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मनुष्य और प्रकृति के अनोखे जुड़ाव को दर्शाता है 'सरहुल महापर्व', जानिए विशेषताएं - सरहुल की शुरुआत

झारखंड का प्रमुख प्रकृति पर्व सरहुल आज मनाया जा रहा है. तीन दिवसीय सरहुल पूजा की शुरुआत 26 मार्च को उपवास के साथ होगी और 28 मार्च को फूल खोशी के साथ संपन्न हो जाएगी. वहीं, कोरोना महामारी के कारण आदिवासियों की सभ्यता और संस्कृति को दर्शाने वाली शोभायात्रा नहीं निकाली जाएगी.

sarhul festival in jharkhand
सरहुल पर्व
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Published : Mar 27, 2020, 6:34 AM IST

रांची: झारखंड में प्रकृति ने अपने सौंदर्य को खुलकर लुटाया है. राज्य में बसने वाले आदिवासियों की सरलता प्रकृति प्रेम की अनोखी झलक, हमें इनके परंपराओं में देखने को मिलती है. वसंत आगमान, झारखंड के आदिवासियों को बहुत से अदभुत और अनोखे उत्सव मनाने का मौका देता है. जिनमें एक महत्वपूर्ण पर्व सरहुल के नाम से जाना जाता है.

चैत महीने का आगमन और सरहुल की शुरुआत

प्रकृति का महापर्व सरहुल की शुरुआत चैत महीने के आगमन से ही होती है. इस समय साल के वृक्षों में फूल लग जाते हैं. जिसे आदिवासियों ने प्रतीकात्मक रूप से नया साल सूचक मानते हुए और सरहुल पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं. वे इस पर्व को इतना शुभ मानते है कि अपने सारे महत्वपूर्ण कार्य इसी दिन से शुरू करते है.

देखें वीडियो

फूल खोशी के साथ संपन्न होता है सरहुल पर्व

सरहुल आदिवासियों का प्रमुख पर्व में से एक है. इस बार तीन दिवसीय महापर्व पूजा की शुरुआत 26 मार्च को उपवास के साथ होगी और 28 मार्च को फूल खोशी के साथ संपन्न हो जाएगा. जिसको लेकर राजधानी रांची के विभिन्न टोला मोहल्ला के सरना स्थलों में साफ-सफाई रंग-रोगन और सरना झंडा लगाने का काम किया गया.

पहान करते हैं विशेष अनुष्ठान

3 दिनों के इस पर्व की अपनी अलग कई विशेषताएं है.इस पर्व में गांव के पहान द्वारा सरना स्थल में विशेष अनुष्ठान किया जाता है. जिसमें ग्राम देवता की पूजा की जाती है और बीते साल के लिए उन्हें धन्यावाद किया जाता है. इसके साथ आने वाले साल अच्छा हो प्राथर्ना की जाती है.

मिट्टी के घड़े में पानी की स्तर से बारिश का अनुमान

वहीं, पहान सरना स्थल में मिट्टी के घड़े में पानी रखते हैं और दूसरे दिन घड़े में पानी की स्तर की जांच की जाती है और इससे ही आने वाले साल में बारिश का अनुमान लगाया जाता है. पूजा समाप्त होने के दूसरे दिन गांव के पहान गांव के घर-घर जाकर फूल खोशी करते हैं ताकि घर और समाज में खुशी संपन्न रहें.

आदिवासी समाज के लोग धूमधाम से मानाते है सरहुल

झारखंड में सरहुल बहुत ही बड़े स्तर पर मनाया जाता है.जिसमें राज्य के विभिन्न हिस्सों में बसने वाले आदिवासी समाज के लोग बड़े ही उत्साह के साथ भाग लेते हैं और शोभायात्रा में विभिन्न टोला मोहल्ला से जुलूस निकाली जाती है. जिसमें आदिवासियों की सभ्यता और संस्कृति को झांकियों में दर्शाया जाता है.

