रांची: दारोगा-इंस्पेक्टर एसटी-एससी उत्पीड़न केस का अनुसंधान कर सकेंगे. इस बाबत अधिसूचना जारी कर दी गई है. झारखंड सरकार की अधिसूचना के मुताबिक, एसटी-एसपी अधिनियम 1989 की धारा 9 की उपधारा 1 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए अब राज्य के अधीन डीएसपी के साथ साथ दरोगा और इंस्पेक्टर स्तर के पदाधिकारी भी इस अधिनियम के तहत किसी विशेष न्यायालय के समक्ष व्यक्तियों की गिरफ्तारी, अन्वेषण और अभियोजन की शक्तियों का इस्तेमाल कर सकते हैं. अधिसूचना जारी होने के बाद अब झारखंड में एसटी-एससी उत्पीड़न से जुड़े केस की अनुसंधान अब दारोगा और इंस्पेक्टर रैंक के पदाधिकारी कर पाएंगे. राज्य सरकार के गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव अविनाश कुमार ने मंगलवार को इससे संबंधित अधिसूचना जारी की है.
22 नवम्बर को कैबिनेट ने दी थी मंजूरी: 22 नवंबर को हुई कैबिनेट की बैठक में अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति अधिनियम 1989 के तहत दर्ज केस के अनुसंधान का अधिकार इंस्पेक्टर और दारोगा को देने की मंजूरी प्रदान की गई थी. इससे पूर्व केवल डीएसपी स्तर के अधिकारियों को अधिकार प्राप्त था. गौरतलब है कि झारखंड में एससी एसटी अधिनियम से संबंधित करीब 1400 केस लंबित है. झारखंड में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अधिनियम में दर्ज कांडों के अनुसंधान में तेजी लाने के लिए दारोगा-इंस्पेक्टर को जिम्मेवारी सौंपने के लिए पुलिस मुख्यालय के द्वारा प्रस्ताव बनाकर सरकार को भेजा गया था.
तीन वर्षों में राज्य में बढ़े मामले: आंकड़े बताते हैं कि झारखंड में पिछले तीन वर्षों में एसटी-एससी के विरुद्ध आपराधिक मामले में बढ़ोतरी हुई है. ऐसे मामलों में जांच की गति बेहद धीमी होती है जिस वजह से लंबित मामले की संख्या भी काफी ज्यादा है. झारखंड की राजधानी रांची की बात करें तो पिछले 3 साल में 351 मामले एसटी-एससी के उत्पीड़न से जुड़े हुए मामले रिपोर्ट किए गए हैं. जबकि अगर झारखंड के सभी जिलों की बात करें तो पिछले तीन सालों में 3387 मामले एसटी, एससी उत्पीड़न के रिपोर्ट किए गए हैं. राजधानी रांची में साल 2023 के जनवरी महीने में 8, फरवरी महीने में 9, मार्च महीने में 7, अप्रैल महीने में 10, मई महीने में 13, जून महीने में 9, जुलाई महीने में 26, अगस्त महीने में 8 और सितम्बर महीने में 25 मामले रिपोर्ट हुए हैं.
राजधानी में सबसे ज्यादा 229 केस लंबित: राजधानी रांची में एक तरफ जहां सबसे ज्यादा एसटीएससी से जुड़े मामले दर्ज हुए हैं, वहीं उनकी जांच की प्रक्रिया राजधानी रांची में ही सबसे धीमी भी है. आंकड़े बताते हैं कि राजधानी रांची में 229 केस लंबित है जिसमें 70 से ज्यादा केस सिर्फ इसलिए लंबित है क्योंकि उनका सुपरविजन पूरा नहीं हो पाया है.
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