ETV Bharat / state

अति गंभीर कुपोषित बच्चों का नहीं हो रहा इलाज! डॉक्टर और बेड तैयार तो अब किस बात का इंतजार?

झारखंड में अति गंभीर कुपोषित बच्चों का इलाज नहीं हो पा रहा है. रघुवर दास सरकार के समय ही रेफरल सेंटर खोलने का फैसला किया गया था. जो अब तक नहीं खोला जा सका है.

Jharkhand Uppar Referal Center
झारखंड अपर रेफरल सेंटर स्थिति
author img

By

Published : Apr 27, 2023, 9:01 PM IST

Jharkhand Uppar Referal Center

रांची: पांच साल तक के बच्चों को कुपोषण मुक्त करने के लिए 96 कुपोषण उपचार केंद्र राज्य में चल रहे हैं. झारखंड में कुपोषण बड़ी समस्या होने के बावजूद कुपोषित बच्चों के उपचार के लिए एक भी अपर रेफरल सेंटर नहीं हैं. जिससे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है.
ये भी पढ़ें: Jharkhand MTC News: खुशखबरी! अब बच्चों के साथ मां को भी मिलेगा पौष्टिक आहार, कुपोषण की लड़ाई में होगा कारगर

अभी तक नहीं खुल सका सेंटर: रघुवर दास की सरकार में अक्टूबर 2019 में रिम्स में अति गंभीर कुपोषित बच्चों के उपचार के लिए अपर रेफरल सेंटर खोलने का फैसला लिया गया था. पिछली सरकार के फैसले के साढ़े तीन वर्ष बीत जाने के बावजूद अभी तक अपर रेफरल कुपोषण उपचार केंद्र नहीं खुल सका है.

जानकारी देते संवाददाता उपेंद्र
डॉक्टर और बेड तैयार: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत 10 बेडेड का अपर रेफरल कुपोषण उपचार केंद्र बन कर तैयार है. इसके लिए लिए चार विशेष प्रशिक्षित नर्सों की बहाली हो गयी है. रिम्स के तीन शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर इसके लिए विशेष प्रशिक्षण भी लिए हैं. इनका प्रशिक्षण दिल्ली के कलावती अस्पताल में हुआ था. जहां उन्होंने अति गंभीर कुपोषित बच्चों (SAM CHILD) के उपचार का विशेष प्रशिक्षण कराया गया है. बावजूद इसके न तो स्वास्थ्य महकमा और न ही रिम्स प्रबंधन कंफर्म यह बताने की स्थिति में है कि रेफरल कुपोषण उपचार केंद्र कब खुलेगा?

क्या कहते है रिम्स के डॉक्टर: रिम्स अपर रेफरल कुपोषण उपचार केंद्र की नोडल डॉ आशा किरण ने अगले महीने इसका लोकार्पण हो जाने का भरोसा दिलाया है. वहीं रिम्स उपाधीक्षक डॉ शैलेश त्रिपाठी इतना भर कहते हैं कि अधीक्षक पूरे मामले को देख रहे हैं.

कुपोषण राज्य की बड़ी समस्या: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5( NFHS-5 ) की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड बनने के बाद कुपोषण के कई मानकों में सुधार हुआ है. बावजूद आज भी एनीमिया और कुपोषण राज्य की बड़ी स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है. झारखंड जैसे गरीब राज्य में लगभग 67% बच्चे और 65 % महिलाओं में खून की कमी है. कुपोषित मां के कोख से जन्मे बच्चे भी कम वजन के हो रहे हैं. खून की कमी और कुपोषण से जूझ रही मां के बच्चे भी कुपोषित हो रहे हैं.

15 लाख से अधिक कुपोषित: NFHS-5 के ताजा आंकड़े के अनुसार झारखंड राज्य में कुल 36 लाख 64 हजार बच्चों में से 15 लाख बच्चे कुपोषित (42%) हैं. करीब 03 लाख (9%) बच्चे अति गंभीर रूप से कुपोषित हैं. इन अति गंभीर कुपोषित बच्चों को इलाज के लिए कुपोषण उपचार केंद्र या अपर रेफरल कुपोषण उपचार केंद्र में भर्ती कराए जाने की जरूरत है.

राज्य में अपर रेफरल सेंटर नहीं: रिम्स को कुपोषण के उपचार के लिए मॉडल सेंटर के रूप में विकसित करना था. राज्य भर से आए अति गंभीर कुपोषण के शिकार बच्चों को रिम्स रेफर किया जाता. यहां उसका अपर रेफरल कुपोषण उपचार केंद्र में इलाज होता. अफसोस साढ़े तीन साल में अपर रेफरल कुपोषण उपचार केंद्र नहीं शुरू हो सका है. नतीजा यह कि आज भी गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों का इलाज रिम्स पीडियाट्रिक विभाग में होता है. यहां अन्य बीमारियों से ग्रस्त बच्चों के साथ इलाज से संक्रमण का खतरा भी बना रहता है.

आदिवासी बच्चों में कुपोषण अधिक: एक रिसर्च से यह पता चला है कि पांच वर्ष तक के कुपोषित बच्चों में आधे से अधिक बच्चे दो साल से कम उम्र के होते हैं. इन कुपोषित बच्चों में से 53% गंभीर रूप से कुपोषित बच्चे लड़कियां होती हैं. रिसर्च रिपोर्ट यह भी खुलासा करता है कि आदिवासी समुदाय के बच्चों में कुपोषण की स्थिति सबसे गंभीर है. कुपोषण उपचार केंद्र पहुंचने वाले कुल बच्चों में से 56% आदिवासी (अनुसूचित जनजाति) और 17% दलित (अनुसूचित जाति) समुदाय से होते हैं.

