रांची: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा के आदर्शों पर चलने को लेकर 2 अक्टूबर यानी महात्मा गांधी के जयंती के दिन लोग कसमें खाते हैं कि वह उनके दिखाए रास्ते पर चलेंगे. उसके बाद भूल जाते हैं, लेकिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अगर कोई सच्चा अनुयाई कहा जाए तो वह टाना भगत है. आज भी वह उनके आदर्शों पर चलते हैं और उन्हें भगवान की तरह पूजते हैं. चरखे से सूत निकालकर अपना खादी पोशाक बनाते हैं. आपको ऐसे ही टाना भगत के 32 परिवारों की बस्ती की ओर ले चलते हैं, जहां झुग्गी झोपड़ी में रहकर टाना भगत अपना जीवन बसर कर रहे हैं.
नहीं हो रहा है भर पेट भोजन नसीब
वैश्विक महामारी कोरोना के संकट के कारण इनके जीवन यापन पर काफी प्रभाव पड़ा है, लेकिन इसके बावजूद टाना भगत आज भी दिन की शुरुआत महात्मा गांधी के भक्ति भजन गाकर करते हैं. दुनिया की रफ्तार में कोरोना काल में टाना भगत के परिवार की जीवन की रफ्तार चरखे की तरह चल रही है. सत्य और अहिंसा की राह पर चलने वाले सच्चे अनुयाई टाना भगत के जीवन में कोरोना महामारी का व्यापक असर पड़ा है. रांची कॉलेज कैंपस में रह रहे टाना भगत के 32 परिवारों की हालात दिन प्रतिदिन दयनीय होती जा रही है. मौजूदा समय में इन परिवारों को भरपेट खाना भी नसीब नहीं हो रहा है, लेकिन इस वैश्विक महामारी का प्रकोप टाना भगत के परिवारों पर बिल्कुल भी असर नहीं पड़ा है.
महात्मा गांधी के सच्चे भक्त
इन परिवारों में अब तक एक भी कोरोना वायरस का संक्रमण नहीं पाया गया है. आज से लगभग 50 से 60 साल पूर्व महात्मा गांधी के सच्चे दिल से मानने वाले ताना भगत का 32 परिवार लोहरदगा से रांची आया था. रांची कॉलेज के इस कैंपस में झाड़ियों से घिरा खाली पड़ा बेकार जमीन को रहने लायक बनाया और तब से यहां पर पूरा परिवार झुग्गी झोपड़ी बनाकर रह रहा है. यहां तक कि एक लंबी अवधि बीत जाने के बावजूद भी इन परिवारों को सरकार की तरफ से कोई सुविधा नहीं मिली है. शौच के लिए ना तो शौचालय है और न ही पीने के लिए शुद्ध पानी. इस वजह से यह परिवार बेबसी की जीवन जीने को मजबूर है.
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कोरोना ने छिना रोजगार
टाना भगत के परिवार के अधिकतर लोग दिहाड़ी मजदूरी करते हैं, तो कुछ लोग ठेले पर चाय बेचकर अपना जीवन यापन करते हैं, लेकिन कोरोना वायरस की वजह से इनका व्यवसाय पूरी तरह से बंद पड़ गया है. हफ्तेभर में 1 से 2 दिन मजदूरी का काम मिल पाता है, जिससे किसी तरह गुजर बसर हो रहा है. सरकारी सुविधा के नाम पर इन 32 परिवारों में सिर्फ दो परिवार को ही राशन मिल पाता है. बाकी परिवारों को आज तक राशन कार्ड भी नहीं बना है. राशन बनवाने को लेकर कई बार अधिकारियों की चक्कर भी लगा चुके हैं, लेकिन आज तक किसी ने भी इन लोगों का सुध नहीं लिया.
भुखमरी के कगार पर पहुंचे टाना भगत के परिवार
मौजूदा समय में इन परिवारों की हालात यह है कि लोग भुखमरी के कगार पर आ चुके हैं. दुर्भाग्य की बात है कि एक लंबी अवधि से रह रहे इन परिवारों तक न तो कोई सरकारी सुविधा पहुंच पाई है और न ही सरकार के कोई अधिकारी. जरूरत है सरकार को इन परिवारों के प्रति संवेदना दिखाते हुए इनके भरण पोषण को लेकर कोई रोजगार मुहैया कराने की, ताकि यह परिवार भुखमरी से उभर सके.