग है. बेहतर लाभ को देखते हुए प्रदेश के किसानों के लिए इसकी खेती में काफी संभावनाएं हैं.

किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रही तीसी की खेती

वहीं, तीसी की खेती करने वाला एक किसान ने बताया कि तीसी की खेती सालों से ही झारखंड में होते रहा है. किसान उन्नत और नकदी फसल पर ज्यादा निर्भर रहते हैं. झारखंड के किसान जलवायू के अनुकूल कई तरह के फसलों को लगाते हैं. किसान ने बताया कि तीसी पहले के जमाने में ज्यादा होता था. यह कम पानी में भी होने वाला फसल है, जो झारखंड के जलवायू के अनुकूल है. इस फसल के ऊपज में लगभग चार महीने का समय लगता है. तीसी की खेती में दोहरा लाभ होगा, क्योंकि इसका बाजार में काफी अच्छा मुनाफा मिल जाता है और दूसरी तरफ इसका तेल काफी फायदेमंद है. ऐसे में तीसी के अच्छी और उन्नत ऊपज से न सिर्फ किसान मालामाल होंगे बल्कि ये अलसी लोगों को रोगों से लड़ने में मदद करेगी.

For All Latest Updates

TAGGED:

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.