Jharkhand Uppar Referal Center

रांची: पांच साल तक के बच्चों को कुपोषण मुक्त करने के लिए 96 कुपोषण उपचार केंद्र राज्य में चल रहे हैं. झारखंड में कुपोषण बड़ी समस्या होने के बावजूद कुपोषित बच्चों के उपचार के लिए एक भी अपर रेफरल सेंटर नहीं हैं. जिससे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है.
ये भी पढ़ें: Jharkhand MTC News: खुशखबरी! अब बच्चों के साथ मां को भी मिलेगा पौष्टिक आहार, कुपोषण की लड़ाई में होगा कारगर

अभी तक नहीं खुल सका सेंटर: रघुवर दास की सरकार में अक्टूबर 2019 में रिम्स में अति गंभीर कुपोषित बच्चों के उपचार के लिए अपर रेफरल सेंटर खोलने का फैसला लिया गया था. पिछली सरकार के फैसले के साढ़े तीन वर्ष बीत जाने के बावजूद अभी तक अपर रेफरल कुपोषण उपचार केंद्र नहीं खुल सका है.

जानकारी देते संवाददाता उपेंद्र
डॉक्टर और बेड तैयार: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत 10 बेडेड का अपर रेफरल कुपोषण उपचार केंद्र बन कर तैयार है. इसके लिए लिए चार विशेष प्रशिक्षित नर्सों की बहाली हो गयी है. रिम्स के तीन शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर इसके लिए विशेष प्रशिक्षण भी लिए हैं. इनका प्रशिक्षण दिल्ली के कलावती अस्पताल में हुआ था. जहां उन्होंने अति गंभीर कुपोषित बच्चों (SAM CHILD) के उपचार का विशेष प्रशिक्षण कराया गया है. बावजूद इसके न तो स्वास्थ्य महकमा और न ही रिम्स प्रबंधन कंफर्म यह बताने की स्थिति में है कि रेफरल कुपोषण उपचार केंद्र कब खुलेगा?

क्या कहते है रिम्स के डॉक्टर: रिम्स अपर रेफरल कुपोषण उपचार केंद्र की नोडल डॉ आशा किरण ने अगले महीने इसका लोकार्पण हो जाने का भरोसा दिलाया है. वहीं रिम्स उपाधीक्षक डॉ शैलेश त्रिपाठी इतना भर कहते हैं कि अधीक्षक पूरे मामले को देख रहे हैं.

कुपोषण राज्य की बड़ी समस्या: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5( NFHS-5 ) की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड बनने के बाद कुपोषण के कई मानकों में सुधार हुआ है. बावजूद आज भी एनीमिया और कुपोषण राज्य की बड़ी स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है. झारखंड जैसे गरीब राज्य में लगभग 67% बच्चे और 65 % महिलाओं में खून की कमी है. कुपोषित मां के कोख से जन्मे बच्चे भी कम वजन के हो रहे हैं. खून की कमी और कुपोषण से जूझ रही मां के बच्चे भी कुपोषित हो रहे हैं.

15 लाख से अधिक कुपोषित: NFHS-5 के ताजा आंकड़े के अनुसार झारखंड राज्य में कुल 36 लाख 64 हजार बच्चों में से 15 लाख बच्चे कुपोषित (42%) हैं. करीब 03 लाख (9%) बच्चे अति गंभीर रूप से कुपोषित हैं. इन अति गंभीर कुपोषित बच्चों को इलाज के लिए कुपोषण उपचार केंद्र या अपर रेफरल कुपोषण उपचार केंद्र में भर्ती कराए जाने की जरूरत है.

राज्य में अपर रेफरल सेंटर नहीं: रिम्स को कुपोषण के उपचार के लिए मॉडल सेंटर के रूप में विकसित करना था. राज्य भर से आए अति गंभीर कुपोषण के शिकार बच्चों को रिम्स रेफर किया जाता. यहां उसका अपर रेफरल कुपोषण उपचार केंद्र में इलाज होता. अफसोस साढ़े तीन साल में अपर रेफरल कुपोषण उपचार केंद्र नहीं शुरू हो सका है. नतीजा यह कि आज भी गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों का इलाज रिम्स पीडियाट्रिक विभाग में होता है. यहां अन्य बीमारियों से ग्रस्त बच्चों के साथ इलाज से संक्रमण का खतरा भी बना रहता है.

आदिवासी बच्चों में कुपोषण अधिक: एक रिसर्च से यह पता चला है कि पांच वर्ष तक के कुपोषित बच्चों में आधे से अधिक बच्चे दो साल से कम उम्र के होते हैं. इन कुपोषित बच्चों में से 53% गंभीर रूप से कुपोषित बच्चे लड़कियां होती हैं. रिसर्च रिपोर्ट यह भी खुलासा करता है कि आदिवासी समुदाय के बच्चों में कुपोषण की स्थिति सबसे गंभीर है. कुपोषण उपचार केंद्र पहुंचने वाले कुल बच्चों में से 56% आदिवासी (अनुसूचित जनजाति) और 17% दलित (अनुसूचित जाति) समुदाय से होते हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.