रांची: रोटी, कपड़ा और मकान किसी भी व्यक्ति के जीवन की तीन मूलभूत चीजें है. जिसकी पूर्ति के बिना सामान्य जीवन का चलना मुश्किल होता है. लेकिन हमारे समाज में अब भी कई ऐसे व्यक्ति या परिवार हैं जो इन तीन बुनियादी सुविधाओं से आज भी महरूम हैं. इन्हीं लोगों को ध्यान में रखते हुए केंद्र और राज्य सरकार ने कई योजनाएं लागू की है. गरीबों के लिए खाना और रहने के लिए आवास की कई योजनाएं वर्तमान समय में केंद्र और राज्य सरकार चला रही है. लेकिन कपड़ों को लेकर सरकारी योजनाएं शायद ही दिखाई पड़ती है. इसी कमी को को पूरा करने के लिए 2014 में झारखंड की तत्कालीन हेमंत सरकार ने सोना-सोबरन योजना की शुरुआत की थी.
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क्या है सोना सोबरन योजना
झारखंड में गरीबों का तन ढंकने के लिए 2014 में तत्कालीन हेमंत सरकार ने सोना-सोबरन योजना की शुरुआत की थी. लेकिन सरकार बदलने के साथ ही साल 2015 में इस योजना को बंद कर दिया गया था. साल 2019 में दोबारा सत्ता में आने के बाद फिर से हेमंत सोरेन ने अक्टूबर 2020 में इस योजना को राज्य में लागू किया है. इस योजना के तहत राशन कार्डधारियों को साल में दो बार 10 रुपये में लुंगी, धोती और साड़ी मुहैया कराई जाएगी. सरकार की इस योजना के तहत 10 रुपये में गरीबों को 400 रुपये का साड़ी 300 रुपये का धोती और 250 का लुंगी देने का प्रावधान है. पूरे राज्य में 57 लाख 17 हजार राशन कार्डधारी परिवारों को इस योजना का लाभ मिलेगा.
धरातल पर नहीं फाइल में है योजना
सोना-सोबरन योजना को लागू किए एक साल पूरा हो चुका है. लेकिन क्या इस योजना का लाभ लाभुकों को मिल रहा है. ईटीवी भारत की टीम ने जब इसकी पड़ताल की तो सच्चाई हमेशा की तरह सरकारी दावों के उलट ही सामने आयी. आपको जानकर हैरानी होगी कि राज्य के गरीब और सुदूर इलाके में रहने वाले पिछड़े लोगों को इसकी जानकारी तक नहीं है. रांची के ग्रामीण क्षेत्र सिठीयों के रहने वाले नुकुल लकड़ा की मानें तो उनके पास अभी तक सोना-सोबरन योजना की कोई जानकारी नहीं है.
वहीं पीडीएस दुकान चला रहे है कुंदन कुमार बताते हैं कि अभी तक जन वितरण प्रणाली की दुकानों में सोना-सोबरन योजना को लेकर कुछ विशेष दिशा-निर्देश नहीं दिए गए हैं. लेकिन यह जरूर बताया गया है कि जल्द ही अब गरीबों को चावल और गेहूं की तरह वस्त्र का भी वितरण किया जाएगा. ऐसी स्थिति सिर्फ एक जिला की नहीं है बल्कि राज्य के कई जिलों में यही हाल है.
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पूरी तरह शुरू नहीं हुई है योजना
योजना की हकीकत के बारे में जब खाद्य आपूर्ति विभाग से पूछा गया तो सच्चाई कुछ और ही सामने आयी. विभाग के मुताबिक इस योजना को अब तक पूरी तरह लागू नहीं किया गया है. सिर्फ लोहरदगा में सांकेतिक रूप से वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव ने इस योजना की शुरुआत की थी. खाद्य आपूर्ति विभाग के अनुसार विधानसभा के सत्र के बाद पूरे राज्य में सोना-सोबरन योजना को वृहद रूप से लागू किया जाएगा.
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क्या कहते हैं राज्य के मंत्री
पूरे मामले पर जब ईटीवी भारत ने राज्य के विभिन्न मंत्रियों से बात की तो वह भी सोना-सोबरन योजना के धरातल पर नहीं उतरने पर कोरोना का बहाना बनाया. मंत्रियों ने कहा कि कोरोना की वजह से योजना को लागू करने में देरी हुई है. इसके साथ ही उन्होंने जल्द ही इस योजना के तहत गरीबों को लुंगी, साड़ी और धोती उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया है. समाज कल्याण विभाग की मंत्री जोबा मांझी बताती हैं कि इस तरह की योजना झारखंड के गरीब लोगों के लिए काफी लाभकारी है. झारखंड में सोना-सोबरन योजना के तहत लोगों को वस्त्र बांटे जा रहे हैं और अगर कोई लाभान्वित नहीं हो पा रहा है तो उसको लेकर अधिकारियों को भी महत्त्वपूर्ण दिशा निर्देश भी दिए जा रहे हैं.
सरकार से अलग सहयोगियों का राग
वहीं इस मामले पर सरकार में सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल ने खाद्य आपूर्ति विभाग को ही निशाने पर लिया है. आरजेडी ने विभाग पर नमक और चीनी के वितरण में भी असफल रहने का आरोप लगाते हुए सोना-सोबरन योजना की सफलता पर सवाल उठाया है. आरजेडी के मुताबिक तन ढंकने वाली सोना-सोबरन योजना के तहत राशन कार्ड से गरीबों को कपड़े मिल जाएंगे इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती है. वहीं वामदल के नेता भुवन सिंह बताते हैं कि ऐसी ही योजना पूर्व की सरकार की तरफ से लाई गई थी जिसके तहत श्रमिकों को फुल पैंट, शर्ट और महिलाओं को साड़ी मुहैया कराने की बात कही गई थी, पर ये योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई. क्योंकि कपड़े खरीदने की राशि का बंदरबांट किया गया.
योजना को लेकर सीएम संवेदनशील
सोना-सोबरन योजना सीएम के दादा-दादी के नाम से जुड़ा है. इस योजना को लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खुद संवेदनशील हैं, इसलिए इस योजना को बंद करने के बाद दूसरी बार शुरू किया गया. ऐसे में तमाम सवालों के बीच इस योजना के सफल होने की उम्मीद जाहिर की जा रही है.