रांची: कोरोना महामारी के प्रकोप से एक तरफ जहां सभी स्कूलों में ताले लटके हैं तो स्कूल बस के पहिए भी पिछले डेढ़ साल से थमा हुआ है. स्कूल बसों की हालत देख कर आंखों में आंसू आ जाएंगे. जहां हर रोज बच्चों के चहचहाहट गुंजा करती थी, आज वहां वीरानी है. स्कूल बसों के अंदर झाड़ियां उग आई है. यह नजारा देखकर वाकई में यह महसूस हो रहा है कि इस कोरोना ने तमाम क्षेत्र के साथ-साथ शिक्षा व्यवस्था को भी बेपटरी कर दिया है.
ये भी पढ़ें- कैसे भरेगा बच्चों का पेट? मिड-डे-मील का खाद्यान्न घर-घर पहुंचाने की योजना इस साल भी फेल
इन तस्वीरों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि आखिर इस कोरोना महामारी ने कितना कहर बरपाया है. हर क्षेत्र के साथ-साथ शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह चरमराई हुई है. बच्चे घरों में बैठकर मोबाइल के सामने ऑनलाइन क्लास करने को मजबूर है. स्कूल बसों में जहां बच्चों की चहचहाहट सुनाई देती थी, आज वहां सन्नाटा पसरा हुआ है. बसों के पहिए मिट्टी में धंस कर कहीं गुम-सी हो गई है. अब उन पहियों के नीचे काली सड़क नहीं बल्कि झाड़ियां उग रही है. यह नजारा वाकई में भयावह है और इससे यह पता चलता है कि किस कदर इन बसों के साथ संबंध रखने वाले लोगों की हालत काफी खराब है.
इसे भी पढ़ें- Covid Vaccine: कोरोना वैक्सीन बचाने में झारखंड फिर रहा फ्लॉप, केरल और पश्चिम बंगाल रहे अव्वल
बस ऑपरेटरों का सुध लेने वाला कोई नहीं
इंश्योरेंस के रूप में प्रति वर्ष के हिसाब से सालाना एक लाख रुपये का ईएमआई आ रही है, वहीं रोड टैक्स अलग है. ऐसे में बस ऑपरेटर भी काफी परेशान है और इनका सुध लेने वाला फिलहाल कोई नहीं है. जिन ऑपरेटरों ने बैंक से लोन लेकर पिछले वर्ष नई बसें खरीदी है और निजी स्कूलों को मुहैया कराया है, उनके समक्ष भी परेशानियां काफी है. इनकी मानें तो पिछले वर्ष यानी 2020 में अप्रैल से सितंबर तक 6 माह का रोड टैक्स झारखंड सरकार ने बस संचालकों को माफ किया था. इसके बाद से सभी तरह का टैक्स इंश्योरेंस लोन की ईएमआई बदस्तूर चालू है.
करोड़ों की संपत्ति हो रही है बर्बाद
कोरोना काल में हर क्षेत्र प्रभावित है. स्कूलों में जहां ऑनलाइन क्लास के कारण स्कूल बस की गतिविधि नहीं है. वहीं स्कूल बस से जुड़ा हर एक व्यक्ति परेशान है, चाहे चालक हो, संचालक हो, खलासी हो या फिर बस के कंडक्टर ही हो. ऐसे में इस दिशा में राज्य सरकार को भी उचित कदम उठाने की जरूरत है क्यूोंकि करोड़ों की संपत्ति रख-रखाव के अभाव में बर्बाद हो रहा है.