रांचीः आमतौर पर लोग सोचते हैं कि बच्चे की पढ़ाई लिखाई उसकी अपनी मातृभाषा में हो तो अन्य भाषा सीखने में दिक्कत होगी. लेकिन ऐसा नहीं है. मातृभाषा हमारी नींव है. मातृभाषा जीतनी मजबूत होगी, हम अन्य भाषा उतनी ही बेहतर सीखेंगे. राज्य सरकार इन्हीं उद्देश्यों से यूनिसेफ के सहयोग से राज्य के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को बहुभाषी बनाने पर जोर दे रहा है.
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मातृभाषा बहुभाषा सिखने की नींव है, जो झारखंड जैसे प्रदेश के लिए बहुत आवश्यक है. इन्हीं उदेश्य को लेकर रांची में तीन दिवसीय सम्मेलन (State level conference on mother tongue) का आयोजन किया गया है. झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद, यूनिसेफ और रूम टू रीड इंडिया ट्रस्ट की ओर से आयोजित राज्यस्तरीय सम्मेलन में भाषाविदों द्वारा मातृभाषा आधारित बहुभाषी शिक्षा पर विचार व्यक्त किये जा रहे हैं. राज्य स्तरीय सम्मलेन की शुरुआत किरण कुमारी पासी, राज्य परियोजना निदेशक डॉ अविनव कुमार, राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी सुनीशा आहूजा, शिक्षा विशेषज्ञ यूनिसेफ पारुल शर्मा, शिक्षा विशेषज्ञ यूनिसेफ झारखंड शक्ति ब्रतासेन, भाग्य लक्ष्मी बालाजी आदि ने दीप प्रज्वलित कर किया. इस तीन दिवसीय सम्मेलन का उद्देश्य आनेवाले वर्षों में मूलभूत साक्षरता को सुदृढ़ करने के लिए राज्य में सरकारी प्राथमिक स्कूलों के शुरूआती कक्षाओं में मातृभाषा आधारित बहुभाषी शिक्षा के लिए रणनीति और योजना का निर्माण करना है.
परियोजना निदेशक किरण कुमारी पासी ने कहा कि स्कूलों के क्लासरूम में घर की भाषा में शिक्षा देनी चाहिए. MTB-MLE कार्यक्रम के तहत हमें बच्चों के साथ बहुभाषिकता पर कार्य करने की आवश्यकता है. इस मौके पर यूनिसेफ की पारुल ने बताया कि आमतौर पर लोग सोचते हैं कि बच्चे की पढ़ाई लिखाई उसकी अपनी मातृभाषा में हो तो उसे भाषा सीखने में दिक्कत होगी. लेकिन ऐसा नहीं है.
राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ अभिनव कुमार ने राज्य की बहुभाषी परिस्थिति के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि पिछले कुछ महीनों में राज्य में निपुण भारत मिशन के तहत रूम टू रीड की मदद से बहुभाषी शिक्षा को ले कर किए गए कार्य लाभदायक हुआ है. कार्यक्रम के दौरान राज्य के भाषा विविधता को समझने के लिए कराएं गए भाषाई मैपिंग के रिपोर्ट को भी साझा किया गया और उसपर आधारित सुझावों पर चर्चा की गई.