कोरोना महामारी के कारण नहीं होगी शोभायात्रा

आदिवसी समुदाय के लोग शोभायात्रा में अपनी सभ्यता और संस्कृति के अलावा आदिवासियों के वर्तमान जन्म व मुद्दा झांकियों के माध्यम से दिखाते हैं. इसके साथ ही विशाल एकजुटता के माध्यम से सरकार को अपनी मांग से अवगत कराते हैं. लेकिन इस बार कोरोना महामारी और राष्ट्र हित को ध्यान में रखते हुए सरहुल शोभायात्रा को स्थगित करने का निर्णय लिया गया है.

रांची: झारखंड में प्रकृति ने अपने सौंदर्य को खुलकर लुटाया है. राज्य में बसने वाले आदिवासियों की सरलता प्रकृति प्रेम की अनोखी झलक, हमें इनके परंपराओं में देखने को मिलती है. वसंत आगमान, झारखंड के आदिवासियों को बहुत से अदभुत और अनोखे उत्सव मनाने का मौका देता है. जिनमें एक महत्वपूर्ण पर्व सरहुल के नाम से जाना जाता है.

चैत महीने का आगमन और सरहुल की शुरुआत

प्रकृति का महापर्व सरहुल की शुरुआत चैत महीने के आगमन से ही होती है. इस समय साल के वृक्षों में फूल लग जाते हैं. जिसे आदिवासियों ने प्रतीकात्मक रूप से नया साल सूचक मानते हुए और सरहुल पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं. वे इस पर्व को इतना शुभ मानते है कि अपने सारे महत्वपूर्ण कार्य इसी दिन से शुरू करते है.

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फूल खोशी के साथ संपन्न होता है सरहुल पर्व

सरहुल आदिवासियों का प्रमुख पर्व में से एक है. इस बार तीन दिवसीय महापर्व पूजा की शुरुआत 26 मार्च को उपवास के साथ होगी और 28 मार्च को फूल खोशी के साथ संपन्न हो जाएगा. जिसको लेकर राजधानी रांची के विभिन्न टोला मोहल्ला के सरना स्थलों में साफ-सफाई रंग-रोगन और सरना झंडा लगाने का काम किया गया.

पहान करते हैं विशेष अनुष्ठान

3 दिनों के इस पर्व की अपनी अलग कई विशेषताएं है.इस पर्व में गांव के पहान द्वारा सरना स्थल में विशेष अनुष्ठान किया जाता है. जिसमें ग्राम देवता की पूजा की जाती है और बीते साल के लिए उन्हें धन्यावाद किया जाता है. इसके साथ आने वाले साल अच्छा हो प्राथर्ना की जाती है.

मिट्टी के घड़े में पानी की स्तर से बारिश का अनुमान

वहीं, पहान सरना स्थल में मिट्टी के घड़े में पानी रखते हैं और दूसरे दिन घड़े में पानी की स्तर की जांच की जाती है और इससे ही आने वाले साल में बारिश का अनुमान लगाया जाता है. पूजा समाप्त होने के दूसरे दिन गांव के पहान गांव के घर-घर जाकर फूल खोशी करते हैं ताकि घर और समाज में खुशी संपन्न रहें.

आदिवासी समाज के लोग धूमधाम से मानाते है सरहुल

झारखंड में सरहुल बहुत ही बड़े स्तर पर मनाया जाता है.जिसमें राज्य के विभिन्न हिस्सों में बसने वाले आदिवासी समाज के लोग बड़े ही उत्साह के साथ भाग लेते हैं और शोभायात्रा में विभिन्न टोला मोहल्ला से जुलूस निकाली जाती है. जिसमें आदिवासियों की सभ्यता और संस्कृति को झांकियों में दर्शाया जाता है.

कोरोना महामारी के कारण नहीं होगी शोभायात्रा

आदिवसी समुदाय के लोग शोभायात्रा में अपनी सभ्यता और संस्कृति के अलावा आदिवासियों के वर्तमान जन्म व मुद्दा झांकियों के माध्यम से दिखाते हैं. इसके साथ ही विशाल एकजुटता के माध्यम से सरकार को अपनी मांग से अवगत कराते हैं. लेकिन इस बार कोरोना महामारी और राष्ट्र हित को ध्यान में रखते हुए सरहुल शोभायात्रा को स्थगित करने का निर्णय लिया गया है.

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