रांची: झारखंड में गोड्डा, पाकुड़ और पश्चिमी सिंहभूम में ब्रेन मलेरिया के विकराल रूप ने स्वास्थ्य को लेकर विभाग के साथ साथ सरकार की भी चिंता बढ़ा दी हैं.
सरकारी आंकड़ों को ही देखें तो वर्ष 2018 में जहां राज्य में 57 हजार से अधिक मलेरिया के कंफर्म केस मिले थे. वहीं 2022 में यह आंकड़ा घटकर 19 हजार से कुछ अधिक पर रुक गया था. 2018 से 2022 के बीच के वर्षों में लगातार तीन वर्ष तक मलेरिया के संक्रमितों की संख्या में गिरावट दर्ज हुई थी. 2021 की तुलना में 2022 में जरूर कुछ केस बढ़े थे.
अक्टूबर 2023 तक के आंकड़े के अनुसार अभी भी राज्य में मलेरिया के केस तो 2018 की अपेक्षा कम है, लेकिन पाकुड़, गोड्डा और पश्चिमी सिंहभूम जिले के कुछ गांव और टोलों में ब्रेन मलेरिया के आउट ब्रेक और बच्चों की मौत की खबर ने स्वास्थ्य विभाग के साथ साथ सरकार की चिंता बढ़ा दी है. ऐसे में स्वभाविक सवाल उठता है कि कहां चूक हो गयी कि एक बार फिर मलेरिया, परेशानी का सबब बनकर रह गया है. राज्य के वेक्टर बोर्न डिजीज के स्टेट नोडल अधिकारी डॉ बी. के सिंह अभी विभागीय कार्य से दिल्ली गए हुए हैं. लिहाजा ईटीवी भारत ने उनसे फोन पर बात की और उन सवालों को पूछा जो राज्यवासियों के मन में उठ रहे हैं.
तीन जिलों में मलेरिया का आउट ब्रेक हुआ है, सभी जगह स्थिति काबू में: राज्य के वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल के हेड डॉ बीके सिंह ने माना कि पश्चिमी सिंहभूम के टोटो और गोयलकेरा में मलेरिया के संक्रमित मरीज मिले हैं. इस दुर्गम इलाके में मलेरिया रोगियों की पहचान होते ही मलेरिया प्रोटोकॉल का अनुसार एक्शन लिया गया है. VBDC के स्टेट हेड ने बताया कि पश्चिमी सिंहभूम के अलावा गोड्डा के सुंदरपहाड़ी और पाकुड़ जिले के लिट्टीपाड़ा प्रखंड के बड़ा कुरलो में मलेरिया के केस मिले हैं.
मौत हुई, लेकिन वह मलेरिया से हुई यह कंफर्म नहीं- डॉ बीके सिंह: राज्य में वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल के नोडल और स्टेट प्रोग्राम ऑफिसर डॉ बीके सिंह ने गोड्डा और पाकुड़ में मलेरिया से हुई मौत की मीडिया रिपोर्ट पर कहा कि अभी तक मलेरिया से सिर्फ दो मौत की पुष्टि हुई है. बाकी मौत किस वजह से हुई है इसकी वजह जानने की कोशिश की जा रही है. गौरतलब है कि मीडिया रिपोर्ट के अनुसार ब्रेन मलेरिया से पाकुड़ और गोड्डा जिले कुल मिलाकर दर्जन भर से ज्यादा बच्चों की मौत की खबर है, जिससे वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल के अधिकारी इंकार करते हैं.
- मच्छरों के रोकथाम में कहीं रह गयी कमी
- घरों के अंदर और दूरस्थ इलाकों तक संभवतः नहीं पहुंचीं स्वास्थ्य सेवाएं
- राज्य में कीटविज्ञान वेत्ता(EPIDEMOLOGIST) की कमी
- सिर्फ एक कीट विज्ञानवेत्ता के भरोसे पूरा राज्य
- हर तीन साल बाद नए मेडिकेटेड मच्छरदानी का होना चाहिए वितरण
- 2018-19 में राज्य के मलेरिया पॉकेट वाले क्षेत्र में बांटा गया था मेडिकेटेड मच्छरदानी
- 2022- 23 में अभी तक भारत सरकार से नहीं मिला है मेडिकेटेड मच्छरदानी
- मेडिकेटेड मच्छरदानी के पास भी नहीं फटकते मलेरिया फैलाने के जिम्मेवार एनोफिलीज मच्छर
क्या है मलेरिया के लक्षण: प्लाज्मोडियम नाम का प्रोटोजोआ मलेरिया की बीमारी का कारण बनता है. मादा एनोफिलीज मच्छर इसका वाहक बनता है. मलेरिया में संक्रमित व्यक्ति को तेज बुखार, शरीर मे ऐंठन, ठंड और बच्चों के चमकी और बेहोशी के लक्षण भी होते हैं. डॉ बीके सिंह के अनुसार मलेरिया के कई प्रकार होते हैं जिसमें प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम (PF) सबसे खतरनाक होता है और यही एडवांस कंडीशन में ब्रेन मलेरिया का रूप लेकर मारक बन जाता है. स्वास्थ्य विभाग से मिले आंकड़े को देखें तो चिंता की बात यह है कि झारखंड में ज्यादातर मामले खतरनाक किस्म वाले इसी (PF) मलेरिया के ही मिलते हैं.
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