रांची: क्या वाकई दो माह बाद झारखंड में भाजपा की सरकार बनने वाली है. मुख्य विपक्षी दल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने उपचुनाव के माहौल में ऐसा बयान आखिर क्यों दिया. वह ऐसा क्यों कह रहे हैं कि उपचुनाव के दौरान अधिकारियों ने निष्पक्षता नहीं बरती तो दो माह बाद सभी को कालापानी झेलनी पड़ेगी. अब यह सिर्फ धमकी है या एक राजनीतिक शिगूफा, क्योंकि आंकड़ो के लिहाज से दूर-दूर तक भाजपा की सरकार बनने की गुंजाइश नहीं दिख रही है. इसलिए कांग्रेस और झामुमो के नेता दीपक प्रकाश के इस दावे को मुंगेरीलाल के सपने बता रहे हैं.
वैसे दीपक प्रकाश के इस बयान को राजनीतिक जानकार हर एंगल से परख रहे हैं. अधिकारियों के बीच कई तरह की चर्चाएं हो रही हैं. सरकार के करीबी होने का ठप्पा लगा चुके अधिकारी डरे हुए हैं. अब सवाल है कि उपचुनाव के ऐन मौके पर भाजपा की तरफ से इस तरह के दावे क्यों किए जा रहे हैं. राजनीति के जानकारों का कहना है कि अंकगणित के लिहाज से दीपक प्रकाश के दावों में कोई दम नहीं दिखता है. संभव है कि भाजपा को इस बात का डर हो कि उपचुनाव में सरकार के प्रति अधिकारियों के सकारात्मक रुख से उनको वोट का नुकसान उठाना पड़ सकता है.
जानकारों को यह भी लगता है कि इस तरह के बयान से वोटर दिग्भ्रमित हो सकते हैं और इसका फायदा भाजपा को हो सकता है, क्योंकि भाजपा बार-बार इस बात पर फोकस कर रही है कि हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री बने 10 माह हो चुके हैं, लेकिन झारखंड में विकास का काम ठप पड़ा हुआ है. पिछले दिनों कांग्रेस के कुछ विधायकों के तथाकथित बागी अंदाज को भी भाजपा के दावों में दम के रूप में जोड़ कर देखा जा रहा है. जानकार कहते हैं कि इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि 2019 के चुनाव के वक्त हेमंत सोरेन भी कई मंचों से उस वक्त की सरकार के करीबी रहे अधिकारियों को अपने अंदाज में चेतावनी दिया करते थे.
बयान से आचार संहिता का उल्लंघन
दीपक प्रकाश के इस राजनीतिक शिगूफे के बीच एक ऐसा भी खेमा है जो चुनाव आयोग को कटघरे में खड़ा कर रहा है. लोगों का कहना है कि संवैधानिक तरीके से हेमंत सोरेन के नेतृत्व में बनी सरकार को दो माह के भीतर हटाने का दीपक प्रकाश का दावा आचार संहिता के दायरे में आता है. इसके बावजूद चुनाव आयोग कोई एक्शन क्यों नहीं ले रहा है. बहरहाल दुमका और बेरमो उपचुनाव से पहले झारखंड में राजनीति की लक्ष्मण रेखा धुंधली हो चली है. बयानों के तीर तल्ख हो गए हैं. जाहिर सी बात है कि इसका सीधा असर वोटरों पर पड़ सकता है. वैसे इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि यह पब्लिक है सब कुछ जानती है.
ऐसे में अब 3 नवंबर को दुमका और बेरमो उपचुनाव के लिए मतदान होना है. इस बार दोनों ही सीटों पर तीसरा कोण नहीं बन सका. दुमका में भाजपा और झामुमो में जबकि बेरमो में बीजेपी व कांग्रेस में सीधा मुकाबला है. आंकड़ों के हिसाब से देखें तो वर्तमान में झारखंड विधानसभा की दलगत स्थिति कुछ इस प्रकार है.
झारखंड विधानसभा चुनाव-2019 में जो आंकड़े सामने आए थे, वह वर्तमान स्थिति में बदल चुके हैं. फिलहाल, राज्य के तीन विधानसभा सीट खाली हैं, जिसमें से 2 विधानसभा सीट (बेरमो और दुमका) पर आगामी 3 नवंबर को उपचुनाव है. वहीं, हेमंत कैबिनेट के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री और मधुपुर सीट से विधायक हाजी हुसैन अंसारी की मौत के बाद तीसरा सीट खाली हो गया है. हालांकि, इस सीट के खाली होने से पहले ही चुनाव आयोग ने उपचुनाव की घोषणा कर दिया था. जिस कारण तीनों सीटों पर एक साथ उपचुनाव नहीं हो रहा है. इधर, झारखंड विकास मोर्चा के विलय के बाद पार्टी के तीनों विधायकों ने अपना पाला बदल लिया. पार्टी के तात्कालिन अध्यक्ष और राजधनवार के विधायक बाबूलाल मरांडी ने बीजेपी का दामन थाम लिया. वहीं, दो अन्य विधायक बंधु तिर्की और प्रदीप यादव कांग्रेस में शामिल हो गए.