रांचीः झारखंड पुलिस की आत्मसमर्पण नीति से प्रभावित होकर समय-समय पर बड़े नक्सली कमांडर और छोटे नक्सल कैडर भी मुख्यधारा में लौट आते है. नक्सलियों का आत्मसमर्पण करने का सिलसिला चलते रहता है. लेकिन कभी आपने सोचा है कि जिन नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया उनके हालात क्या हैं. ईटीवी भारत की टीम ने इसकी पड़ताल की, जिसमें कई कड़वी सच्चाइयों का खुलासा हुआ है. सात-आठ साल पहले आत्मसमर्पण कर चुके पूर्व नक्सली अब भी आत्मसमर्पण नीति के तहत मिलने वाले लाभों के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
यह भी पढ़ेंःचतरा: टीएसपीसी के 5 लाख का इनामी नक्सली उदेश ने किया सरेंडर
सबसे ज्यादा जमीन को लेकर छले गए पूर्व नक्सली
झारखंड में आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को आत्मसमर्पण नीति के तहत घर बनाने को लेकर 4 डिसमिल जमीन दी जाती है. नियम के तहत पूर्व नक्सलियों को 4 डिसमिल जमीन भी अलग-अलग इलाकों में दे दी गई. लेकिन जब पूर्व नक्सली अपनी जमीन पर काम करने पहुंचे तो वह चौक गए. दरअसल अधिकांश जमीन पर किसी ना किसी का कब्जा था. इतना ही नहीं कुछ जमीन पर सरकारी भवन भी बन चुका है. इसके साथ ही कई पूर्व नक्सलियों को तो ऐसी जगह जमीन दी गई है, जहां वह रहने लगे तो उनके संगठन के साथी ही मार डालेगा. अब आलम यह है कि अपनी जमीन पर कब्जा दिलवाने के लिए पूर्व नक्सली पुलिस प्रशासन के आलाअधिकारियों के दफ्तरों का चक्कर लगाने को मजबूर हैं.
10 सालों से दफ्तरों का काट रहे चक्कर
कुख्यात नक्सली कुंदन पाहन के दस्ते में रहे पूर्व नक्सली हरिपदो मुंडा ने 29 मार्च 2010 को रांची में हथियार डाला था. 10 सालों से हरिपदो अपनी जमीन के लिए दफ्तरों का चक्कर काट रहे हैं. लेकिन अब तक उनकी जमीन उन्हें नहीं मिल सकी है. हरिपदो की जमीन पर दबंगों का कब्जा है. 2011 में आत्मसमर्पण करने वाली महिला नक्सली रश्मि महली को भी जमीन का आवंटन हुआ है. लेकिन उनके जमीन पर भी किसी ने कब्जा कर लिया है. वर्ष 2010 में आत्मसमर्पण करने वाले चांद महतो को भी जमीन आवंटित किया गया, जो आज तक अपनी जमीन नहीं देख सका है. यह स्थिति आधा दर्जन से अधिक पूर्व नक्सलियों का है.
हताश है एक दर्जन पूर्व नक्सली
आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को नीति के तहत कई सुविधाएं मिलती हैं. इसमें उनके ऊपर चलने वाले मुकदमों का खर्च, केस के शीघ्र निष्पादन की व्यवस्था, बच्चों के शिक्षा का खर्च, स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षण और रोजगार उपलब्ध करवाना, परिवार का जीवन बीमा, राशन कार्ड में नाम जोड़ना, केस खत्म होने के बाद अगर नौकरी लायक उम्र हो तो नौकरी देना, पीएम आवास का लाभ देना आदि लाभ शामिल हैं, लेकिन आत्मसमर्पण कर चुके दो दर्जन से ज्यादा पूर्व नक्सलियों ने अपनी इन्हीं मांगों को लेकर हर दिन संघर्ष कर रहे हैं. आत्मसमर्पण करने वाले रेशमी महली, नैती कुमारी, अर्जुन मिर्धा, रमेश प्रमाणिक, किशोर मुंडा, भोल पाल, सुखराम लोहार, दीपक मुंडा, हरिपदो मुंडा, चांद महतो, राम पदो लोहारा, यशोदा कुमारी, गुरुबारी कुमारी, रोहित मुंडा, सुनीता कुमारी, गीता गंझू , सीताराम मुंडा, राम लोहरा, शांति सोय, ठाकुर मनी देवी और सरस्वती देवी आदि हैं. इन नक्सलियों ने हथियार डालकर मुख्यधारा से जुड़े थे, जो अपने आप को छला महसूस कर रहे हैं.
यह भी पढ़ेंःजानिए क्या है लोन वर्राटू अभियान, जिसके तहत 14 नक्सलियों ने किया सरेंडर
जिनकी हो गई मौत, उनका परिवार बेहाल
आत्मसमर्पण करने वाले कई ऐसे नक्सली भी हैं, जो अब इस दुनिया में नहीं है. अब उनके परिवार वालों के सामने भूखे मरने की नौबत आ गई है. कुंदन पाहन के दस्ते के कुख्यात नक्सली शंकर पुराण खूंटी के रहने वाली शांति से शादी कर लिया. इसके बाद आत्मसमर्पण कर दिया. आत्मसमर्पण के बाद जेल गया और जेल से निकलने के बाद उसकी हत्या कर दी गई. अब शंकर की पत्नी और बच्चे आत्मसमर्पण से मिलने वाले लाभ के लिए भटक रहे है.
बड़े नक्सली सरेंडर के बाद बिता रहे आराम का जीवन
सबसे हैरानी की बात तो यह है कि सरेंडर करने वाले छोटे और बड़े नक्सलियों के जीवन में भी बड़ा अंतर है. बड़े नक्सली सरेंडर करने के बाद अपना कारोबार शुरू कर दिया है. इसकी वजह है कि संगठन में रहकर भी पैसा कमाया और आत्मसमर्पण के बाद घोषित इनाम की राशि भी उन्हीं को मिला. लेकिन जो छोटे कैडर है, वह अब भी अपने हक के लिए संघर्षरत हैं.
जल्द समस्याओं का किया जाएगा समाधान
आत्मसमर्पण कर चुके एक दर्जन से ज्यादा नक्सली कभी रांची के सीनियर एसपी तो कभी ग्रामीण एसपी, डीसी के दफ्तरों का चक्कर लगा रहे हैं. सरेंडर कर चुके नक्सलियों ने अपनी बात पुलिस मुख्यालय तक भी पहुंचाई है. पूर्व नक्सलियों की शिकायत मिलते ही पुलिस मुख्यालय की ओर से समाधान की प्रक्रिया तेज कर दी गई है. आईजी अभियान अमोल वी होमकर ने कहा कि पूर्व नक्सलियों की समस्याओं के समाधान के लिए एक कमेटी बनाई गई है, जो जल्द ही डीजीपी को अपनी रिपोर्ट सौपेंगी. इसके बाद समस्याओं का निदान किया जाएगा.