रांची: राज्य के सबसे बड़े सरकारी मेडिकल संस्थान राजेन्द्र इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (RIMS) का निदेशक पद वर्षों से लगातार न सिर्फ सुर्खियों में रहा है. बल्कि कई बार विवादों में भी रहा है. ऐसे में पद्मश्री डॉ कामेश्वर प्रसाद के रिम्स निदेशक पद से त्यागपत्र देने के बाद नए स्थायी निदेशक की नियुक्ति के लिए 30 अक्टूबर को सरकार की ओर से विज्ञापन निकाला गया था.
बेहद महत्वपूर्ण और आकर्षक रिम्स निदेशक का पद माना जाता रहा है. लिहाजा राष्ट्रीय स्तर पर चिकित्सा शिक्षा में अनुभव रखने वाले डॉक्टर्स भी इस पद पर आसीन होना चाहते रहे हैं लेकिन इस बार स्थिति ठीक उलट है. पिछले 10-12 वर्षों में पहली बार यह हुआ है कि रिम्स निदेशक पद के लिए विज्ञापन निकला हो और सिंगल डिजिट यानि 10 से कम आवेदन आये हों. इस बार तो सिर्फ सात आवेदन रिम्स निदेशक के लिए विभाग को मिला है. जिसमें सिर्फ 03 राज्य के बाहर के हैं. विभाग से जो जानकारी मिली है उसके अनुसार जिन सात लोगों ने आवेदन किया है उसमें रिम्स के प्रभारी निदेशक डॉ राजीव गुप्ता और अधीक्षक डॉ हितेन बिरुआ का नाम शामिल हैं.
स्वास्थ्य विभाग के विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस बार रिम्स के स्थायी निदेशक के लिए सिर्फ 07 आवेदन प्राप्त हुए हैं. जिसमें से 04 रिम्स के ही डॉक्टर्स हैं. राज्य के बाहर के महज 03 डॉक्टरों ने रिम्स निदेशक बनने में रुचि दिखाई है. इससे पहले वर्ष 2015 में निदेशक पद के लिए देशभर के अलग अलग मेडिकल संस्थानों के 36 डॉक्टरों ने आवेदन किया था तब डॉ बीएल शेरवाल को निदेशक बनाया गया था.
डॉ. शेरवाल ने अपने कार्यकाल के बीच में ही त्याग पत्र दे दिया उसके बाद 2018 में रिम्स निदेशक के लिए 26 डॉक्टरों ने आवेदन किया. उस समय BHU के चिकित्सक डॉ डीके सिंह को रिम्स निदेशक की जिम्मेवारी सौंपी गई. संयोग से डॉ डीके सिंह ने भी बीच कार्यकाल में निदेशक पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद निदेशक पद के लिए निकाले गए आवेदन में वर्ष 2020 में 25 डॉक्टरों ने निदेशक पद के लिए आवेदन दिया था. जिसमें से AIIMS दिल्ली के न्यूरोलॉजी विभाग के डॉ कामेश्वर प्रसाद को निदेशक बनाया गया था. यह इत्तेफाक ही रहा कि उन्होंने भी बिना कार्यकाल पूरा किये रिम्स निदेशक पद से इस्तीफा दे दिया और अभी प्रभारी निदेशक डॉ राजीव गुप्ता के भरोसे राज्य का सबसे बड़ा मेडिकल संस्थान चल रहा है.
नामी मेडिकल संस्थानों के डॉक्टरों ने नहीं रुचिः राज्य का सबसे बड़ा और ऑटोनॉमस मेडिकल संस्थान होने के बावजूद रिम्स निदेशक बनने में क्यों प्रतिष्ठित मेडिकल संस्थान का अनुभव रखने वाले डॉक्टरों ने इस बार दूरी बना ली. इस सवाल का जवाब जानने के लिए ETV BHARAT ने रिम्स चिकित्सक शिक्षक संघ के सचिव डॉ प्रभात कुमार से बात की. डॉ प्रभात ने कहा कि कहीं न कहीं व्यवस्था और प्रक्रिया में कुछ गड़बड़ हुआ है, इसी वजह से धीरे धीरे लोगों की रुचि कम होते गयी है. उन्होंने कहा कि राजेन्द्र मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल से राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस बने दो दशक से अधिक हो गए लेकिन जो बदलाव दिखना चाहिए था वह नहीं हुआ.
ऐसे में अब लोगों को यह लगने लगा है कि रिम्स निदेशक बनकर संस्थान में मूलभूत सुधार नहीं कर सकते, नाकामी ही उनके माथे आनी है तो ऐसे पद को क्या पाना. वहीं रिम्स के सर्जरी विभाग के वरिष्ठ सर्जन और पूर्व जनसम्पर्क अधिकारी डॉ डीके सिन्हा ने कहा कि जिस सवाल को ईटीवी भारत उठा रहा है उसका जवाब देना आसान नहीं है. उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि रिम्स एक स्वायत्त संस्थान तो है लेकिन झारखंड सरकार के अंदर में ऑटोनॉमस है.
रिम्स के हर काम में सरकार के हस्तक्षेप भी एक बड़ा कारणः रिम्स के एक वरिष्ठ चिकित्सक ने नाम नहीं छापने के शर्त पर बताया कि बाबूलाल मरांडी के मुख्यमंत्री काल में RMCH को स्वायत्तता प्रदान करते हुए इसे दिल्ली AIIMS के तर्ज पर विकसित करने की कल्पना की गई थी. लेकिन समय के साथ साथ RIMS के स्वायत्तता होने के बावजूद नियमावली में बदलाव कर सरकारी हस्तक्षेप बढ़ता गया. ऐसे में रिम्स की नाकामी पर निदेशक को अक्षम बताने और उपलब्धि को अपने नाम करने की कवायद इतनी तेज हुई कि एक के बाद एक तीन निदेशक ने बिना कार्यकाल पूरा किये ही पद छोड़ दिया.
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