रांची: देश के साथ-साथ झारखंड में 16 जनवरी से कोरोना का टीका लगना शुरू हो गया था. पहले चरण में हेल्थ केयर वर्कर्स यानी डॉक्टर्स, नर्स और पारा मेडिकल स्टाफ को वैक्सीन लगाई गई थी. उस समय जिन डॉक्टर, नर्स या मेडिकल स्टाफ ने कोरोना का वैक्सीन ली थी, वे 6 महीने बाद फिर अनजाने भय से परेशान हैं.
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डॉक्टरों को किस बात का है डर?
रिम्स और सदर अस्पताल के ज्यादातर डॉक्टर से ईटीवी भारत की टीम ने बात की. रिम्स के न्यूरोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ. सुरेंद्र कुमार का कहना है कि जनवरी में पहली डोज और फरवरी में दूसरी डोज ली थी. वैक्सीन लिए हुए 6 महीने से ज्यादा बीत गए. उन्हें इस बात का डर है कि इतने दिनों बाद वैक्सीन काम कर रही है या नहीं. शरीर में पर्याप्त मात्रा में एंटीबाडी बनी या नहीं और अभी उसकी क्या स्थिति है.
इसके अलावा हर दिन नए नए स्ट्रेन और वैरियंट के साथ आ रहे कोरोना वायरस के चलते भी डॉक्टर में डर का माहौल है. इसके पीछे वजह है कि अस्पताल में डॉक्टर, नर्स और अन्य स्टाफ हर दिन कई मरीजों के संपर्क में आते हैं. रिम्स में नर्सिंग की प्रभारी अधीक्षक बी लिंडा ने खुलकर कुछ नहीं बताया लेकिन इतना जरूर कहा कि शरीर में एंटीबॉडी की क्या स्थिति है, यह पता नहीं है.
क्या कहते हैं कोरोना टास्क फोर्स के डॉक्टर ?
रिम्स में कोरोना टास्क फोर्स के डॉक्टर निशीथ एक्का कहते हैं कि शरीर में एंटीबॉडी कितनी बनी और अभी कितनी है, इसका संबंध कोरोना के वैक्सीन की क्षमता से नहीं है. डॉ. निशीथ के मुताबिक भले ही वैक्सीन लेने के बाद बनी एंटीबॉडी कम हो जाए लेकिन शरीर में बनी मेमोरी टी सेल महत्वपूर्ण होती है जो उस क्षण को पहचान लेती है जब कोरोना वायरस शरीर में प्रवेश करता है. टी सेल वायरस को पहचानते ही उसके खिलाफ लड़ने लगती है.
...तो फिर डॉक्टरों में खौफ क्यों ?
इस सवाल पर डॉ निशीथ एक्का कहते हैं कि डर इसलिए है कि कोविड-19 एक नई बीमारी है. इसमें फ्लू की तरह बूस्टर डोज जरूरी होगा या फिर मीजल्स-मम्प्स जैसी बीमारियों के वैक्सीन की तरह दो डोज से ही जीवन भर बीमारी से रक्षा करेगा, जैसे सवाल हैं जो परेशान करते हैं.