रांची: झारखंड में हर वर्ष भारी भरकम बजट पेश करने की परंपरा रही है. हालत यह है कि राज्य गठन के 22 वर्षों में सरकार के द्वारा पेश किए गए बजट को देखें तो राज्य गठन के बाद से अब तक 20 गुना वृद्धि हुई है. इन सबके बीच खर्च की स्थिति को देखें तो हर वित्तीय वर्ष के अंतिम तिमाही में खर्च तेजी से होती है. चालू वित्तीय वर्ष में भी यही ट्रेंड दिख रहा है. अंतिम तिमाही यानी जनवरी से मार्च के बीच झारखंड सरकार यदि बजट प्रावधान के अनुरूप खर्च करेगी तो उसे 56% राशि खर्च करनी होगी. चालू वित्तीय वर्ष 2022-23 के नौ महीने बीत चुके हैं, जिसमें 31 दिसंबर तक 50 फीसदी भी राशि खर्च नहीं हो पाई है. वित्त विभाग की रिपोर्ट के अनुसार 31 दिसंबर तक कुल 44.19% खर्च हुए हैं. 57259 करोड़ की योजना बजट में से 25305.52 करोड़ खर्च हुए हैं.
गृह एवं आपदा खर्च करने में फिसड्डी, ऊर्जा विभाग बना नंबर वनः जानकारी के मुताबिक राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के द्वारा वित्तीय वर्ष 2022-23 में 31 दिसंबर तक हुए करीब 44 फीसदी खर्च में सबसे कम गृह एवं आपदा विभाग के द्वारा मात्र 4.49% खर्च किए गए हैं. जबकि ऊर्जा विभाग खर्च करने में नंबर वन पर है. ऊर्जा विभाग 96.22% राशि खर्च कर सबसे आगे है. इसी इसी तरह कृषि विभाग में मात्र 12.91%, पेयजल स्वच्छता में 22.90%, खाद्य एवं आपूर्ति में 30.04%, वन पर्यावरण विभाग में 38.27%, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा में 34.35%, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा में 27.70%, ग्रामीण विकास में 33.67%, स्कूली शिक्षा में 53.73 %, शहरी विकास एवं आवास विभाग में 23.21%, जल संसाधन में 44.50%, आदिवासी कल्याण 67.10 % और महिला बाल विकास में 71.54% राशि खर्च हुई है.
कहते हैं अर्थशास्त्रीः इस संबंध में अर्थशास्त्री हरिश्वर दयाल की माने तो हर वित्तीय वर्ष के अंतिम तिमाही में खर्चों में तेजी रहती है. इसके पीछे कई वजह हैं. केन्द्रीय योजना मद की राशि राज्यों को मिलने में देरी के अलावे योजना स्वीकृति से पूर्व विभिन्न विभागों से सहमति, मॉनसून का समय जैसे कई फैक्टर हैं, जो योजना को धरातल पर उतारने और पैसों का खर्च होने की रफ्तार धीमा रखता है. गौरतलब है कि झारखंड सरकार का चालू वित्तीय वर्ष 2022-23 का बजट 10101 लाख करोड़ रुपए का था. 2021-22 का वार्षिक बजट से यह करीब 11% ज्यादा था.