रांचीः समाज या पीड़ित मानवता के लिए अगर बेहतर और सेवा भाव से काम किए जाते हैं तो ना सिर्फ उससे लक्ष्य की प्राप्ति होती है, बल्कि विश्व स्तर पर इस तरह के प्रयासों को सराहा भी जाता है. डेंगू और चिकनगुनिया के आउट ब्रेक के समय झारखंड की राजधानी रांची में हुए स्वास्थ्य विभाग, नगर निगम, मीडिया और स्थानीय निकाय की मदद से जिस तरह बड़े पैमाने पर बीमारी का फैलाव को रोका गया, उस मॉडल को सक्सेस स्टोरी के रूप में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की न्यूज बुलेटिन के वॉल्यूम 41 के पेज नंबर 148 में जगह मिली है.
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साल 2018 में क्या स्थिति थी
रांची नगर निगम की वार्ड संख्या 23 की पार्षद डॉ. साजदा खातून ईटीवी भारत से उन दिनों को याद साझा करते हुए कहती हैं कि ईद के त्योहार के तुरंत बाद उनके वार्ड में बुखार और पैरों में तेज दर्द, जिसे लोग लंगड़ा बुखार कह रहे थे, तेजी से फैलने लगा. वार्ड में कई लोग डेंगू के शिकार हो रहे थे, इनकी संख्या भी हर दिन बढ़ती ही जा रही थी.
डॉ. साजदा कहती हैं कि उन्होंने रांची के सिविल सर्जन से इस संबंध में बात की. हर दिन मेडिकल कैंप लगाकर सबसे ज्यादा प्रभावित वार्ड संख्या 22 और 23 में लोगों की मेडिकल जांच और इलाज शुरू हुई. लोगों को इस बात के लिए जागरूक किया गया कि पानी को ज्यादा दिनों तक स्टोर ना करें और ज्यादा दिनों से रखे पानी को बहा दें. क्योंकि डेंगू-चिकनगुनिया के लिए जिम्मेदार एडिस मच्छर का लार्वा साफ पानी में ही पनपता है.
18 से 20 हजार घरों का डोर-टू-डोर निरीक्षण
स्वास्थ्य विभाग की राज्य सलाहकार और कीट विज्ञानवेत्ता सज्ञा सिंह कहती हैं कि 2018 में रांची के केंद्र में डेंगू और चिकनगुनिया का आउट ब्रेक हुआ था. हर तरफ रोज नए नए मिल रहे मरीज और उनकी बीमारियों की चर्चे हो रहे थे. ऐसे में स्वास्थ्य विभाग को दो लक्ष्य हासिल करना था. जहां डेंगू और चिकनगुनिया आउट ब्रेक हुआ था, उसके फैलाव को हिंदपीढ़ी इलाके में ही रोक देना था. इसके साथ-साथ डेंगू फैलाने वाले एडिस मच्छर के प्रजनन पर वार करना.
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डेंगू-चिकनगुनिया के खात्मे के लिए बना विशेष मॉडल
सज्ञा सिंह कहती हैं कि जिन क्षेत्रों में डेंगू और चिकनगुनिया का आउट ब्रेक हुआ था, वहां यह देखा जा रहा था कि लगातार सप्लाई वाटर नहीं आने के चलते हर घर में कंटेनर में पानी जमा था, उसमें एडिस मच्छर का लार्वा पनप रहा था. डेंगू-चिकनगुनिया के आउट ब्रेक की वजह जानने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने जिला प्रशासन, नगर निगम और स्थानीय पार्षद के सहयोग से बड़ा अभियान चलाया गया.
इस अभियान के तहत करीब 18 से 20 हजार घरों के दरवाजे पर जाकर लोगों को बताया गया कि कैसे आपके घर में स्टोर किया पानी से ही बीमारी फैला रहा है. एक-एक घर में जाकर पानी के कंटेनर को खाली कराकर उनकी सफाई करवाई गई. वहीं सर्विलांस टीम के साथ-साथ पानी के टैंकर, सफाई कर्मी भी होते थे. जिनके घरों में पानी को बहाकर कंटेनर साफ कराया गया है, उनको पीने के पानी की दिक्कत ना हो साथ ही साथ मौके पर ही साफ सफाई भी हो जाए.
क्या कहते हैं तत्कालीन सिविल सर्जन
आउट ब्रेक के समय रात के 12-01 बजे तक खुद हिंदपीढ़ी के प्रभावित इलाके में मोटरसाइकिल से निकल जाने वाले तत्कालीन सिविल सर्जन ने भी अपनी बातें साझा कीं. वो बताते हैं कि उन दिनों हर दिन डेंगू और चिकनगुनिया का खतरा बढ़ रहा था. कई जगह तो लोग नीम हकीम के चक्कर में फंसकर अपनी जान जोखिम में डाल रहे थे. ऐसे में सप्ताह के सातों दिन प्रभावित इलाके में हेल्थ कैंप, बीमारी की जांच और दवाई की व्यवस्था कराई गई.
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इसके अलावा उन दिनों गंभीर मरीजों के लिए सदर अस्पताल में सीट रिजर्व रखा गया था, दवाइयों की कोई कमी नहीं होने दी गयी. इसके लिए इलाके के धार्मिक नेताओं की मदद भी ली गयी थी. जिससे डेंगू-चिकनगुनिया के प्रसार और जमा हुए पानी में पनप रहे एडिस मच्छर के फैलाव को रोका जा सके. तत्कालीन सिविल सर्जन डॉ. विजय बिहारी प्रसाद ने कहा कि उस समय टीम के रूप में काम करने का नतीजा यह रहा कि आउट ब्रेक रुक गया और कमांड में डेंगू आ गया. विश्व स्वास्थ्य संगठन के समाचार पत्रिका में जगह मिलने को डॉ. प्रसाद बड़ी उपलब्धि मानते हैं.
डेंगू-चिकनगुनिया के लिए यह मॉडल आएगा काम
सज्ञा सिंह ने कहा कि डेंगू से निपटने के इस मॉडल WHO के न्यूज बुलेटिन में जगह पाने के बाद काफी मदद मिलेगी, खासकर तब जब दूसरी जगह पर इस तरह का आउट ब्रेक होगा. इस मॉडल को अपनाकर एकजुटता के साथ काम करने से प्रदेश को डेंगू-चिकनगुनिया से मुक्त किया जा सकता है.