रांचीः कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आरपीएन सिंह ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नाम अपने इस्तीफे में लिखा है कि मैं तत्काल प्रभाव से पार्टी की सदस्यता छोड़ता हूं. आपने देश, नागरिकों और पार्टी की सेवा के लिए जो अवसर दिया, उसके लिए धन्यवाद. पार्टी आलाकमान ने आरपीएन सिंह को साल 2017 में पहली बार झारखंड का प्रभारी बनाया था. उनके मार्गदर्शन में ही पार्टी ने झामुमो और राजद के साथ गठबंधन कर विधानसभा चुनाव लड़ा था. इसका जबरदस्त फायदा भी मिला था. पार्टी को 16 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. हेमंत सोरेन के नेतृत्व में बनी गठबंधन की सरकार में कांग्रेस के चार विधायक मंत्री बने. बाद के दिनों में आरपीएन सिंह की पहल पर ही जेवीएम के विधायक प्रदीप सिंह और बंधु तिर्की भी कांग्रेस में शामिल हुए. 2019 के शानदार रिजल्ट का ही परिणाम था कि आलाकमान ने आरपीएन सिंह को सितंबर 2020 में लगातार दूसरी बार प्रदेश प्रभारी का जिम्मा सौंपा.
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बता दें कि आरपीएन सिंह की पहल पर ही रामेश्वर उरांव की जगह राजेश ठाकुर की प्रदेश अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी हुई थी. हालांकि, झारखंड में सुबोकांत सहाय हर मोर्चे पर आरपीएन सिंह का विरोध करते रहे थे. पिछले दिनों उन्होंने ईटीवी भारत को दिए बयान में कहा था कि आरपीएन सिंह ने प्रदेश में पार्टी का बेड़ा गर्क कर रखा है. पता नहीं आलाकमान को यह सब क्यों नहीं दिख रहा है. अब सवाल है कि क्या आरपीएन सिंह के पार्टी छोड़ने के बाद झारखंड की राजनीति खासकर प्रदेश कांग्रेस के संगठनात्मक स्वरूप पर कोई असर दिखेगा ? फिलहाल प्रदेश कांग्रेस का कोई भी नेता इस सवाल का जवाब नहीं दे रहा है.
आपको बता दें कि आरपीएन सिंह उत्तर प्रदेश में ओबीसी के एक बड़े चेहरे के रूप में देखे जाते हैं. पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव के दौरान उनके कांग्रेस को छोड़ने के पीछे की वजह का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है. आरपीएन सिंह 15 वीं लोकसभा में कुशीनगर के सांसद रह चुके हैं. वे देश के गृह राज्य मंत्री की भी जिम्मेदारी निभा चुके हैं. 16वीं लोकसभा चुनाव में वे बीजेपी के राजेश पांडेय से हार गए थे. आरपीएन सिंह 1996 में कांग्रेस के टिकट पर पडरौना से विधायक भी चुने जा चुके हैं.